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( १ ) जैन आगमों में जिन-जिन विषयों से सम्बन्धित उल्लेख हैं, उनकी एक सूची तैयार हो ।
साहित्य के तैयार हो ।
(२) जैन साहित्य में लोकप्रिय साहित्य प्रचुर मात्रा में है। जैन कथा - मुकाबले अन्य साहित्य नहीं है । अत: जैन साहित्य का भी एक कोश
(३) जिन विषयों पर शोध ( जन साहित्य में ) किया जा सकता है, उनकी भी एक सूची तैयार की जाय ताकि शोध करने वालों को मार्गदर्शन मिल सके ।
युगप्रधान आचार्य श्री तुलसी ने कहा -तीन दिन तक यह अधिवेशन प्रसन्नतापूर्ण वातावरण में चला । हमारे श्रावक-श्राविकाओं ने भी इसमें भाग लेकर ज्ञान अर्जुन किया है ।
मैं चाहता हूं जैन विश्वभारती एक विश्वविद्यालय के स्तर पर काम करे । इसके लिए विद्वानों का एवं हमारे श्रावक समाज का सहयोग आवश्यक है ।
डा० ए० एन० उपाध्ये और श्रीचन्द रामपुरिया 'जैन विद्या मनीषी' उपाधि से सम्मानित
श्रीचन्द जी रामपुरिया को आज यहां जैन विद्या परिषद के विद्या मनीषी' उपाधि से सम्मानित किया गया | युगप्रधान आचार्य श्री उनकी साहित्य सेवा की प्रशंसा करते हुए कहा - हमारे श्रावक समाज में की दिशा में कार्य करने वालों में श्रीचन्द जी रामपुरिया प्रथम व्यक्ति हैं। ३० वर्षों से उन्होंने बहुत अच्छा काम किया है ।
पिछले वर्ष जर्मन विद्वान डा० एल० एल्सडोफ' को 'जैन विद्या मनीषी' उपाधि से दिल्ली में सम्मानित किया गया था ।
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डा० आदिनाथ नेमिनाथ उपाध्ये को भी मरणोपरान्त 'जैन विद्या मनीषी' उपाधि से सम्मानित किया गया। उनके बारे में युगप्रधान आचार्य श्री तुलसी ने फरमाया-प्राज हमारे बीच में डा० उपाध्ये का शरीर नहीं है । लेकिन उनका कर्तृत्व हमारे बीच में है । उन्होंने भारत में अनेक जैन विद्वानों को तैयार किया है और विदेशों में भी जैन विद्या अध्ययन के लिए प्रेरणा दी है ।
- डा. महावीर राज गेलड़ा
द्वारा जैन तुलसी ने
साहित्य
पिछले
समापन समारोह
दिनांक १२ अक्टूबर
जैन विद्या परिषद के छठे राष्ट्रीय अधिवेशन का समापन समारोह प्रसन्नता के वातावरण में सम्पन्न होने के अवसर पर मैं गहरे सन्तोष का अनुभव कर रहा हूं। बीजवपन व प्रस्फुटन के मध्य के अन्तराल में बहुत कुछ घटित होता है किन्तु सब कुछ अदृश्य व अप्रव्यक्ष । समक्ष जो प्रस्तुत होता है वह एक पूरी प्रक्रिया का परिणाम होता है । उस
तलसी प्रज्ञा-३
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