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________________ दो ठाणाई अपरियाणेत्ता आया जो केवलं केवलणाणं उप्पाडेज्जा, तं जहा - आरंभे चैव परिग्गहे चेव । दो ठाणाई परियाणेत्ता आया केवलिपण्णत्तं धम्मं लभेज्ज सवणयाए, तं जहाआरंभे चेव, परिग्गहे चेव । दो ठाणाई परियाणंत्ता आया केवलं बोधि बुज्भेज्जा, तं जहा- आरंभे चेव, परिग्गहे चेव । दो ठाणाई परियाणेत्ता आया केवलं भविता अगाराओ अणगारियं पव्वज्जा, तं जहा- आरंभ चेव, परिग्गहे चेव । दो ठाणाई परियाणेत्ता आया केवलं बंभचेरवासमा वसेज्जा, तं जहा- आरंभे चेव, परिग्गहे चेव । दो ठाणाई परियाणेत्ता आया केवलेणं संजमेणं संजमेज्जा, तं जहा- आरंभे चेव, परिगहे चेव । दो ठाणाई परियाणेता आया केवलेणं संवरेण संवरेज्जा, तं जहा- आरंभे चेव, परिग्गहे चैव । दो ठाणाई परियाणेत्ता आया केवलमाभिणिबोहियणाणं उप्पाडेज्जा, आरंभे चैव परिग्गहे चेव । जहा - दो ठाणाई परियाणत्ता आया केवलं सुयणाणं उप्पाडेज्जा, तं जहा- आरंभे चेव, परिग्गहे चेव । दो ठाणाई परियाणेत्ता आया केवलं ओहिणाणं उप्पाडेज्जा, तं जहा - श्रारंभ चेव, परिग्गह चेव । दो ठाणाई परियाणेता आया केवलं मणपज्जवणाणं उप्पाडेज्जा, तं जहाआरंभे चैव परिग्गहे चैव । दो ठाणाई परियाणेत्ता आया केवल केवलणाणं उप्पाडेज्जा तं जहा - प्रारंभे चेव, परिग्गहे चेव । ६० Jain Education International आरम्भ और परिग्रह - इन दो स्थानों जाने और छोड़े बिना आत्मा विशुद्ध केवल ज्ञान को प्राप्त नहीं करता । आरम्भ और परिग्रह — इन दो स्थानों को जान कर और छोड़ कर आत्मा केवलीप्रज्ञप्त धर्म को सुन पाता है । आरम्भ और परिग्रह — इन दो स्थानों को जान कर और छोड़ कर आत्मा विशुद्ध बोधि का अनुभव करता है । आरम्भ और परिग्रह — इन दो स्थानों को जान कर और छोड़ कर आत्मा मुड हो, गृह त्याग, अनगारिता ( साधुपन ) को पाता है । आरम्भ और परिग्रह - इन दो स्थानों को जान कर और छोड़ कर आत्म सम्पूर्ण ब्रह्मचर्य वास को प्राप्त करता है । आरम्भ और परिग्रह — इन दो स्थानों को जान कर और छोड़ कर आत्मा सम्पूर्ण संयम के द्वारा संयत होता है । आरम्भ और परिग्रह – इन दो स्थानों को जान कर और छोड़ कर आत्मा सम्पूर्ण संवर के द्वारा संवृत होता है । आरम्भ और परिग्रह — इन दो स्थानों को जान कर और छोड़ कर आत्मा विशुद्ध आभिनिबोधिक ज्ञान को प्राप्त करता है । आरम्भ और परिग्रह -- इन दो स्थानों को जान कर और छोड़ कर आत्मा विशुद्ध श्रुतज्ञान को प्राप्त करता है । आरम्भ और परिग्रह- इन दो स्थानों को जान कर और छोड़ कर आत्मा विशुद्ध अवधि ज्ञान को प्राप्त करता है । आरम्भ और परिग्रह -- इन दो स्थानों को जान कर और छोड़ कर आत्मा विशुद्ध मनः पर्यवज्ञान को प्राप्त करता है । आरम्भ और परिग्रह - इन दो स्थानों को जान कर और छोड़ कर आत्मा विशुद्ध केवल ज्ञान को प्राप्त करता है । - ठाणं, २/४१-६२ तुलसी प्रज्ञा www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only
SR No.524515
Book TitleTulsi Prajna 1978 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya, Nathmal Tatia, Dayanand Bhargav
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1978
Total Pages142
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size3 MB
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