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________________ हो सकते हैं, तो वास्तु क्यों नहीं? वास्तुशास्त्रानुकूल नहीं बने होते हैं, उनमें पूजादि करने ३. जिस प्रकार कर्म (द्रव्यकर्म) सुख-दुःख में| पर मन स्थिर नहीं हो पाता, पदाधिकारी कलह करते कारण हैं, उसी प्रकार वास्तुशास्त्रानुकूल-प्रतिकूल गृह | रहते हैं। (नोकर्म) भी सुख-दुःख में कारण है। इस प्रकार के प्रत्यक्षप्रमाण सन्दर्भ जैनागम में अनेक जगह उपलब्ध हैं। वास्तुशास्त्रप्रतिकूल मंदिर-गृह आदि प्राणनाश, ४. वास्तुशास्त्रानुकूल-प्रतिकूल गृह सुख-दुःख दोनों धनक्षय, आयुक्षय में कारण होते हैं। इसके अनेक में कारण (निमित्त) हैं, यह तथ्य प्रत्यक्ष एवं आगम प्रत्यक्षप्रमाण प्राप्त होते हैं। श्री शान्तिलाल जी बैनाड़ा प्रमाण दोनों से सिद्ध है। आगरा, जो वयोवृद्ध और अनुभववृद्ध हैं, उन्होंने अपने आगम प्रमाण सामने घटित कुछ प्रसंगों को प्रेषित किया है। यथाजैनन्यायशास्त्र चिल्ला कर कह रहे हैं कि- क- आगरा नाई की मंडी कटरा इतवारीखाँ में "सामग्रीजनिकानैककारण" (प्रमेयकमल-मार्तण्ड) मात्र श्री पारसदास ने गृह चैत्यालय में प्रतिकूल मूर्तियाँ स्थापित एक कारण से कार्य नहीं होता है। कर लीं। कुछ समय बाद ऐसी मुसीबत आयी कि भरपेट कर्मोदय भी द्रव्य क्षेत्र आदि के निमित्त से होता | रोटी नहीं मिली और थोड़े समय में आयुक्षय हो गया। वह चैत्यालय सामाजिक चैत्यालय में स्थापित कर दिया "खेत्तभवकालपोग्गलट्ठिदिविवागोदय-खयदु।"| गया, परिणामतः पूरी समाज मुसीबत में पड़ गई। (कषायपाहुडसुत्त गाथा ५९)। ख- फिरोजाबाद के सेठ छदामीलाल जी ने दक्षिण "कालभवखेत्तपेही उदओ" --- (पंचसंग्रह- | भारत से लाकर एक प्रतिमा वास्तुशास्त्र के प्रतिकूल स्थापित प्राकृत/४/५/३, भगवती-आराधना / वि०/१७०८)। करवा ली, जिससे कुछ समय में धनक्षय, वैभवक्षय एवं क्षेत्र, काल, भव, और पुद्गल का निमित्त पाकर अन्त में निंदनीय तरीके से आयक्षय भी हो गया। कर्मों का उदय होता है। क्षेत्र, काल, भव आदि नोकर्मों ग- आगरा बेलनगंज की बारोलिया-बिल्डिंग की का सद्भाव कर्मोदय को प्रभावित करता है। तब वास्तु दूसरी मंजिल में एक मंदिर स्थापित किया गया, जिसमें शास्त्रानुकूल-प्रतिकूल गृह निवासी को भी प्रभावित करते | वास्तुशास्त्र के प्रतिकूल ढाई फुट अवगाहना की मूर्ति हैं। कर्मोदय में यह गृह भी निमित्त बनते हैं। हम हमेशा स्थापित की गई। परिणाम हुआ कि परिवार किसी भी अशुभ निमित्त हटाते हैं और शुभ निमित्ति को जुटाते | प्रकार से सुखी नहीं है। हैं। अशुभ वास्तु कर्मोदय में अशुभ निमित्त बनते हैं।। घ- ग्वालियर दानाओली चम्पाबाग में एक प्राचीन राजवार्तिक / अध्याय ८/ सूत्र ३ में श्री भट्टाकलंक देव | मंदिर है। इसमें प्रतिमाओं का उलटफेर करवा दिया गया। ने कहा है परिणाम यह हआ कि पाँच-सात महीनों में ही अध्यक्ष ___ "कारणानुरूपं हि कार्यमिति।" अर्थात् कारण के | श्री पारस जी गंगवाल की रेल से कटकर मृत्यु हो अनुरूप ही कार्य होता है। गई। "---वास्तुशास्त्रानुकूल गृहों का निर्माण कर उनमें| ङ - मालपुरा के पास एक गाँव में मंदिर रहनेवालों के मन को विशुद्ध बनाने में साधक बनाया | वास्तुशास्त्रानुकूल नहीं है, प्रतिमायें भी उचित विराजमान जा सकता है।" | नहीं हैं। वहाँ हम लोगों ने देखा समाज का एक मात्र "---क्षेत्र के निमित्त से नरकों में परपीड़ा पहुँचाने | घर है, सभी चले गये। इस प्रकार के अनेक अनुभूत के विचार होते रहते हैं। तीर्थंस्थान, मंदिर, बाजार, नाटकगृह | प्रकरण हैं। वास्तुशास्त्र को सर्वथा नकारा नहीं जा सकता इत्यादि में शुभ-अशुभ भाव होते रहते हैं। (कौन्देयकौमुदी | है। । पृ.९५) अर्थात् प्रतिकूल गृहों में भी शुभभाव नहीं हो | ५. साता-असातावेदनीय कर्म के उदय में गृह भी पाते, निरन्तर, कलह, विवाद, विषाद, आदि के परिणाम | निमित्त है। यथाहोते हैं, जो कर्मों के संक्रमण के कारण बनते हैं। इससे | "सद्वद्योदयभावान् गृहधनधान्यं कलत्रपुत्रश्च--- गृहों का निर्माण वास्तुशास्त्रानुकूल होना चाहिए। जो मंदिर। " (पंचाध्यायी / पूर्वार्द्ध । ५८१)। 19 अगस्त 2009 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524342
Book TitleJinabhashita 2009 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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