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________________ चोथ भक्त से तीन बीस तक, लड़ी बद्ध कर पाये। चौदह दिन का अंक छोड़कर, क्रमशः ऊर्ध्व चढ़ाये ॥१०॥ चार साल तक लगातार तप, किया बड़ा मुनिश्री ने। तोन छहमासी, एक बार तो साधिक सात महीने ॥११॥ उनमें पहली एक साथ में, पचखी है छहमासी । नौ की संवत् कोशीथल में, पाई है स्याबासी ॥१२॥ ढाल में चार थोकड़े करने का उल्लेख है। नोट-ख्यात तथा ढाल में सं० १९०६ में आपकी तपस्या १८७ दिन की लिखी है, पर जय सुजश में १९१ दिन एक साथ पचखने का उल्लेख है। त्यां तपसी अनोप सु तंत, आय अरज करी । दिन एक सौ इकाणुं भदंत, पचखावो हित धरी॥ जल आछण आगार, रीति मुनिवर तणी, पचखायो तप सार, मनुहार कर गण धणी। (जय सुजश ढा. ३८ गा. ३) मघवागणी रचित ढाल में उनकी बड़ी तपस्या का वर्णन ख्यात के अनुसार है। १. चौथ भक्त थी लेई करी हो गुणी० तेवीस लग सुविचार के। एक चवदै बिना मुनि तप कियो हो, केई एक बार बहु वार कै ॥ (मघवागणी रचित ढा. १ गा. ५) २. मुनिश्री ने कुल चार छह मासियां एवं एक सवा सातमासी की। उनमें तीन छहमासियां और एक सवा सातमासी लगातार चार साल सं० १६०६ में (१८७ अथवा १९१ दिन), सं० १६१० में (१६३ दिन), सं० १९११ में (१८१ दिन) और सं० १६१२ में (२१८ दिन) की। ३. चार छह मासियों में पहली छहमासी (१८७ या १६१) सं० १९०६ में कोशीथल में जयाचार्य द्वारा एक साथ पचखी। इस संबंध में जय सुजश ढा. ३८ की गा. ३ ऊपर दे दी गई है। सं० १९१० में की गई दूसरी छहमासी का स्थान प्राप्त नहीं है। ४३६ तुलसी-प्रज्ञा
SR No.524517
Book TitleTulsi Prajna 1979 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1979
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size12 MB
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