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इस तरह तीसरा अध्याहार राग है। रागवश आत्महत्या करनेवालों की उदक-क्रिया आदि उचित नहीं ।
(4) आंगिरा में कहा है : 'जो प्रमादवश अग्नि, उदकादि से मरता है उसका अशौच करना चाहिए और उदक-क्रिया भी।''19
यही बात उषनस्मृति 7-350 और कूर्म पुराण उत्तरार्द्ध 23-6451 में कही गई है।
प्रमाद का अर्थ "अनवधानता किया गया है । 2 अर्थात् जहां आत्मघात इच्छा से नहीं, सावधानी के अभाव में है वहां अशौच आदि वजित नहीं हैं।
पराशर (3/10)58 के कथन पर टीका करते हुए माधव लिखते हैं : "भृगु-पतन, अग्नि-मरण आदि के लिए सद्य शौच कहा है सो ये मरण प्रमादरहित दुष्मरण के उपलक्षण रूप हैं ।"54
अत: चौथा अध्याहार होता है आत्मघात का प्रमादवश न होना।
(5) गौतम (14/11) कहते हैं "जो प्राय (महाप्रस्थान), अनाशक (आहार-त्याग) शस्त्र, अग्नि, विष, जल, फांसी अथवा प्रपतन द्वारा इच्छापूर्वक अपनी घात करते हैं, उनके लिए प्रशौच नहीं रखना चाहिए।" 55
यही बात विष्णु पुराण (3/13/17) में कथित है ।56
49. अथ कश्चित्प्रमादेन म्रियेताग्न्युदकादिभिः। तस्याशौचं विधातव्यं कर्त्तव्या चौदकक्रिया ॥
(मिताक्षरा द्वारा याज्ञ. 3/6 पर उद्ध त) 50. अथ कश्चित् प्रमादेन म्रियतेऽग्निविषादिभिः ।
तस्याशौचं विधातव्यं कार्यन्वैवोदकादिकम् ।। 51. अथकिञ्चित्प्रमादेन म्रियतेऽग्निविषादिभिः।
तस्याऽशौच विधातव्यं कार्यन्वैवोदकादिभिः ।। 52. अपरार्क-"प्रमादोऽनवधानता'। 53. भग्वग्निमरणे चैव देशान्तरमते तथा।
बाले प्रेते च सन्न्यस्ते सद्यः शौचं विधीयते ।। 54. भृग्वग्निमरणं प्रमादादिना विना दुर्मरणात्रोपलक्षणम् प्रायश्चित्तानुरोधात् ।
तन्निमित्त मरणे सति.......... सद्यः शौचं......। 55. प्रायानाशकशस्त्राग्निविषोदकोद्वन्धनप्रपतनश्चेच्छताम् ।
(मष्करि भाष्यः अन्वक्षमिति वर्तते । बुद्धिपूर्वं प्रायादिभिरात्मानं व्यापादयतां
सद्यःशौचम्) 56. सद्यश्शौचं तथेच्छातो जलाग्न्युबन्धादिषु ।
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तुलसी प्रज्ञा
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