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________________ कठोर तपस्या आरम्भ की। वे मुह में पत्थर का टुकड़ा रख कर वायु का प्राहार करते हुए मौन रहते थे (37/12)। 193 इस अवस्था में उन्होंने छह महीने व्यतीत किए (37/13)104 । गान्धारी केवल जल पीकर रहती थी । कुन्ती मास-मास का उपवास करती थी । संजय छठे समय अर्थात दो दिन का उपवास किया करते थे (37/14)105 । धृतराष्ट्र का कोई निश्चित स्थान नहीं रह गया था। वे वन में सब ओर विचरते रहते । गान्धारी आदि सब उनका अनुसरण करते (37/16) एक दिन जोर की हवा से दावाग्नि प्रज्वलित हो उठी । वन आग से घिर गया । (37/19,21) । अग्नि को निकट आती जान धृतराष्ट्र बोले : संजय ! तुम अपने त्राण के लिए कहीं चले जाओ। हम लोग तो यहीं अपने को अग्नि में होम कर परम गति प्राप्त करेंगे (37/24)106 | हम लोग स्वयं गृहस्थाश्रम का परित्याग करके चले आये हैं। जल, अग्नि तथा वायु के संयोग से अथवा उपवास करके प्राण त्यागना तपस्वियों के लिए प्रशंसनीय माना गया है (37/27/28) 1107 इसके बाद धृतराष्ट्र ने मन को एकाग्र किया और गान्धारी तथा कुन्ती के साथ पूर्वाभिमुख होकर बैठ गए और योगयुक्त हो गए । वे इन्द्रिय समुदाय को रोक कर काष्ठ की भांति निश्चेष्ट हो गए ।108 (37/29-31) । और तीनों ही दावाग्नि में जल कर भस्म हो गए 103. आतस्ये स तपस्वीव्रतं पिता तव तपोधनः ॥ वीटाँ मुखे समाधाय वायुभक्षोऽभवन्मुनिः ।। 104. वने स मुनिभिः सर्वैः पूज्यमानो महातपाः। त्वगस्थिमात्रशेष: स षण्मासानभवन्नृपः ॥ 105. वयमत्राग्निनायुक्ता गमिष्यामः परां गतिम् । तमुवाच किलोदिग्नः संजयो वदतां वरः । 106. गान्धारी तु जलाहारा कुन्ती मासोपवासिनी। __ संजयः षष्ठभुक्तेन वर्तयामास भारत । 107. नैष मृत्युनिष्टो नो निःसृतानां गृहात् स्वम् । जलमग्निस्तथा वायुरथवापि विकर्षणम् ॥ तापसानां प्रशस्यन्ते गच्छ संजय मा चिरम् । इत्युक्त्वा संजयं राजा समाधाय मनस्तथा । 108. प्राङ मुखः सह गान्धार्याः कुन्त्या चोपाविशत् तदा। संजयस्तं तथा दृष्ट्वा प्रदक्षिणमथाकरोत् ।। उवाचैनं मेधावी युगक्ष्वात्मानमिति प्रभो। ऋषिपुत्रो मनीषी स राजा चक्रेऽस्यतद् वचः ।। सन्निरुध्येन्द्रियग्राममासीत् काष्ठोपमस्तदा । गान्धारी च महाभागा जननी च पृथा तव ॥ तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524510
Book TitleTulsi Prajna 1977 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya, Nathmal Tatia, Dayanand Bhargav
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1977
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size9 MB
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