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संग्रह एवं उपयोग किया जाए तो यह वस्त्रपात्र के संग्रह-उपयोग से कम दोषपूर्ण नहीं कहा जा सकता।
अभी ८ फरवरी २००९ को आचार्य सुकुमालनंदी जी ने अहमदाबाद में एक क्षुल्लक जी को मुनिदीक्षा प्रदान की थी। उन्होंने उस समय मुनि के मूलगुणों के बारे में समझाया। उसका जो वर्णन वर्धमानसंदेश महावीर-जयंती-विशेषांक के पृष्ट २३ पर छपा है वह है- "आचार्य श्री ने २८ मूलगुण का विस्तृत स्वरूप समझाते हुए नवीन मुनि को रुपयापैसा, मोबाइल आदि भौतिक उपकरणों से दूर रहने व निरंतर स्वाध्याय में तल्लीन होने का उपदेश दिया।" जो मुनि महाराज शेविंग के लिए २-४ रुपए की ब्लेड का भी उपयोग नहीं करके हाथ से बाल उखाड़ते हैं, वे कैसे कीमती उपकरण रखेंगे और प्रयोग करेंगे? पूर्ण अपरिग्रह, निरारंभ एवं अहिंसा दिगम्बर जैन मुनि के प्राणवत हैं। भौतिक प्राणों के जाने पर भी मुनिराज अहिंसा व अपरिग्रह महाव्रत का भंग नहीं करते।
मेरा उद्देश्य किसी व्यक्तिविशेष की आलोचना करना नहीं है। मैं तो केवल आगम की बात बताना चाहता हूँ। मेरा तो सभी मनिराजों से करबद्ध निवेदन है कि वे अहंत भगवान के समान इस साध परमेष्ठीपद की गरिमा बनाए रखें और इस की अवमानना नहीं करें। मुझे अत्यधिक वेदना है कि आज मुनिराजों के आचरण में जो ह्रास हुआ है उसके लिए शिथिलाचार शब्द भी छोटा पड़ता है। वस्तुतः मुनि के इस चारित्रिक शैथिल्य के लिए हम श्रावक भी उत्तरदायी हैं। दिगम्बर-मुनि-संस्था पर यह संकट आया है। अधिक दुःख तो तब होता है, जब मूलगुणों को खण्डित करते हुए भी कतिपय साधु मन में खेद का अनुभव नहीं करते हैं, बल्कि उस दोष को उचित सिद्ध करने का दुष्प्रयास करते रहते हैं। बहुत से व्यक्ति, मुनियों के शैथिल्य की पुष्टि में यह कहते है कि चतुर्थ काल के चरणानुयोग के नियम पंचम काल के मुनियों पर लागू नहीं होते हैं। वस्तुतः मुनियों के मूलगुण शाश्वत हैं। काल के अंतर से मूल गुणों में काई अंतर नहीं आता। पंचम काल के अंत तक मूल गुणों का पालन करनेवाले मुनिराज रहेंगे। अंतिम तीर्थकर भगवान् महावीर की दिव्यध्वनि में जो चरणानुयोग की व्यवस्थाएँ निरूपित हुईं, उन्हें ही पश्चाद्वर्ती आचार्यो ने आगम में ग्रहण किया। षटखण्डागम, अष्टपाहुड़, प्रवचनसार, तत्त्वार्थसूत्र, मूलाचार, भगवती-आराधना आदि ग्रंथों की रचना पंचम काल में ही हुई और उन्होंने जो मुनियों की आचारसंहिता का निरूपण किया, वह तो पंचम काल के मुनियों के लिए ही किया है। पंचम काल में प्रारंभ से अब तक आगमानुकूल मूलगुणों का पालन करनेवाले महामुनिराज बराबर रहते आए हैं और आज भी हैं। अभी पंचमकाल के लगभग १८००० वर्ष बाकी हैं और तब तक भावलिंगी मुनिराजों का अस्तित्व रहेगा। हम
आशा करते हैं कि मुनि महाराज और श्रावक दोनों मिलकर आगमानुकूल निर्दोष मुनिचर्या का संरक्षण कर दिगम्बरजैन मुनिधर्म पर आए और आगे आनेवाले संकट को दूर करने में पूर्ण दृढ़ता एवं संकल्प के साथ प्रयत्नशील बनें रहेंगे। इस विषम काल में वे वीतरागी महामुनिराज अपने निर्दोष संयम और आत्मानुभूति के द्वारा बिना कहे ही अपनी चर्या से अहिंसा, अपरिग्रह एवं अनेकांत के सार्वकालिक, सर्वोदयी सिद्धातों की जन-जन को शिक्षा देते रहेंगे।
मूलचंद लुहाड़िया
श्री निर्मल जैन अहिंसा एवार्ड से सम्मानित शाकाहार प्रचार हेतु समर्पित सतना (म०प्र०) के प्रसिद्ध सामाजसेवी, साहित्यकार पं० निर्मल जैन को जलगाँव (महाराष्ट्र) में श्री आचार्य हस्ती अहिंसा एवार्ड से सम्मानित किया गया। विगत २२ वर्षों से अहिंसा एवं शाकाहार के प्रचार-प्रसार में संलग्न श्री निर्मल जैन को यह एवार्ड प्रसिद्ध विदुषी साध्वी महासती मणिप्रभा जी के सान्निध्य में प्रदान किया गया।
सुधीर जैन
4 सितम्बर 2009 जिनभाषित
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