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प्राचार्य-प्रवचन
महावीर दर्शन
विचारों की विविधता ने दर्शन को जन्म दिया। जितने विचार उतने ही दर्शन । आत्मा, लोक, परलोक, पुण्य, पाप, धर्म, कर्म आदि दर्शन जगत् के आलोच्य विषय रहे हैं । इन विषयों पर जो स्वतन्त्र विचार विकसित हुए उन्होंने स्वतन्त्र दर्शन का रूप ले लिया और जो विचार एक-दूसरे से मिलते-जुलते थे वे परस्पर अन्तरगर्भित हो गए । भारतीय दर्शनों में मुख्य रूप से छः दर्शन मान्य हैं, जिनमें एक हैं जैन दर्शन ।
जैन दर्शन के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को स्वतन्त्र चिंतन का अधिकार है। भगवान् महावीर ने कहा-जो मैंने कहा है, वही सत्य है ऐसा समझ कर किसी तत्त्व को स्वीकार मत करो, बल्कि अपने चिन्तन की कसौटी पर वह खरा उतरे तब स्वीकार करो । परम्परा से जैन बनना बड़ी बात नहीं है । वस्तुतः जैन वह है जो जैन धर्म व दर्शन के बारे में कुछ ज्ञान रखता है। आज इस महावीर जयन्ती के अवसर पर मैं भगवान् महावीर के कुछ मौलिक विचार आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ। 1. सर्वेश्वरवाद
प्रायः यह मानवीय दुर्बलता देखी जाती है कि हर व्यक्ति दूसरों को अपने से भिन्न देखना चाहता है। एक मुहल्ले का व्यक्ति अपने पड़ोसी के ऐश्वर्य को देखकर ईर्ष्या करता है । एक राजा यह नहीं चाहता कि उसके सेवक उसकी बराबरी करने लगें । एक भगवान् अपने भक्तों को भक्त ही रखना चाहता है। पर महावीर सर्वेश्वर* इस स्तम्भ में आचार्य श्री तुलसी के प्रवचन प्रकाशित होते रहेंगे ।
खं. ३. अं. २-३
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