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________________ युवाचार्य महाप्रज्ञ : एक गंभीर चिन्तक अगरचन्द नाहटा जैन धर्म में स्वाध्याय और ध्यान को महत्त्वपूर्ण स्थान दिया गया है । उत्तराध्ययन सूत्र के समाचारी नामक अध्ययन में साधु-साध्वी की समाचारी में तो यहां तक कह दिया गया है कि प्रथम प्रहर में स्वाध्याय, द्वितीय प्रहर में ध्यान, तृतीय प्रहर में गोचरी आदि शारीरिक क्रियाए, चतुर्थ प्रहर में फिर स्वाध्याय । इसी तरह रात्रि में एक प्रहर की निद्रा बाकी प्रहरों में स्वाध्याय और ध्यान का क्रम चालू रखने का विधान है । अर्थात् दिन और रात के आठ प्रहरों में साधु-साध्वी चार प्रहर का स्वाध्याय, दो प्रहर का ध्यान, एक प्रहर गोचरी आदि और रात्रि का एक प्रहर निद्रा, यह मुनिचर्या है । पर देश और काल की स्थिति में इतना अन्तर आया कि आज उस क्रिया का पालन बहुत कठिन हो गया है। मध्यकाल में ध्यान की पद्धति साधारणतया लुप्त-सी हो गई थी। अतः मेरे मन में यह बारबार आता रहता था कि ध्यान की पद्धति साधु-साध्वियों में फिर से चालू हो । यद्यपि बीचबीच में कुछ ऐसे जैन मुनि हुए हैं, जिन्होंने लम्बे समय तक ध्यान की साधना की है।। जब आचार्य श्री तुलसी का कलकत्ते में चातुर्मास था, तो एक दिन रात को जब उनसे मिलने गया, तब अपना मनोभाव व्यक्त किया कि आपने साधु-साध्वियों में पढ़ाई तो बहुत अच्छी चालू कर दी है । थोड़े वर्षों में ही काफी विद्वान्, लेखक, लेखिकाएं तैयार कर दी, पर आगमोक्त ध्यान की परम्परा चालू करने की बड़ी कमी नजर आती है, तो आचार्य श्री ने कहा कि आपकी बात बहुत ठीक है, हम भी चाहते हैं। आपकी जानकारी में कोई ध्यानयोगी या साधक जैनों में हो, तो उसका तथा जैन योग-संबंधी ग्रन्थों का नाम बतलाइये। तो मैंने अपने पूज्य गुरु सहजानन्द जी का नाम बतलाया, जो वर्तमान में बहुत अच्छे ध्यान योगी हैं . साथ ही कुछ ध्यान संबंधी ग्रन्थों की भी सूचना दी। मुझे यह देखकर और जानकर बहुत ही प्रसन्नता होती है कि आचार्य श्री तुलसी जी, मुनि श्री नथमल जी, मुनि श्री किशनलाल जी आदि के प्रयत्न से तेरापंथी साधु-साध्वियों में ध्यान की अच्छी प्रगति हुई है । मुनि श्री नथमल जी के गंभीर और ठोस चिन्तन ने ध्यान की जैन पद्धति, जिसे प्रेक्षा-ध्यान नाम दिया गया है, सबके लिए सुलभ कर दी है। सैकड़ों श्रावक-श्राविकाएं ही नहीं, जैनेतर भी इससे लाभ उठा रहे हैं । इस युग की मैं इसे बहत बड़ी उपलब्धि मानता हूं। मुझ यह खण्ड ४, अंक ७-८ ३५१
SR No.524517
Book TitleTulsi Prajna 1979 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1979
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size12 MB
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