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खण्ड ४, अंक ७-८
पाँच मुक्तक
मुनि मोहनलाल "शा ल"
(१)
तोली जाये तो हर बात तुल जाए, खोली जाये तो हर गाँठ खुल जाए । यह सब आदमी पर ही निर्भर है, वह धोए तो हर चद्दर धुल जाए ॥ (२)
हार को जीत में बदलने की कला सीखो, रुदन को गीन में बदलने की कला सीखो । अगर जिंदगी की असलियत को पाना है तो बैर को प्रीत में बदलने की कला सीखो || (३) कर्म नहीं है तो नारों से क्या होगा, आदर्श नहीं है तो आकारों से क्या होगा ।
दान की घड़ी में तो भाग खड़े होते हो, वीर काव्यों में लिखी हुंकारों से क्या होगा ।। (४)
काम धोखे का है, बात ईमान की है, पूजा शैतान की है, चर्चा भगवान् की है । दुनियाँ की दुःख दुविधा, मिटे तो कैसे मिटे, सीरत हैवान की है, सूरत इन्सान की है ॥ (५)
समझ कम है लेकिन समझ का भार ज्यादा है, प्यार कम है पर प्यार का इज़हार ज्यादा है । दिखावे के इस जमाने में जन्नत में भी देखो, काम कम है पर काम का प्रचार ज्यादा है ॥
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