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________________ आचार्य - प्रवर ने एक बहुत ही दूरदर्शितापूर्ण कार्य ही नहीं किया है, पर भारत-भूमि और दार्शनिक जगत् को एक अनुपम उपहार दिया है । - श्रीचन्द रामपुरिया - कुलपति, जैन विश्व भारती, लाडनूं जैन विद्या के प्रचार-प्रसार की जो धारा आचार्य प्रवर की प्रेरणा और सान्निध्य में प्रवाहित हुई है, निश्चित ही अब वह निरन्तर गतिमान होती रहेगी । भारतीय धर्म और विद्या के क्ष ेत्र में तेरापंथ का यह बौद्धिक अनुदान हमेशा स्मरण रहेगा । - प्रेम सुमन जैन उदयपुर विश्वविद्यालय मुनिश्री नथमल जी आचार्यश्री के उत्तराधिकारी होंगे - यह मेरी अन्तरात्मा बहुत वर्षों पहले कह चुकी थी । वह आज प्रत्यक्ष हुआ । आशा ही नहीं, युवाचार्यश्री के सान्निध्य में संघ का काम बहुत बढ़ेगा । पूर्ण विश्वास है कि ---- नागरमल सहल रीडर, जोधपुर विश्वविद्यालय युवाचार्य श्री महाप्रज्ञ की विद्वत्ता, शालीनता और सृजन क्षमता से सभी परिचित हैं । उनका साहित्य उनके उदात्त और सुलझे विचारों का प्रमाण है । विश्वास करना चाहिए कि उनके नेतृत्व में अणुव्रत आन्दोलन नये आयामों की खोज करता हुआ निरन्तर प्रगति के मार्ग पर बढ़ता जायेगा । - विष्णु प्रभाकर आचार्य प्रवर ने महाप्रज्ञश्री को सर्वथा उपयुक्त समय पर उपयुक्त पद पर मनोनीत कर संघ पर महान उपकार किया है। आचार्यश्री ने एक देदीप्यमान रत्न को शत गुणी आभा से मंडित कर समूचे संघ को आलोक प्रदान किया है और साथ-साथ विश्व के एक प्रख्यात दार्शनिक को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर जैन दर्शन को विश्वव्यापी बनाने के मार्ग को भी सहज प्रशस्त बना दिया है । - महेन्द्र जैन, जयपुर अभिनन्दनीय हैं हमारे परमाराध्य आचार्यप्रवर की यह दूरदर्शिता कि उन्होंने अपने पद की पवित्र गरिमा अनुरूप वैसे श्रमणवर्य का चयन कर संघ-संपदा का समग्र उत्तराधिकार, तदनुरूप क्षमता व योग्यता के धनी मुनि पुंगव को प्रदान कर, धर्म-शासन के भावी नेतृत्व के महत्त्वपूर्ण प्रश्न को समाहित कर सबके मन में आनन्द का अजस्र स्रोत प्रवाहित कर दिया । खण्ड ४, अंक ७-८ ४१५
SR No.524517
Book TitleTulsi Prajna 1979 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1979
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size12 MB
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