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________________ कृच्छ्र प्रायश्चित्त करने से होती है । 40 क जो आत्मघात की चेष्टा करने पर भी बच जाता है उसकी शुद्धि के लिए कहे गए विधान हैं : (1) वशिष्ठ 23 / 16 : "जो आत्महत्याका अध्यवसाय विचार करता है उसे तीन रात्रि का व्रत करना होता है । "41 बाद के सूत्रों 17-20 में आत्महत्या का प्रयत्न करने पर भी जो बच जाता है उसे अपनी शुद्धि किस प्रकार करनी चाहिए इसका उल्लेख है । ( 2 ) संवर्त 170 : "जो आत्मघात के लिए विष खाकर अथवा अग्नि में गिर कर श्याम वर्ण अथवा विचित्र वर्ण के हो गए हैं वे छह मास तक अश्रान्त भाव से कृच्छ्र तप करें। "42 (3) लघु यम 20 - 23 : "जो मनुष्य रज्जु आदि के उपक्रम से अपनी घात करे और न मरे तो दो सौ दम से उसे दडित करे । उसके मित्र और पुत्रों में से प्रत्येक को एक दम के दण्ड से दण्डित करे । बाद में वह शास्त्रोक्त प्रायश्चित करे । जल, फांसी, अग्नि, प्रव्रज्या अनशन, विष, प्रपतन, प्राय और शस्त्राघात - इन नौ प्रकार से जो अपने घात के लिए उद्योग करते हैं वे सर्वलोकालय से बहिष्कार योग्य हैं । चान्द्रायण अथवा तप्तकृच्छ्र द्वारा उनकी शुद्धि होती है । " 43 7 : अध्याहार हिन्दू धर्मशास्त्रों के उपर्युक्त उद्धरणों में सामान्य उल्लेख है कि आत्महत्या करनेवाले का अशौच आदि करना विहित नहीं । प्रश्न है, क्या यह निषेध सब आत्महत्या करने वालों के प्रति लागू है अथवा इन वचनों के पीछे कोई अध्याहार-सीमा भी है। यहां कुछ ऐसे उदाहरण दिए जाते हैं जिनसे इन अध्याहारों का पता चलेगा : 40 क : नृणां चैवाग्निदानां च स्नानालंकारकारिणाम् । तप्तकृच्छ्रद्वये शुद्धिर पातेऽनुयायिनाम् ॥ 4. आत्महननाध्यवसाये त्रिरात्रम् । 42. विषाग्निश्यामशवलास्तेषामेवं विनिद्दिशेत् । 43. आत्मा संघातयेद्यस्तु रज्ज्वादिभिरुपक्रमैः । मृतोऽमेध्येन लेप्तव्यो जीवितोद्विशतं दमः ॥ दण्ड्यास्तत्पुत्रमित्राणि प्रत्येकं पणिकं दमम् । प्रायश्चितं ततः कुर्युर्यथाशास्त्रप्रचोदितम् ॥ जलाग्न्युद्बन्धन भ्रष्टाः प्रव्रज्यानाशकच्युताः । विषप्रपतनप्रायशस्त्रघातहताश्च ये । नवैते प्रत्यवसिताः सर्वलोकवहिष्कृताः । चान्द्रायणेन शुध्यन्ति तप्तकृच्छ्र द्वयेन वा ॥ ७४ Jain Education International For Private & Personal Use Only तुलसी प्रज्ञा www.jainelibrary.org
SR No.524510
Book TitleTulsi Prajna 1977 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya, Nathmal Tatia, Dayanand Bhargav
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1977
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size9 MB
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