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________________ (7) Dr. Ralph Waldo Emerson wrote “Astrology is Astronomy brought to earth and applied to the affairs of men."7 (8). The purpose of living is to discover the purpose of living. Our ancestors taught us that Astrology was one of the keys to the solution of this enigma.8 (9) पाणिनि ने ज्योतिष को वेदों की आंखें माना है।। इस प्रकार अलग-अलग विद्वानों ने ज्योतिषशास्त्र की अलग-अलग परिभाषाएं दी हैं । सब का सामान्य अर्थ यह है कि ग्रहों, नक्षत्रों आदि का प्रभाव मनुष्य या देशों पर कैसे व क्यों पड़ता है, इसका उत्तर जिस शास्त्र से सही रूप से मिलता है उसे ज्योतिषशास्त्र कहा जाता है। जब हमें ज्योतिष शास्त्र की परिभाषा का ज्ञान हो जाता है तो यह जानना चाहते हैं कि इस शास्त्र की उत्पत्ति कहां हुई ? किसी भी शास्त्र की उत्पत्ति जानना सबसे कठिन कार्य होता है क्योंकि सभी देश अपना.अपना दावा अपने-अपने ढंग से उत्पत्ति दाता बनने हेतु करते हैं। यही बात ज्योतिषशास्त्र के विषय में भी है । यहां हम निम्न पृष्ठों में इस सम्बन्ध में विभिन्न विद्वानों व शोधकर्तायों के विचारों का विस्तृत विवेचन कर यह बताने का प्रयास कर रहे हैं कि वास्तव में ज्योतिषशास्त्र की उत्पत्ति किस देश में हुई ? (1) पाश्चात्य देशों के कुछ विद्वान् क्लूडियस टालमी (Claudius Ptolemy) को, जो कि मिश्र के पेलुसियम (Pelusium) नगर में ईसवी सन् 70 में पैदा हुआ था, ज्योतिष का पिता मानते है। जब हम इस बात की सत्यता का पता लगाने के लिए गहराई में जाते हैं तो ज्ञात होता है कि टालमी से बहुत पहले ही ज्योतिषशास्त्र प्रचलित था। जैसा कि सर आइजक न्यूटन ने लिखा है कि "पेटोसिरिस, जो मिश्र का निवासी था, ने साइस (Sais) के राजा निसेप्सस (Nicepsos) को ज्योतिष का ज्ञान दिया और वही ज्योतिष का उत्पत्तिदाता है ।10 जब हम पेटोसिरिस को ज्योतिष शास्त्र का उत्पत्तिदाता मानने के बारे में विचार करते हैं तो इस बात को भी नजरअन्दाज नहीं किया जा सकता कि फोइनी 7. Krishnamurti, K. S., Stellar Astrological Reader No 1, 1974; p. IX. 8. Ibid, p. IX 9. Tucker, William. J., (Ptolemaic Astrology, 1974, p. IX 10. Ibid, p.x ११० तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524510
Book TitleTulsi Prajna 1977 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya, Nathmal Tatia, Dayanand Bhargav
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1977
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size9 MB
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