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पाहिए।
(ऊ) प्रायोपगमन- जिस सल्लेखना में क्षपक वर्तमान में अन्य मत के मंदिरों में मोबाइल लेकर अपनी सेवा परिचर्या न तो स्वयं करता है. न अन्य से प्रवेश नहीं करने दिया जाता है। जैसे देहली के पास नोएडा कराता है, उसे प्रायोपगमन कहते हैं। इस सल्लेखना में | में जो अक्षरधाम नामक विशाल मंदिर बना है, उसमें प्रवेश क्षपक शरीर को लकड़ी की तरह छोड़कर आत्मा की ओर | करते ही मोबाइल दरवाजे पर ही जमा कराना होता है। ही लक्ष्य रखता है और निरन्तर आत्मध्यान में रत रहता | पूछने पर वे कहते हैं कि यदि मोबाइल साथ रखेंगे तो है। यह सल्लेखना अंतिम अवस्था में पहुंचने पर ही प्रबल | एकाग्रता नहीं रह सकेगी। जब अन्य मत के लोग इस प्रकार संहननधारियों के द्वारा ग्रहण की जाती है।
सोचते हैं, तो अन्तराय आदि कर्मों के बंध की प्रक्रिया प्रश्नकर्ता- आनन्द कुमार जैन, आगरा।
जानने वाले हम जैनों को तो इस प्रकरण पर विशेष ध्यान जिज्ञासा-आजकल मोबाइल जेब में रखना अति | देना चाहिए। आवश्यक हो गया है, यदि दर्शन करते समय या स्वाध्याय | जिज्ञासा- विभिन्न तीर्थस्थानों पर क्षेत्र की वंदना गोष्ठी में कभी घंटी बज जाए तो क्या पापबंध का कारण है?
समाधान- अपनी जेब में मोबाइल रखना वास्तव नाम के पत्थर लगे हए दिखाई देते हैं। जैसे सोनागिर जी में उतना आवश्यक नहीं है, जितना हमने मान लिया है। में पर्वतवंदना के मार्ग में जब वंदना करनेवाले के पैर इन हम इतने वेसब्र हो गए हैं कि मंदिर में दर्शन करते समय, | पर पड़ते हैं, तो पाप लगता है या नहीं? जाप देते समय, प्रवचन सुनते समय, तथा स्वाध्याय करते | समाधान- दान देने का सही मार्ग तो यह है कि समय भी अपना मोबाइल बंद नहीं रखना चाहते। देखा | दान दिया जाये और अपने नाम की भावना न रखी जाए। जाता हे कि जाप देने वाले कुछ लोग जाप देते हुए बीच | परन्तु आजकल दान देनेवाला पहले यही पूछता है कि हमारे में ही, जाप देना छोड़कर पूजा करने वाले पूजा बीच में | नाम का पाटा लगेगा या नहीं? यदि उसका उत्तर नहीं में ही छोडकर मोबाइल सनने लग जाते हैं, जो महान् कर्मबन्ध | होता है, तो दान देनेवाला, दान नहीं देता है। बहुत से स्थानों का कारण है। आप स्वयं सोचें, जब आपके मोबाइल की | पर पाटिये न लगने के कारण झगड़े भी होते हुए देखे जाते घण्टी बजने लगी है, तब क्या उसको सुनकर मंदिर में | है। उचित तो यही है कि पाटे लगाने की परम्परा बंद हो दर्शन या पूजन करनेवाले अन्य जीवों का मन उधर से | जाए। मैंने सोनागिर जी की वंदना बहुत बार की है और हटकर आपकी घंटी की ओर आकर्षित नहीं होता है? क्या उसमें पर्वत की वंदना मार्ग पर लगे हुए पाटियों को भी स्वाध्याय करते समय जब मोबाइल की घंटी अचानक बज | देखा है। इन पाटियों पर वीर निर्वाण संवत् या अन्य उठती है, तो सभी स्वाध्याय करनेवाले जीवों का स्वाध्याय | मंगलसूचक शब्द भी लिखे रहते है। सच पूछा जाये तो करने में व्यवधान नहीं होता है? क्या प्रवचन सुनते समय | ये सभी अक्षर द्रव्यश्रुत के अन्तर्गत आते हैं। यदि इन पर यदि घंटी बज जाए, तो निकट बैठे हुए पच्चीस-पचास | अपने पैर पड़ते हैं तो द्रव्यश्रुत की महान् अविनय होती लोगों का ध्यान प्रवचन से हटकर आपकी ओर नहीं हो | है। मैंने विभिन्न मुनिराजों के मुख से सुना है कि अखबारों जाता है? इन सबका उत्तर आप स्वयं यही दे पायेंगे कि । के ऊपर बैठना या उन पर खड़े होना महान् द्रव्यश्रुत की वास्तव में ऐसा होता तो है। जब मोबाइल बज उठता है, | अविनय का कारण है। विभिन्न मंदिरों के दरवाजों पर प्रवेश तब अपने साथ अन्य सभी को पूजा-स्वाध्याय आदि में | करते ही ऐसे पाटिये जमीन पर लगे हुए दिखाई पड़ते है।
। ही है। इस तरह यदि हम अन्य के धार्मिक | ये सब द्रव्यश्रुत की अविनय के प्रसंग हैं। कार्यों में व्यवधान करते हैं, तो दूसरे के कार्यों में विघ्न इस महान् अविनय से बचने के लिए जहाँ-जहाँ डालने से महान् अन्तराय कर्म का बन्ध होता है, साथ ही | पैर रखने के स्थानों पर अक्षरसहित पाटिये लगे हों, उनको ज्ञानावरण आदि कर्मों का महान् बन्ध होता है। देव-शास्त्र- | या तो दीवार पर लगा देना उचित है अथवा हटा देना उचित गरु की महान अविनय होती है, जिससे महान् अशुभ कर्मों | है। ऐसे वंदनामार्गों पर इन लिखे हए पाटियों के स्थान पर का बन्ध होता है।
प्लेन पत्थर लगा दिए जायें, तो सुन्दरता भी बनी रहेगी अतः उचित तो यही है कि हम धार्मिक कार्यों में | और अविनय से भी बचा जा सकेगा। जब जायँ तब मोबाइल न ले जाएँ। यदि ले भी जाएँ तो
१/२०५, प्रोफेसर्स कॉलोनी उसे बंद रखें ताकि महान अशुभ कर्मों का बंध न हो।।
आगरा-२८२ ००२, उ० प्र० 32 जून 2009 जिनभाषित -
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