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कारण श्रावक-श्राविकाओं ने भी गोष्ठी का लाभ उठाया ।
बाहर से आए हुए विद्वानों ने आचार्य श्री के सान्निध्य में एक हार्दिक वातावरण पाया। श्रद्धेय आचार्य प्रवर मुनि श्री नथमलजी मुनि श्री नगराजजी मुनि श्री महेंद्र कुमार जी, साध्वीप्रमुखा कनकप्रभाजी, साध्वी श्री कनकश्री का सान्निध्य बराबर प्राप्त होता रहा ।
इस परिषद् में देश के विभिन्न प्रान्तों से चालीस विद्वानों ने भाग लिया ।
रांची से आर० सी० गुप्ता, उदयपुर से डा० एम० ए० मुडिया, जबलपुर से श्री नन्दलाल जैन, कलकत्ता से डा० समरेश वन्द्योपाध्याय, नागपुर से श्री भागचन्द जैन, नागपुर विश्वविद्यालय से डा० पुष्पलता जैन; चौबीस परगना से डा० जे० आर हल्दर, उदयपुर से श्री सुरेन्द्र पोखरना, नई दिल्ली से डा०बी० के० नय्यर, जयपुर से डा० कस्तूरचन्द कासलीवाल, मनोहरपुर से डा० प्रेमचन्दजी, उदयपुर से डा०प्रेमसुमन जैन, उज्जैन से डा० मनोहरलाल दलाल और डा० कैलाशचन्द्र जैन, खण्डवा से डा० धर्मचन्द जैन, धुरी से श्री एस० एस० लिष्क, खण्डवा से श्री एल० सी० जैन, पटियाला से डा० एस० डी० शर्मा, बनारस से डा० गोकुलचन्द जैन, २४ परगना से श्रीमती नीलिमा राहा, बेंगलोर से डा० श्रीमती रत्ना शिन्या, धारवाड़ से डा० बी० के० खड़बड़ी, जोधपुर से डा० नरपतचन्द सिंघवी, सागर से डा० कृष्णदत्त वाजपेयी और डा० लक्ष्मीनारायण दुबे, नीमच से श्री देवेन्द्रकुमार शास्त्री, बीकानेर से डा० महावीर राज गेलड़ा (संयोजक), डा० धर्मचन्द, श्री राधागोविन्द शर्मा, कलकत्ता से श्री असीम चटर्जी, बीकानेर से श्री अगरचन्दजी नाहटा, खड़गपुर (आई० आई० टी०) से कस्तूरचन्दजी ललवानी, दिल्ली से श्री एस० सी० जैन, जोधपुर विश्वविद्यालय से डा० महेंन्द्र कुमार जैन मुनि श्री नथमलजी, मुनि श्री नगराजजी, मुनि श्री महेन्द्रकुमारजी, मुनि श्री श्रीचन्दजी और साध्वी श्री कनकश्री ने भी पेपर पढ़े । अन्तिम गोष्ठी में विद्वानों ने कुछ प्रस्ताव रखे
(१) डा० ए० एन० उपाध्ये की स्मृति में तुलसी प्रज्ञा का एक विशेषांक प्रका शित किया जाय ।
(२) भगवान महावीर की जीवनी के विभिन्न पहलुओं पर शोध निबन्धों का संग्रह एक पुस्तक के रूप में जैन विश्वभारती से प्रकाशित किया जाय ।
(३) जैन विद्या परिषद् के अधिवेशनों को भारत के अन्य शहरों में भी बुलाया जाय ताकि सेमिनार की परम्परा पूरे भारत में फैल जाय ।
मुनि श्री नथमलजी ने कहा- इन ढाई हजार वर्षों में हमारे जैनाचार्यों ने सूर्य प्रज्ञप्ति, चंद्र प्रज्ञप्ति, जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति जैसे ग्रन्थों को लिखा है, उनका हमें गहराई से अध्ययन करना चाहिए । ज्ञान की गहराई में हमारे आचार्य अपने शुद्ध आचार और विचार एवं ध्यान साधना के द्वारा ही पहुँच सकते थे। इसलिए जैन विश्वभारती के तीन उद्देश्य हैं - शिक्षा, शोध एवं साधना ।
श्री अगरचन्द जी नाहटा ने तीन सुझाव प्रस्तुत किये -
तुलसी प्रज्ञा- ३
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