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काल तक का कार्य समाप्तप्राय है। प्रथम तीन आचार्यों के काल में हुई साध्वियों के जीवनचरित्र तक का कार्य सम्पूर्ण किया गया है ।
श्री संतोषचन्द जी बड़रिया गद्य में साधु-साध्वियों के जीवन-चरित्र लिखने में अहनिश लगे रहे। उन्होंने बड़े परिश्रम-पूर्वक सप्तम आचार्य डालूगणि तक के साधु-साध्वियों के चरित्र-लेखन कार्य पूरा किया किया है। इस महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक कार्य के लिए उनकी सेवाएँ चिरस्मरणीय रहेंगी। आचार्य श्री के दैनिक प्रवचनों का संकलन
आचार्य श्री के दैनिक प्रवचनों का संकलन-कार्य मुनि श्री धर्म रुचि जी करते हैं, जिसके करीब 3000 पृष्ठ धारे जा चुके हैं, उन्हें प्रकाशित करने का कार्य शीघ्र ही हाथ में लिया जा रहा है। आचार्य श्री के प्रवचनों का प्रकाशन जैन समाज की बहुत बड़ी निधि होगी। जैन विद्या परीक्षाओं का आयोजन
जैन विश्व भारती ने धार्मिक परीक्षाओं के आयोजन का महत्त्वपूर्ण कार्य अपने हाथ लिया है। अनेक कठिनाइयों के बावजूद स्वल्प समय में लिये गये निर्णय को सुचारु-रूप से क्रियान्वित किया गया। परीक्षाओं का आयोजन अखिल भारतीय स्तर पर हुआ, जिसमें 3098 परीक्षार्थियों ने आवेदन-पत्र भरे । 2543 परीक्षार्थी परीक्षा में बैठे, 1975 परीक्षार्थी उत्तीर्ण हुये, 628 परीक्षार्थी अनुत्तीर्ण हुये । परीक्षाफल 75.30% रहा ।
दो स्थानों पर पुनः परीक्षा ली गई। 43 एवं 10 परीक्षार्थियों में से 21 एवं 5 परीक्षार्थी बैठे, क्रमशः 9 एवं 4 परीक्षार्थी उत्तीर्ण हुये तथा 12 एवं 1 अनुत्तीर्ण रहे । परीक्षा फल 42.85 एवं 80% रहा।
अगले बर्ष (1978-79) की परीक्षाओं के लिए निम्न पाँच पुस्तकें प्रकाशित करने का निर्णय लिया गया था, जो प्रकाशित हो चुकी हैं।
1. जैनविद्या, भाग 1 2. जैन विद्या, भाग 2 3. जैन विद्या, भाग 3 4. जैन परम्परा का इतिहास 5. जैन दर्शन में तत्त्वमीमांसा उक्त कार्य कुलपति जी एवं निदेशक जी की संरक्षता में सम्पादित होता है।
मुनि श्री सुमेरमल जी 'सुदर्शन' ने धार्मिक परीक्षा के पाठ्यक्रम के निर्धारण में अपमा अमूल्य मार्ग दर्शन प्रदान किया है ।
-- डॉ. कमलेश कुमार जैन
एवं डॉ० श्रीमती पुष्पा गुप्ता
खंड ४, अंक २
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