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________________ अध्यापक जब बादशाह शाहजादे कन्धे पर पोटली रख सकते हैं तो जाओ तुम्हारी सुनवाई नहीं होगी । हम दोनों फंस गये । न तो कालूगणी ने सुनाई की और हमने सोचा कि बात मुनि तुलसी तक पहुंच जायेगी तो और कठिनाई होगी। मैं अनुभव करता हूँ कि आचार्यश्री ने जिस अनुशासन के साथ हमारे जीवन का निर्माण किया है, ऐसे अध्यापक भी शायद नहीं मिलेंगे । गुरुदेव ! मैं अब तक अपने साज में था और मेरे पास कुछ सन्त थे । काम करता था । आज मैं किसी विशेष का नहीं रहा । किसी व्यक्ति विशेष का नहीं रहा । न मेरा साज रहा, न मेरे पास रहने वाले साधु रहे, न कोई दूसरे रहे । मैं तो अब सबका हो गया हूँ । मैं आशा करता हूं कि साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका, सब मुझे मेरा काम करने में पूरा-पूरा सहयोग देंगे। मैं चाहूँगा कि आचार्यवर का यह आशीर्वाद, असीम करुणा मुझे निरन्तर उपलब्ध रहे। मैं अपने महान् आचार्यों की परम्परा को और उज्ज्वल बना सकूं, तेरापंथ धर्मसंघ के गौरव को और बढ़ा सकूं, यही आशीर्वाद आचार्यवर से चाहता हूँ । 1:0:1 'तुम निश्चिन्त रहो' विक्रम संवत २०२१ का मर्यादा महोत्सव बालोतरा था । आचार्य प्रवर ने महोत्सव के दिन साधु साध्वियों के लिए दो श्रेणियाँ नियुक्त की - १ - भावियप्पा - भावितात्मा २ -- सेवट्ठी -- सेवार्थी । दोनों श्रेणियों के लिए उसी समय साधु-साध्वियों के नाम मांगे गये । कुछ साधु-साध्वियों ने अपने नाम भी दिये । मुझे युवाचार्य श्री महाप्रज्ञजी ने सेवट्ठी श्रेणी के लिए नाम देने का संकेत दिया, मुझे हिचकिचाहट हुई। मेरे में इतनी योग्यता कहाँ थी। लेकिन मैं युवाचार्य श्री के इंगित को कैसे टाल सकता था । आखिर मैंने अपना नाम दे दिया । उसके बाद कुछ संतों ने मुझसे कहा- अब तुम्हारा अध्ययन ठप्प हो जायेगा, क्योंकि तुमने सेवी श्रेणी में अपना नाम दे दिया । अब आचार्य श्री तुम्हें जब कभी भी जहाँ जरूरत होगी भेज देंगे । मैंने युवाचार्य श्री को संतों का कथन निवेदन किया । तब युवाचार्य श्री ने फरमाया- तुम निश्चिन्त रहो । युवाचार्य श्री के ये शब्द मेरे लिए आलंबन बन गये और मैं निश्चिन्त हो गया । — मुनि विमल कुमार खण्ड ४, अंक ७-८ ३२७
SR No.524517
Book TitleTulsi Prajna 1979 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1979
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size12 MB
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