SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 29
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मैं नये दायित्व के प्रति समर्पित रहूंगा * युवाचार्य श्री महारश भाग्यविधाता आचार्यप्रवर, महाश्रमणी साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा जी, श्रमण-श्रमणी परिवार एवं अन्तरङ्ग परिषद् के सदस्य ! मैं सबसे पहले अपने उस गुरु को नमस्कार करता हूं, जिसने मेरी प्रज्ञा को प्रजागृत किया और चित्त को निर्मल किया, जो भिन्न नहीं 1 गुरु कभी भिन्न नहीं होता है । गुरु हो और भिन्न हो तो मानना चाहिए कि गुरु नहीं है । गुरु गुरु ही होगा । यह नहीं हो सकता कि गुरु भी हो और आलोच्य भी हो। दोनों बातें कभी एक साथ नहीं होती । मेरा बचपन का एक संकल्प था कि जिसको गुरु मान लिया, उसे गुरु ही मानना है, उसको और कुछ नहीं मानना है । गुरु भी मानते चले जाएं और सब कुछ भी करते चले जाएं, इससे दुर्भाग्यपूर्ण विडम्बना जीवन में और कुछ हो नहीं सकती । गुरु अभिन्न ही होगा, आत्मा से भिन्न नहीं होगा । मैं मानता हूँ, मेरे जीवन की सफलता का एक सूत्र था - - मैंने मुनि तुलसी और आचार्य तुलसी को गुरु रूप में स्वीकार किया । मैं वैसा कोई भी काम नहीं करूंगा, जिससे मुनि तुलसी और आचार्य तुलसी अप्रसन्न हों । इस सूत्र ने मुझे हर बार उवारा और मेरा पथ प्रशस्त किया । मैं आज इस श्रमण श्रमणी परिषद् में आचार्यप्रवर के प्रति अपनी सारी श्रद्धा समपित करना चाहूंगा और मानता हूँ कि यह पुनरावृत्ति ही कर रहा हूँ । संस्कारवश तो मैंने जिस दिन दीक्षा ली थी, उस दिन श्रद्धा ही नहीं अपने आपको सर्वथा समर्पित कर चुका था । मेरे पास ऐसा कुछ बचा नहीं था, जिसे मैं अपना कहूँ । पर इस अवसर पर उस बात को पुनः दुहराना भी जरूरी समझता हूँ और इसलिये समझता हूँ कि आचार्यप्रवर ने अपने विश्वास को दुहराया है । मुझ पर अपना भरोसा दुहराया है । मैं मानता हूँ कि विश्वास मुझ पर हमेशा बना रहा है और उसका सबसे बड़ा साक्षी मैं स्वयं हूँ कि मुझ पर कितना विश्वास रहा । किन्तु उस विश्वास को आचार्यप्रवर ने समूचे संघ के समक्ष जिस प्रकार * युवाचार्य श्री महाप्रज्ञ द्वारा आचार्य श्री तुलसी के सान्निध्य में दिनाङ्क ७-२-७६ को साधु-साध्वियों की एक अन्तरङ्ग गोष्ठी में व्यक्त उद्गार । खण्ड ४, अंक ७-८ ३२ ६
SR No.524517
Book TitleTulsi Prajna 1979 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1979
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy