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________________ समुच्चय शुभ भाव लेश्या ( तेज:, पद्म, शुक्ल) में कौनसे भाव पाये जाते हैं, पूछा जाय तो श्रीषशामिक को छोड़कर चार भाव - औदयिक, क्षायिक, क्षायोपशमिक औरपारिणामिक कहना चाहिए । एउदै भाव ते किसो कर्म नो, उदे निपन कहिवाय । नाम कर्म नो उदे निपन छे, पुन्य बंधे तिण न्याय ||22|| होता है । एखायक भाव ते किसा कर्म नो, खायक निपन कहिवाय । अंतराय कर्म नो खायक निपन छै, वीर्यं लब्धि प्रवरताय || 2311 एखयोपशम भाव ते किसो कर्म नो, खयोपशम निपन कहिवाय । अंतराय कर्म रो खयोपशम निपन छै, वीर्यं चंचल सू कर्म खपाय 112411 प्रश्न- ये तीनों शुभ लेश्याएं औदयिक भाव हैं, तो कौन से कर्म का उदयनिष्पन्न भाव है ? उत्तर - नाम कर्म का उदय निष्पन्न भाव है, क्योंकि इनके द्वारा पुण्य का बंध - प्रश्न – ये क्षायिकभाव हैं तो कौन से कर्म का क्षायक- निष्पन्न भाव है ? उत्तर—अन्तराय कर्म का क्षायक- निष्पन्न भाव है, क्योंकि इससे वीर्य (शक्ति) लब्धि की प्रवृत्ति (व्यापार) होती है । प्रश्न – ये क्षयोपशम भाव हैं तो कौन से कर्म का क्षयोपशम- निष्पन्न भाव है ? उत्तर -- अन्तराय कर्म का क्षयोपशम निष्पन्न भाव है, क्योंकि वीर्य की चंचलता (करण वीर्यं) से ही कर्मों का क्षय होता है । शुभ भाव लेश्या ने धर्म लेश्या कही, तिण सूं खायक खयोपशम भाव । शुभ भाव लेश्या ने कर्म लेश्या कही, उदे भाव इण न्याव ||25|| शुभ भाव लेश्याओं को धर्म लेश्या कहा है, अतः वे क्षायिक और क्षायोपशमिक भाव हैं। शुभ भाव लेश्याओं को कर्म लेश्या कहा है, इसलिए वे औदयिक भाव हैं । इण न्याव । शुभ भाव लेश्या धर्म लेश्या कही, कर्म कटे शुभ भाव लेश्या ने कर्म लेश्या कही, पुन्य बंधे उदे भाव ||26|| शुभ भाव लेश्याओं से कर्म कटते हैं, इसलिए उन्हें धर्मं लेश्या कहा गया है। शुभ भाव लेश्याओं से पुण्य का बंध होता है, इसलिए उन्हें कर्म लेश्या व औदयिक भाव कहा गया है । खायक खयोपशम भाव थी, पुन्य नहीं बंधे लिगार । उदे भाव सू ं कर्म कटे नहीं, तिण सूं शुभ लेश्या भाव च्यार ॥27॥ खण्ड ४, अंक ३-४ Jain Education International For Private & Personal Use Only २१६ www.jainelibrary.org
SR No.524516
Book TitleTulsi Prajna 1978 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1978
Total Pages78
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size5 MB
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