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13. आप्तमीमांसा, कारिका, 89-91 । 14. कालो सहाव णियइ पुव्वकम्म पुरिसकारणेगंता ।
मिच्छत्तं तं चैव उ समासत्वो हुंति सम्मतं ॥-सन्मतितर्कप्रकरण 3-53 15. भगवती, 7-3-35 16. ज्ञाताधर्मकथा, 1-13 17. शास्त्री, देवेन्द्र मुनि, महावीर युग की प्रतिनिधि कथाएं पृ. 53 18. जैन, जगदीशचन्द्र, प्राकृत साहित्य का इतिहास, पृ. 94-95 19. द्रष्टव्य, तरगंलोला की कथा । 20. वसुदेवहिडी पृ. 31 21. शास्त्री, नेमिचन्द्र, हरिभद्र के प्राकृत कथा साहित्य का आलोचनात्मक परि
शीलन, पृ. 212 22. जह वा लुणाइ सासाइ कासओ परिणयाइ कालेण ।
इय भूयाइ कयन्तो लुणाइ जायाइ जायाइं ॥ 2-223 23. उपदेशपद, गाथा 353-356 । 24. द्रष्टव्य, लेखक का ग्रंथ---'कुवलयमाला कथा का सांस्कृतिक अध्ययन," वैशाली
1975 25. अहवा न वायव्वा दोसो कस्सवि केण कइयावि ।
पुव्वज्जिय कम्माप्रो हवंति जं सुक्ख दुक्खाई। 26. सुकुमालसामीचरिउ-पं. श्रीधर। 27. पओगवीससापरिणया वि य णं सामी ! पोग्गला पण्णत्ता । ज्ञाता. 1-12 28. ज्ञाताधर्मकथा 1-13 29. जैन, जगदीशचन्द्र, 'दो हजार वर्ष पुरानी कहानियाँ, पृ. 75 30. दशवकालिकचूर्णी पृ. 103-104 31. वसुदेवहिंडी, पृ. 145 32. द्रष्टव्य, शास्त्री, वही, तृतीय प्रकरण । 33. जइ घडियं विहडिज्जइ घडियं घडियं पुणो वि विहडेइ ।
ता घडण-विहडणाहिं होहिइ विहडफ्फडो दव्वो । कु. 66-31 34. जैन, राजाराम, पाइयगज्जसंगहो (वीयोभाओ) पृ. 34-35 35. आचार्य रजनीश, महावीर मेरी दृष्टि में, पृ. 349-386 ।
ख.३ अं. २-३
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