SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 20
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ षष्ठ अंश तत्त्वार्थसूत्र में प्रयुक्त 'च' शब्द का विश्लेषणात्मक विवेचन पं० महेशकुमार जैन व्याख्याता पंचम अध्याय जीवाश्च॥ ३॥ इस प्रकार योग करके सूत्र लिखना युक्त है। समाधानसर्वार्थसिद्धि- 'च' शब्दः द्रव्यसंज्ञानकर्षणार्थः। नहीं, इससे जीव ही, द्रव्य है इसका प्रसंग आ जायेगा। जीवाश्च द्रव्याणीति। एवमेतानि वक्ष्यमाणेन कालेन सह | शंका-अधिकार होने से धर्मादिक के द्रव्यत्व का ग्रहण षड्द्रव्याणि भवन्ति। हो जाता है। समाधान- नहीं, द्रव्यशब्द जीवशब्द के साथ अर्थ- सूत्र में 'च' शब्द द्रव्यसंज्ञा के अनुकर्षण | सम्बद्ध होने से धर्मादिक के साथ सम्बन्ध करना शक्य के लिए है, जिससे जीव भी द्रव्य है यह अर्थ फलित | नहीं है। अधिकार होने पर भी यत्न के बिना अभिप्रेत हो जाता है। इस प्रकार ये पाँच व आगे कहे जानेवाले सम्बन्ध की सिद्धि नहीं होती है। शंका- 'च' शब्द से काल के साथ ६ द्रव्य होते हैं। | यदि सिद्धि होती है, तो दोनों शब्दों को एक साथ कर राजवार्तिक- सत्यप्यधिकारे यत्नाभावाच्च। ३/८।| देना चाहिये। समाधान- भिन्न-भिन्न सूत्र लिखने से ही अनुवर्तमाना अपि विधयो न चानुवर्तनादेव भविन्त। किं | सही प्रतिपत्ति होती है, अतः द्रव्याणि और जीवाश्च २ तर्हि? यत्नाद् भवन्तीति। जीवानामेव द्रव्यसंज्ञा स्यात् | सूत्र ठीक हैं। अजीवानां न स्यात् यत्नाभावात्। ततः पृथक् योगग्रहणं । सुखबोधतत्त्वार्थवृत्ति- 'च' शब्दो द्रव्याणीत्यन्याय्यम्। एवं च कृत्वा च शब्दोऽप्यर्थवान् भवति। स्यानुकर्षणार्थः। तेन जीवाश्च द्रव्याणि भवन्तीति अर्थ- अधिकार के होने पर भी प्रयत्न का अभाव वेदितव्यम्।--- स्यान्मतं ते- द्रव्याणीति पृथग्योगो न होने से अजीवों में द्रव्यरूपता बन ही नहीं सकती। अर्थात् कर्त्तव्यः। किं तर्हि? द्रव्याणि जीवा इत्येक एव योगः अधिकार के अनुवर्तनमात्र से कार्य की सिद्धि नहीं होती, | कार्यः। एवं च सति चशब्दाकरणाल्लाघवं स्यादिति। उसका प्रयत्न भी होना चाहिये। 'द्रव्याणि जीवाः' यह | तन्न युक्तं -द्रव्यशब्दस्य जीवबद्धत्वाज्जीवानामेव सूत्र बनाने में द्रव्यों की सिद्धि के प्रयत्न का अभाव | द्रव्यसंज्ञाप्रसंगात् धर्मादीनां तु न स्यात्। बहुवचनात् होने से जीवों की द्रव्यसंज्ञा होगी, अजीवों की नहीं। | तेषामपि भविष्यतीति चेन्न तस्य वैविध्यख्यापनार्थअतः 'द्रव्याणि' 'जीवाश्च' ऐसे पृथक्-पृथक् सूत्र का त्वेनोपतत्त्वात्।सदधिकारे यत्नविशेषस्याकरणाच्चाजीवानां ग्रहण करना न्याय्य (उचित) ही है और ऐसे २ सूत्र द्रव्यसंज्ञा न स्यादिति पृथग्योगकरणं न्याय्यम्। तथा च बनाकर उसमें 'च' शब्द का प्रयोग करना अर्थवान् होता सति चशब्दोप्यर्थ-वान्भवतीति। है यानि, सार्थक होता है। अर्थ- 'च' शब्द 'द्रव्याणि' सूत्र के अनुकर्षण के श्लोकवार्तिक- द्रव्याणीत्यभिसंबन्धः। तत्र | लिए है। उससे जीव भी द्रव्य होते हैं, ऐसा जानना चाहिये। बहुत्ववचनं जीवानां वैविध्यख्यापनार्थम्। द्रव्याणि जीवा | गणि जीवा | -- शंका- 'द्रव्याणि', 'जीवाश्च' ऐसे पृथक् २ सूत्र नहीं इत्येकयोगकरणं युक्तमिति चेन्न, जीवानामेव द्रव्यत्व- | करने चाहिये। किन्तु 'द्रव्याणि जीवाः' ऐसा १ सूत्र बनाना प्रसंगातीधर्मादीनामप्यधिकारात द्रव्यत्वसंप्रत्यय इति चेन्न. | चाहिये। ऐसा करने पर 'च' शब्द जोडने की आवश्यकता द्रव्यशब्दस्य जीवशब्दावबद्धत्वाद्धर्मादिभिः संबन्धयितम- | नहीं होती और सूत्र लघु हो जाता है। शक्तेः। सत्यप्यधिकारे अभिप्रेतसंबन्धस्य यत्नमंतरेणा- | समाधान- यह कथन ठीक नहीं है। यदि ऐसा प्रसिद्धेः। च शब्दकरणात्तत् सिद्धिरिति चेत्, को विशेषः | १ योग करते हैं, तो द्रव्य शब्द जीव से सम्बद्ध हो स्यादेक योगकरणे? योगविभागे तु स्पष्टा प्रतिपत्तिरितिं | जाने से जीवों की ही द्रव्य संज्ञा होगी, धर्म आदि की स एवास्तु। नहीं। अर्थ- "द्रव्याणि" इस सूत्र का सम्बन्ध करना शंका- बहुवचन के निर्देश से धर्मादि की भी चाहिये। जीवाः इस बहवचन का निर्देश भेद-प्रभेद की | द्रव्य संज्ञा हो जायेगी? विविधता बताने के लिए है। शंका- 'द्रव्याणि जीवाः' | समाधान- ऐसा नहीं है। बहुवचन तो द्रव्यों की 18 जुलाई 2009 जिनभाषित
SR No.524341
Book TitleJinabhashita 2009 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy