________________
विद्यानन्द, माणिक्यनन्दि, हेमचन्द्र आदि आचार्यों के अनुसार अनुमान का स्वरूप इस प्रकार बतलाया गया है
साधनात् साध्यविज्ञानमनमानम् ।। साधन से साध्य का जो ज्ञान होता है वह अनुमान कहलाता है । अनुमान में साध्य और साधन ये दो प्रमुख तत्त्व हैं । जिसकी सिद्धि की जाती है वह साध्य कहलाता है और जिसके द्वारा सिद्धि की जाती है वह साधन है। जैसे पर्वत में धूम को देखकर अग्नि का जो ज्ञान होता है वह अनुमान है। यहां धूम साधन है और अग्नि साध्य है । हर एक व्यक्ति को धूम देखने पर अग्नि का ज्ञान नहीं हो सकता है। इसकी कुछ प्रक्रिया है । धूम से वह्नि का ज्ञान करने के लिए पहले धूम और वह्नि में व्याप्ति या अविनाभाव सम्बन्ध का ज्ञान होना चाहिए। इसके बाद किसी स्थान-विशेष में धूम देखने पर पूर्वगृहीत अविनाभाव सम्बन्ध का स्मरण होना चाहिए । तब धूम से वह्नि का ज्ञान संभव होता है ।
अनुमान के प्रकरण में साधन और साध्य का लक्षण जानना अत्यावश्यक है। आचार्य माणिक्यनन्दि ने परीक्षामुख में साधन का लक्षण इस प्रकार बतलाया है
साध्याविनाभावित्वेन निश्चितो हेतुः ।। साध्य के साथ जिसका अविनाभाव निश्चित हो वह हेतु कहलाता है । साधन, हेतु और लिङ्ग ये तीनों पर्यायवाची हैं। अविनाभाव (बिना भाव न) का अर्थ है-साध्य के बिना जिस हेतु की सत्ता संभव न हो । अग्नि की सत्ता के बिना त्रिकाल में भी धूम की सत्ता संभव नहीं है । अतः धूम का वह्नि के साथ अविनाभाव है । इसी को अन्यथानुपपत्ति भी कहते हैं । अन्यथासाध्य (अग्नि) के बिना जिस (धुम) की अनुपपत्ति अर्थात् सद्भाव न हो वह अन्यथानुपपत्ति है। इसीलिए आचार्य विद्यानन्द ने तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक में साधन का लक्षण इस प्रकार बतलाया है
"अन्यथानुपपत्त्येकलक्षणं तत्र साधनम् ।" अर्थात् साधन वह है जिसका एकमात्र लक्षण अन्यथानुपपत्ति है । परीक्षामुख में साध्य का लक्षण इस प्रकार बतलाया है
इष्टमबाधितमसिद्ध साध्यम्। साध्य वह होता है जो इष्ट हो, अबाधित हो और असिद्ध हो । यहाँ इष्ट विशेषण वादी की अपेक्षा से है और असिद्ध विशेषण प्रतिवादी की अपेक्षा से है । वादी प्रतिवादी के लिए साध्य की सिद्धि करता है । अतः वह ऐसे साध्य की सिद्धि करेगा जो स्वयं उसे इष्ट हो। प्रतिवादी के लिए साध्य की सिद्धि तभी की जाती है जब उसे वह साध्य असिद्ध हो। जो
1. परीक्षामुख । 3/14 2. वही। 3/15 3. वही। 3/20
तुलसी प्रज्ञा
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org