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________________ जन्म में जानेलेवा बीमारीवाले हैं। इस प्रकार जैन- । मानते हैं। क्या जैनदर्शन इस आधुनिक वैज्ञानिक विचारधारा चरणानुयोग ने, जो सात व्यसन बताए एवं जिनका त्याग | से सहमत है? अधिकांश जैन परिवारों में एक बच्चे को सहज ही विरासत | सृष्टि ही क्यों, वैज्ञानिकों का तो यह मूल सिद्धान्त में मिलता है, उनमें से ६ व्यसनों को अमरीका ने बुरा | है कि 'ऊर्जा न तो पैदा की जा सकती है और न ही नष्ट मानना स्वीकार कर लिया है। शेष एक व्यसन-शिकार- | की जा सकती है, केवल रूपान्तरण होता है।' जैन के बारे में भी इसी तरह कभी चेतना जागृत होगी। | द्रव्यानुयोग इस मूल सिद्धान्त से पूर्णतः मेल खाता है। विषय ३. क्या बीसवी सदी में कोई ऐसा नायक पैदा | अत्यन्त गंभीर होने के कारण विस्तार में न जाते हुए हआ है जिसने 'अहिंसा परमो धर्मः' की महिमा उजागर समयसार की गाथा क्र० १०४ द्वारा संकेत देना ही यहाँ की हो? उचित होगा। इस प्रश्न को मैं ताजा 'प्रथमानयोग' के रूप में लेकर दव्वगुणस्स य आदाण कुणदि पोग्गलमयम्हि कम्मम्हि। प्रथमानयोग में वर्णित समस्त महापरुषों के चरित्र को समझने ___तं उभयमकुव्वंतो तम्हि कहं तस्स सो कत्ता ।। की पात्रता बनाना चाहता हूँ। . अर्थात् आत्मा किसी भी पदार्थ को या उसके गुण __महात्मा गाँधी ने जो सफल अहिंसात्मक आन्दोलन | को नहीं कर सकता है व इस अपेक्षा से वह कर्ता नहीं चलाया, उसके लिए आज विश्व के समस्त राजनेता | है। नतमस्तक हैं। आइंस्टीन ने गाँधी जी के बारे में एक स्थान | चारों अनुयोगों के व आधुनिक ज्ञान के कुछ ही पर यह लिखा है कि कुछ सदियों के बाद लोगों को | चावलों को देखकर यह निर्णय नहीं लिया जा सकता है इस पर विश्वास नहीं आयेगा कि ऐसा हाड़ मांस का पुतला | कि परमाणु बम या टी.वी. बनाने की विधि शास्त्रों में भी इस धरती पर सचमुच में पैदा हुआ था। होना चाहिए और यदि नही है तो.....। विशाल संसार, गाँधीजी ने यह अहिंसा एवं अहिंसा के उपयोग की । शाकाहारी भोजन, सात व्यसनों का त्याग, अहिंसा का महत्त्व विधि श्रीमद् राजचन्द्र से जैनग्रन्थों के आधार पर सीखी | व मूलतः प्रत्येक द्रव्य की स्वतंत्रता घोषित करनेवाला थी। गाँधीजी ने स्वयं अपनी आत्मकथा में यह लिखा है | वैज्ञानिक चिन्तन व जैनदर्शन की समानता इस लेख में कि जब भी अहिंसा के बारे में उन्हें शंका एवं अधिक जिस प्रकार वर्णित की गई है, उससे निश्चितत: यह धारणा विस्तृत जानने की जिज्ञासा रहती थी, तब वे श्रीमद् राजचन्द्र | सिद्ध होती है कि यह दर्शन केवल चर्चा का ही विषय से सम्पर्क करते थे। नहीं, अपितु यह आधुनिक युग में व्यक्ति, समाज एवं राष्ट्र अमरीका से कुछ वर्ष पूर्व एक पुस्तक प्रकाशित | के जीवन में भी अत्यंत लाभकारी है। हुई, जिसमें विश्व को सर्वाधिक प्रभावित करनेवाले १०० | सन्दर्भ व्यक्तियों की जीवनी एवं उनके कार्यों का वर्णन किया 1. George wald, the cosmology of Life and है। इन १०० में भगवान् महावीर का नाम भी है व उनके Mind, in Synthesis of Science and Religion', Edited प्रभाव के रूप में उस पुस्तक में लेखक ने यह स्पष्ट लिखा | by T.D. Singh and R. Gomatam, Published by The Bhaktivedanta Institute, Sanfrancisco, Bombay कि भगवान् महावीर की अहिंसा को महात्मा गाँधी ने | 1998. अपनाकर न केवल भारत को अपितु समस्त विश्व को 2. M.H. Hart, “The 100 A ranking of the प्रभावित किया है और हो सकता है २१वीं सदी में इसकी most influential persons in history'.Citadel Press और अधिक आवश्यकता एवं उपयोग हो। Secaucus, New Jersey, 1987 ४. वैज्ञानिक सृष्टि को किसी के द्वारा निर्मित नहीं । वात्सल्यरत्नाकर (भाग २) से साभार कबीर-वाणी लड़ने को सब ही चले, सस्तर बाँधि अनेक। साहिब आगे आपने, जूझेगा कोय एक । मानुस खोजत मैं फिरा, मानुस बड़ा सुकाल। जाको देखत दिल घिरै, ताका पड़ा दुकाल॥ सितम्बर 2009 जिनभाषित 15 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524343
Book TitleJinabhashita 2009 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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