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________________ की बात पर अड़े हुए थे । भीतर ही भीतर प्रबल संघर्ष की स्थिति बनी और एक समय आया, जब उसका विस्फोट हो गया । उस समय दोनों वर्गों को एक साथ संभालना बड़ा कठिन काम था । क्योंकि दोनों पक्षों का अपना-अपना आग्रह इतना पुष्ट था कि उनकी सीधी टकराहट की संभावना स्पष्ट थी । आचार्यप्रवर ने उस तनावपूर्ण वातावरण में किसी भी पक्ष को उपेक्षित नहीं किया और किसी को अतिरिक्त प्रोत्साहन नहीं दिया । प्राचीन और नवीन धारणाओं में समुचित सामञ्जस्य स्थापित कर आपने ऐसा मार्ग प्रस्तुत किया, जिस पर चलने में किसी भी पक्ष को कठिनाई नहीं हुई । धर्मसंघ की मौलिक विचारधारा को सुरक्षित रखते हुए नए मूल्यों को अपनी सहमति देकर आचार्यश्री ने अभूतपूर्व काम किया है । तेरापंथ संघ की प्रगतिशीलता का सबसे बड़ा हेतु यह है कि इसकी जड़ें बहुत गहरे में हैं और शाखाओं-प्रशाखाओं को विस्तार पाने के लिए सामने असीम अवकाश है । यहाँ शाश्वत मूल्यों की प्रतिष्ठा और सामयिक मूल्यों में चिन्तनपूर्वक परिवर्तन का सिद्धान्त सहज रूप से स्वीकृत है । इस अभिक्रम से तेरापंथ ने युग चेतना को ही अभिभूत नहीं किया है, अपितु वह स्वयं भी अधिक उजागर हुआ है। इस दिशा में आचार्यश्री ने अनेकान्त को व्यवहार के धरातल पर उपस्थित कर हर विरोधी स्थिति को शान्तिपूर्ण पद्धति से निपटाने का अनूठा उदाहरण प्रस्तुत किया है । अणुव्रत आन्दोलन एक धार्मिक परम्परा का वाहक संघ अपनी चिरपोषित परम्पराओं से एक ओर हटकर व्यापक स्तर पर धर्म-क्रान्ति की चर्चा करे, यह एक नई बात होती है । सामान्यतः धर्म सम्प्रदायों का काम होता है-धर्म की रूढ़ धारणाओं से जनता को परिचित कराना । यद्यपि तेरापन्थ धर्मसंघ एक क्रान्ति की फलश्रुति है, फिर भी उसे एक सम्प्रदाय से अधिक कई मान्यता प्राप्त नहीं थी । कुछ व्यक्ति तो इसे अन्य जैन-सम्प्रदायों के समकक्ष मान्यता देने के पक्ष में भी नहीं । यही कारण है कि तेरापन्थ की मौलिक चिन्तनधारा को लगभग बीस दशकों तक विरोधी ज्वाला का ताप झेलना पड़ा । किन्तु जब से अणुव्रत दर्शन की बात सामने आई, तेरापन्थ का स्वरूप बदल रहा है और उसके सम्बन्ध में लोगों की धारणाएँ भी बदल गई हैं। 'अणुव्रत' राष्ट्रीय चरित्र को समुन्नत बनाने का अभिक्रम है । जिस समय राष्ट्र के नागरिकों की नैतिक मूल्यों में आस्था कम होने लगी, स्वार्थ चेतना विस्तार पाने लगी और जन-जीवन संत्रस्त हो गया, उस समय आपने व्यापक स्तर पर नैतिकता को प्रतिष्ठित करने का आह्वान किया । किसी सम्प्रदाय विशेष के आचार्य द्वारा एक असाम्प्रदायिक राष्ट्रीय अभियान चलाने का वह विरल अवसर तेरापन्थ धर्मसंघ को मिला । प्रबुद्ध व्यक्ति अणुव्रत से प्रभावित हुए । समाचार पत्त्रों में उसकी चर्चा हुई। लोगों ने समझा कि रूढ़ता, शोषण, हिंसा, युद्ध, घृणा आदि धर्म के दोष हैं । जिस धर्म में इनका प्रतिकार नहीं है, वह मानव धर्म नहीं हो सकता । धर्म के फलित हैं- रूपान्तरण, समता, अहिंसा, शान्ति और मानवीय एकता । आचार्यश्री ने अणुव्रत के मंच से धर्म-क्रान्ति के पाँच सूत्र दिए १. बौद्धिकता ४२८ तुलसी- प्रज्ञा
SR No.524517
Book TitleTulsi Prajna 1979 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1979
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size12 MB
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