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चरितसंपन्नयाए णं भन्ते ! जीवे
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कि जणयइ चरितसंपन्नयाए णं सेलेसीभावं जयs । सेलेसि पडिवन्ने य अणगारे चत्तारि केवलिकम्मंसे खवेइ । तओ पच्छा सिज्झइ बुज्झइ मुच्चइ परिनिव्वाएइ सव्वखाणमन्तं करे |
खन्तीए णं भन्ते ! जीवे कि जणयइ ?
खन्तीए णं परीसहे जिइ ।
मुत्तीए णं भन्ते ! जीवे कि जणयइ ?
मुत्तीए णं प्रचिणं
श्रचिणे य जीवे
श्रपत्थणिज्जो भवइ ।
जणयइ । प्रत्यलोलाणं
प्रज्जवयाए णं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ?
प्रज्जवयाए णं काउज्जययं भावुज्जुययं भासुज्जययं श्रविसंवायणं जणयइ । अविसंवायणसंपन्नयाए णं जीवे धम्मस्स राहए भवइ ।
मद्दवयाए णं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ?
मद्दयाए णं प्रणुस्सियत्त जणयह । श्रणुस्सियत्त णं जीवे मिउमद्दव संपन्ने अट्ठ मयट्ठाणाइ निट्ठवेइ ।
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भन्ते ! चारित्र सम्पन्नता से जीव क्या प्राप्त करता है ?
चारित्र सम्पन्नता से वह शैलेशीभाव को प्राप्त होता है । शैलेशी दशा को प्राप्त करने वाला अणगार चार केवलि - सत्क कर्मों को क्षीण करता है । उसके पश्चात् वह सिद्ध होता है, बुद्ध होता है, मुक्त होता है, परिनिर्वाण होता है और सब दुःखों का अन्त करता है ।
भन्ते ! क्षमा से जीव क्या प्राप्त करता है ?
क्षमा से वह परीषहों पर विजय प्राप्त कर लेता है ?
भन्ते ! मुक्ति (निर्लोभता) से जीव क्या प्राप्त करता है ?
मुक्ति से वह अकिंचनता को प्राप्त होता है । अकिंचन जीव श्रर्थ-लोलुप पुरुषों के द्वारा अप्रार्थनीय होता हैउसके पास कोई याचना नहीं करता । भन्ते ! ऋजुता से जीव क्या प्राप्त करता है ?
ऋजुता से वह काया की सरलता, मन की सरलता, भाषा की सरलता और अवंचक वृत्ति को प्राप्त होता है । प्रवंचक वृत्ति से सम्पन्न जीव धर्म का आराधक होता है ।
भन्ते ! मृदुता से जीव क्या प्राप्त करता है ?
मृदुता से वह अनुद्धत मनोभाव को प्राप्त करता है । अनुद्धत मनोभाव वाला जीव मृदु-मार्दव से सम्पन्न होकर मद के आठ स्थानों का विनाश कर देता है ।
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तुलसी प्रज्ञा
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