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________________ सिरि भगवई जोड़ रचयिता श्री मज्जयाचार्य तेरापंथ सम्प्रदाय के चतुर्थ आचार्य का नाम जीतमल जी था। उन्होंने अपना उपनाम 'जय' रखा, अतः उन्हें जयाचार्य कहा जाने लगा। आपने नौ वर्ष की अवस्था में मुनि-जीवन ग्रहण किया और दो वर्ष बाद ही आप काव्य-रचना में प्रवृत्त हुए देखे जाते हैं। आपने इतिहास, तत्त्वज्ञान, आगम, उपदेश, स्तुति, जीवन-चरित्र, आख्यान, विधान, व्याकरण, दर्शन, संस्मरण आदि विषयों से सम्बन्धित कुल 128 कृतियों की रचना को जिनमें अधिकांश पद्यबद्ध हैं। इनका अनुष्टुप पद्य परिणाम 286307 ग्रंथान होता है। उनकी कृतियों में सबसे विशाल कृति भगवती की जोड़ है, जो 501 ढालों में रचित है। इसमें 4993 दोहे, 22254 गाथाएँ, 6551 सोरठे, 431 छंद, 11,323 कलश-इस प्रकार कुल 52,932 पद है। इसकी ग्रंथाग्र संख्या 60906 होती है। इस गेय पद्य-रचना में 292 रागिनियों का प्रयोग हुआ है । यह कृति सं० 1924 पौष शुक्ल 10 के दिन बीदासर में सम्पूर्ण है।। भगवई सूत्र जैनों के 11 अंगों में पाँचवाँ अंग है। यह प्राकृत भाषा में है और कृति गद्यबद्ध है। इस पर अभयदेव सूरी की टीका उपलब्ध है। श्रीमद् जयाचार्य ने इसी अंग का अनुवाद राजस्थानी भाषा में संगीतमय ढालों में अपनी कृति 'भगवती की जोड़' में दिया है। उन्होंने मूल अंग का ही अनुवाद नहीं साथ-साथ वृत्ति का भी अनुवाद किया है और जहाँ उनका अभिमत वृत्ति से भिन्न रहा, वहाँ विस्तृत वात्तिकाएँ दी हैं। राजस्थानी भाषा के ग्रन्थों में इसे सबसे बड़ा ग्रंथ होने का गौरव है और अपनी विषय-सम्पदा के कारण तो यह एक अगाध समुद्र ही है। श्रीमद् जयाचार्य ने 'भगवई' अंग और उसकी वृत्ति का अनुवाद किस पद्धति से किया है, यह तो ग्रंथ के मूल अंशों के अनुवाद को देखने से ही हृदयंगम होगा। यहाँ हम वृत्ति के प्रारंभिक अंश के अनुवाद मात्र को दे रहे हैं । वृत्ति के बीच ढाल की गाथाओं के अंक लगा दिये गए हैं, जिससे किस अंश का अनुवाद ढाल के किस पद में है इसका पता लग जायेगा । हम जयाचार्य की इस कृति के अंशों को समय-समय पर प्रकाशित करते रहेंगे। -श्रीचन्द रामपुरिया खं. ३ अं. २-३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524510
Book TitleTulsi Prajna 1977 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya, Nathmal Tatia, Dayanand Bhargav
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1977
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size9 MB
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