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मैं तो आपकी कृति हूं
- युवाचार्य श्री महाप्रज्ञ
आचार्यवर ! मैं अपने आप से नहीं जाना जाता । मैं तो आपकी कृति हूं । मेरा अपना कुछ भी नहीं है । एक दिन में इतना सबका प्यार पाकर मैं गद्गद् हो रहा हूँ । श्रमण संघ ने अभिनन्दन किया। मुनि बुद्धमल जी ने उसे भेंट किया और उन्होंने आज की घटना भी बताई । साथी-साथी ही रहेगा । जो पचास वर्षों से साथी रहे हैं। दस वर्ष की अवस्था से साथी हैं । हमारे धर्म-संघ में आज जो शक्ति है, वह सौभाग्य से ही मिलती है । मुझे गर्व है कि तेरापंथ धर्म संघ में इतने युवक साधु और साध्वियाँ प्रबुद्ध हैं । एक आचार्य को इतने योग्य शिष्य और शिव्याएं भाग्य से ही मिलते हैं । आचार्य तुलसी धन्य हैं, जिन्हें ऐसे योग्य साधु-साध्वियाँ मिले हैं ।
मैं आज आचार्य श्री का नेतृत्व पाकर गौरवान्वित हूँ, महान् धर्म-संघ का उत्तराधिकार पाकर गौरवान्वित हूँ, महान् आचार्य का उत्तराधिकार पाकर गौरवान्वित हूँ । एक बार फिर आचार्यवर को वन्दन करता हुआ आशीर्वाद चाहता हूँ कि आप शक्ति प्रदान करें, ऊर्जा प्रदान करें ताकि जो सौंपा है, उसे निभाने में सफल हो सकू ।
आचार्य प्रवर ने कहा - तथास्तु ।
*युवाचार्य श्री महाप्रज्ञ द्वारा अभिनन्दन के उत्तर में प्रस्तुत वक्तव्य । 'अकारण वत्सल'
विक्रम संवत २०१८ का मर्यादा महोत्सव गंगाशहर था। आचार्य प्रवर ने मेरे साथ दीक्षित दो मुनियों को बहिबिहारी संतों के साथ भेज दिया । मुझे भी भेजने की बात चल रही थी । लेकिन युवाचार्य श्री महाप्रज्ञ जी ने निवेदन किया - इन्हें मत भेजिये | आचार्य श्री युवाचार्य श्री की बात पर विशेष ध्यान देते थे । उन्होंने उनकी बात मान ली । और मुझे अपने पास ही रखा तथा युवाचार्य श्री का सान्निध्य दिया । इसे मैं अपना बड़ा सौभाग्य मानता हूं कि युवाचार्य श्री मेरे लिए अकारण वत्सल बने और मुझे प्रगति का अवसर दिया ।
- मुनि विमल कुमार
खण्ड ४, अंक ७-८
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