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प्रक्रिया से गुजर कर जो कुछ उपस्थित हो सका है वह अनेकानेक संयोगों, सहयोग व आशीर्वाद का फल है । इस अवसर पर उनका स्मरण एवं कृतज्ञता ज्ञापन करना मेरा कर्तव्य है।
सर्वप्रथम युगप्रधान आचार्य श्री तुलसी के प्रति श्रद्धावनत हो कृतज्ञता ज्ञापित करता हूं जिनके तत्व निर्देशन, सतत प्रेरणा एवं आशीर्वाद से विद्या परिषद फलित हुई है। आचार्य प्रवर ने अपने समस्त कार्यक्रमों को छोड़कर तीन दिन का सम्पूर्ण समय परि. षद के लिये दिया। उनकी उपस्थिति मात्र ही प्ररेणा देती है। इस परिषद को तो उनका मार्ग-दर्शन व आशीर्वाद हर क्षण मिलता रहा है। पूरी विद्वत् मण्डली की ओर से प्रणाम एवं कृतकृत्यता का निवेदन करता हूं। यह अनुकम्पा सदैव प्राप्त होती रहेगी।
मुनिश्री नथमलजी के द्वारा परिषद का औपचारिक उद्घाटन मात्र ही नहीं हुआ वरन निरन्तर पोषण भी प्राप्त हुआ। पण्डित जहां भी उलझे सन्त श्री ने वहां समाधान प्रस्तुत किया। मुनि श्री के विशद अध्ययन, गहन चिन्तन, पैनी पैठ व अद्भुत अभिव्यक्ति से परिषद को निश्चय ही दिशा प्राप्त हुई है। उनके प्रति कृतज्ञता ज्ञापन के समुपयुक्त शब्द नहीं हो सकते।
इस अधिवेशन के पूर्व मनोनीत अध्यक्ष स्व. डा० ए०एन० उपाध्ये की अनुपस्थिति व रिक्तता इस परिषद में अनुभव होना स्वाभाविक है। उनका स्मरण ही हमें अध्यवसाय व निरपेक्ष दृष्टि का बोध कराता रहेगा। उन के अचानक स्वर्गवास के दुखद समाचारों से कठिन स्थिति आ गई परन्तु सौभाग्य से हमें एक योग्य अध्यक्ष श्री श्रीचन्द रामपूरिया के रूप में प्राप्त हुए । मैं उनके प्रति सारी परिषद की ओर से आभारी हैं। कुलपति डा. जी. सी. पाण्डे के प्रति भी आभारी हूं जो प्रमुख अतिथि के रूप में हमारे मध्य उपस्थित हुए।
जयपुर जैसी राजधानी में ऐसी विद्वत् परिषद के लिये सब तरह की व्यवस्था करना श्रम के साथ साथ व्ययसाध्य कार्य भी है। श्री मुन्नालाल सुराणा के प्रति जितने धन्यवाद करू कम होंगे। किसी भी परिषद के आयोजन में अनेकानेक कार्य आवश्यक होते हैं। स्थानीय कार्यकर्ताओं से हमें हार्दिक सहयोग प्राप्त हुआ है। आचार्य श्री तुलसी चातुर्मास व्यवस्था समिति के प्रति भी आभार प्रकट करता हूं। श्री पन्ना लाल जी बांठिया की कार्यक्षमता व त्वरा के साथ सहर्ष किसी भी कार्य को सम्पन्न करने की क्षमता, सराहनीय है । श्री बांठिया व उनके सहयोगी उत्साही कार्यकर्ताओं को धन्यवाद देकर अपना आभार ज्ञापित करता हूं । डा० धर्मचन्द भंसाली बीकानेर परिषद के सभी कार्यों में मेरे अभिन्न अंग बन कर रहे हैं --दिल्ली में आयोजित परिषद में भी आपने इसी प्रकार कार्य किया था । आप मेरे निकट सहयोगी हैं । धन्यवाद के साथ इनसे तो विनम्र निवेदन है कि आगे भी इसी प्रकार का सहयोग करें।
यह परिषद यथार्थ में तो देश के दूर दूर स्थित संस्थानों व विश्वविद्यालयों के विद्वानों, प्राध्यापकों की उपस्थिति, पत्रवाचन, स्वस्थ चर्चा एवं समीक्षा के द्वारा ही सार्थक हो सकी है। यह अधिवेशन कितना सफल रहा है इसका माप करने का अधिकारी मैं नहीं
तुलसी प्रज्ञा-३
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