SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 104
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (7) विष्णु पुराण 5/38/2 में उल्लेख है कि रुक्मिणी प्रमुख आठ महिलाओं ने कृष्ण के शव के साथ अग्नि में प्रवेश किया था ।152 (8) रामायण में सती-प्रथा के खूब उदाहरण नहीं मिलते, पर इस प्रथा की ऐतिहासिक स्थिति के प्रमाण अवश्य मिलते हैं। पतिव्रता स्त्रियों का यह आचार माना जाता था कि वे मृत-पति का अनुगमन करें। (क) दशरथ के देहान्त के बाद कौशल्या विलाप करती है : मैं भी आज ही मृत्यु का वरण करूंगी। एक पतिव्रता की भांति पति के शरीर का आलिंगन करके चिता की आग में प्रवेश कर जाऊंगी ।"153 उपर्युक्त प्रसंग से स्पष्ट है कि पति की चिता की आग में प्रवेश करना पातिव्रत का उत्तम अंग माना जाता था। (ख) पतिव्रता स्त्रियां पति के मरने के बाद प्राय: जीवित रहना पसन्द नहीं करती थीं। इसी कारण हनुमान सोचने लगे : "(यदि मैं सीता का पता लगा कर नहीं लौटा तो) कृतज्ञ और सत्यप्रतिज्ञ सुग्रीव स्वयं भी प्राण विसर्जन कर देंगे। बाद में पति-शोक से पीड़ित तपस्विनी रुमा भी जान दे देगी। फिर तो रानी तारा भी जीवित नहीं रहेगी।"154 (ग) रामायण (उत्तरकाण्ड 17/15/) में अन्वारोहण की निम्न घटनाएं मिलती हैं। बलाभिमानी दैत्यराज शम्भु ने ब्रह्मर्षि कुशध्वज पर कुपित हो रात में सोते समय उनकी हत्या कर डाली। इस पर उनकी पत्नी को बड़ा दुःख हुआ और वह अपने पति ब्रह्मर्षि कुशध्वज के शव को हृदय से लगा कर चिता की आग में प्रविष्ट हो गयी 1155 152. अष्टौ महिष्यः कथिता रुक्मिणिप्रमुखास्तु याः । अपगुह्य हरेहं विविशुस्ता हुताशनम् ।। 153. साहमद्यैव दिष्टान्तं गमिष्यामि पतिव्रता। इदं शरीरमालिंग्य प्रवेक्ष्यामि हुताशनम् ।। (2/66/12) 154. दुर्मना व्यथिता दीना निरानन्दा तपस्विनी। पीडिता भर्तृ शोकेन रुमा त्यक्ष्यति जीवितम् ॥ बालिजेन तु दुःखेन पीडिता शोककशिता । पंचत्वमागता राज्ञी तारापि न भविष्यति ।। (5/13/:9-30) 155. रामायण (7117/15) ततो में जननी दीना तच्छरीरं पितुर्मम । परिष्वज्य महाभागा प्रविष्टा हव्यवाहनम् ।। ६८ तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524510
Book TitleTulsi Prajna 1977 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya, Nathmal Tatia, Dayanand Bhargav
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1977
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy