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समन्वयशील सन्त : युवाचार्य श्री महाप्रज्ञ
श्री जमनालाल जैन
श्वेताम्बर तेरापंथ सम्प्रदाय के अनुशास्ता युगप्रधान आचार्य श्री तुलसी जी ने अपने लब्ध-प्रतिष्ठ अन्तेवासी महाप्रज्ञ मुनि श्री नथमल जी महाराज को युवाचार्य के पद पर प्रतिष्ठित करके न केवल तेरापंथ सम्प्रदाय की, अपितु समग्र श्री जैन संघ की महान् सेवा की है।
मुनि श्री नथमल जी सच्चे अर्थों में तपस्वी एवं ज्ञानी सन्त हैं। उनकी कृशकाया में विराट आत्मा विराजमान है। 'समणसुत्त' ग्रंथ के प्रसंग पर दिल्ली में सभी सम्प्रदायों के सन्तों एवं श्रावकों की जो संगीति आयोजित हुई थी उसमें आपकी प्रखर तर्क-शक्ति, समन्वयशील-वृत्ति तथा दूसरों के प्रति सम्पूर्ण समादर-भावना का दर्शन करके मन मुग्ध हो उठा था। उनके सान्निध्य में एक साधारण-से मनुष्य को भी ऐसा लगता है मानो गंगा के घाट पर बैठकर स्नान किया जा रहा हो । वात्सल्य, स्नेह-सौजन्य तो उनकी आँखों से मानो निरंतर झरता है। - मुनि श्री के प्रांजल एवं ज्ञान सम्पन्न व्यक्तित्व का वह साक्षात्कार तो मैं कभी भूल नहीं सकता, जब समणसुतंकी संगीति के तत्काल बाद स्व० साहू शाँतिप्रसाद जी जैन तथा भारतीय ज्ञानपीठ की ओर से ब्र० जिनेन्द्रवर्णी जी का सम्मान किया गया। यह सम्मानसमारोह मुनि श्री नथमल जी के सान्निध्य में ही किया गया था। तब मैंने मन ही मन अनुभव किया कि आज भले ही ये तेरापंथ-सम्प्रदाय का प्रतिनिधित्व करते हों, किन्तु इनकी आत्मा इतनी उन्नत एवं व्यापक है कि वह किसी भी प्रकार के चौखट या दायरे में आबद्ध नहीं रह सकती। एक दिन आयेगा जब वह सूर्य व्यापक क्षितिज पर प्रकट होगा और इनका चिन्तन सम्पूर्ण मानव-समाज के अभ्युत्थान के लिए उन्मुक्त रूप से उपलब्ध होगा।
मुनि श्री दृढ़ निश्चय के धनी हैं । आप में आत्म-नियंत्रण एवं संघ-नियंत्रण की सहज क्षमता है । जैन विश्व भारती के गठन, विकास एवं विस्तार में, उसकी प्रगति में आपका योगदान अपूर्व रहा है। अत्यल्प अवधि में जैन विश्वभारती को जो समादर का स्थान प्राप्त हुआ है, वह आपके ही सत्प्रयास का परिणाम है ।
खण्ड ४, अंक ७-८
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