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में कोई कार्य अधूरा नहीं रहा ।
जैन विश्व भारती का स्वयं का एक स्थायी रिजर्व फण्ड होना इसके उज्ज्वल भविष्य के लिये अत्यन्त आवश्यक है । अपन सभी को इसके लिये अथक परिश्रम करके इस को शीघ्र पूरा कर लेना चाहिये ।
६. दिल्ली अंचल कार्यालय ( निदेशक : श्री श्रीचन्द जी रामपुरिया, सह-निदेशक : श्री स्वरूपचन्द जी जैन )
दिल्ली चातुर्मास काल में इस कार्यालय बड़ी इस विभाग के सह निदेशक श्री स्वरूपचन्द जी जैन
गत वर्ष आचार्य प्रवर के लगन व तत्परता से कार्य किया । बड़े ही कुशल व लगनशील कार्यकर्ता हैं जो निःशुल्क अपनी सेवाएं विश्व भारती को दे रहे हैं । जैन विश्व भारती के जैन विद्या परिषद तथा ग्रंथ विमोचन समारोह आदि विभिन्न अवसरों पर इसकी उपयोगिता दृष्टिगोचर हुई। जैन विश्व भारती सम्बन्धी प्रचार विश्वविद्यालयों से सम्बन्ध, साहित्य बिक्री तथा भारत सरकार से सम्बन्ध हेतु इस विभाग की उपयोगिता है ।
इस विभाग में अभी एक टाइपिस्ट व एक पियोन कार्य कर रहे हैं । अणुव्रत भवन की तीसरी मंजिल में जैन विश्व भारती का दिल्ली अंचल कार्यालय कार्य कर रहा है । दिल्ली में विराजित संत मुनियों से भी इसका पूरा सम्पर्क रहता है। गत वर्ष दिल्ली अचल कार्यालय मद में कुल २३,६२५ ) २३ रुपये व्यय हुये हैं। स्थान अणुव्रत विहार की ओर से निःशुल्क मिला हुआ है, जिसके लिए हम अणुव्रत न्यास के हृदय से आभारी हैं।
१०. योजना व विकास विभाग ( निदेशक : श्री नथमल जी कठोतिया )
इस वर्ष एक नये विभाग का गठन दिनांक ५-१-७४ को कार्यकारिणी मीटिंग में किया गया। इस विभाग का नाम योजना व विकास विभाग किया गया। इसके निदेशक श्री नथमल जी कठोतिया ने अपनी कर्मठ कार्यक्षमता से अल्पकाल में ही अभूतपूर्व सफलता प्राप्त की है। इस विभाग के निदेशन में पहली पट्टी से जैन विश्व भारती तक की सीधी सड़क जो ४२ फुट चौड़ी है, का रास्ता निकाला गया। रास्ते में कई लोगों की जमीनें थीं । उन सब व्यक्तियों से व्यक्तिगत रूप से मिलकर सीधे रास्ते के लिये अपनी जमीनें स्वत: दान करने के लिये जमीन मालिकों से आग्रह किया गया। मैं जैन विश्व भारती की तरफ से निम्न महानुभावों को हार्दिक धन्यवाद देता हूं जिन्होंने अपनी जमीनों को ४२ फुट चौड़ी सड़क निर्माण के लिये देकर एक आदर्श प्रस्तुत किया है -
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१. श्री शुभकरण जी दस्साणी
२. श्री सुपारसमल जी चोरड़िया
३. श्री जाउमल जी कन्हैयालाल जी व मुलचन्द जी घोड़ावत
४. श्री मालचन्द जी बंद
५. श्री मन्नालाल जी भंसाली
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तुलसी प्रज्ञा- ३
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