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________________ अतिशय क्षेत्र निमोला का परिचय राजस्थान प्रान्त के टोंक जिले में राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या १२ पर टोंक शहर से कोटा जाते हुए १२ कि.मी. पर मेहन्दवास ग्राम से पूर्व दिशा की ओर ८ कि.मी. की दूरी पर तथा टोंक से दक्षिण दिशा की ओर १५ कि.मी. की दूरी पर ग्राम सोनवाँ से अरनियामाल होते हुए श्री पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र निमोला स्थित है। स्वतन्त्रता के पूर्व निमोला ग्राम उनियारा ठिकाने की जागीर था । उनियारा दरबार व ठिकानेदार निमोला की भगवान् पार्श्वनाथ में असीम आस्था थी । राजा साहब द्वारा एक बार भगवान् पार्श्वनाथ के समक्ष जागरण करवाया गया, जिसमें एक नर्तकी ने नृत्य करते हुए प्रतिमाजी की ओर चुम्बन और आलिंगन का दुस्साहस पूर्ण संकेत किया ऐसा करते ही वह कीलित हो गई। सभी लोग इस घटना पर आश्चर्य चकित थे, तब राजा साहब ने ग्रामीणों के साथ मिलकर भगवान् की स्तुति कर क्षमा याचना की। इसके बाद ही नर्तकी सामान्य स्थिति में आई। इस चमत्कार से प्रभावित होकर राजा साहब ने भगवान् के मन्दिर के नाम ढोहली ( कृषि फार्म) दी, जो आठ बीघा दस बिस्वा भूमि है। यह दिगम्बर जैन आम्नाय का मन्दिर है, जहाँ मूल नायक भगवान् पार्श्वनाथ की नौफणी चमत्कारी प्रतिमा विराजमान है। यहाँ स्थित मन्दिर लगभग ४५० वर्ष पुराना था, जो देखभाल के अभाव में जीर्ण-शीर्ण अवस्था में था। संवत् २०४५ में समाज ने मन्दिर के भवन का जीर्णोद्धार कराने का विचार किया और उसे ठण्डा कराकर नवीन मन्दिर बनाने का मानस बनाया, तब दो विचार सामने आए क्या मन्दिर बाहर खुले में बड़ी जगह लेकर बनाया जाय या इसी स्थान पर गाँव के मध्य में ही बनाया जावे। इसके लिए भगवान् की प्रतिमाजी के समक्ष दो पर्चियाँ एक अबोध बालक से उठवाई गईं। पर्ची में यही आया कि मन्दिर इसी स्थान पर बनाया जाए। संवत् २०४६ अक्षय तृतीया के दिन पुराने जीर्ण-शीर्ण मन्दिर को ठण्डा (विसर्जन) करके नवनिर्माण का कार्य प्रारम्भ हुआ और प्रतिमाजी को मन्दिर के पास में बाहरी कोटड़ी में पूर्ण भक्तिभाव से अस्थाई तौर पर विराजित कर दिया गया। नवीन मन्दिर व वेदीप्रतिष्ठा का कार्य पूर्ण विधि-विधान से विधानाचार्य जी के Jain Education International निर्देशन में कराकर वैशाख सुदी ७ संवत् २०५२ को प्रतिमा जी को वेदी में विराजमान किया गया। उक्त समारोह में कबूतर का एक जोड़ा वेदी में भगवान् के पीछे आकर बैठ गया एवं अपार जनसमूह होने के बावजूद भी विचलित नहीं हुआ । यह भगवान् के यक्ष-यक्षिणी का स्वरूप है, जिसका फोटो खींचने का प्रयास किया गया लेकिन वह जोड़ा फोटो में नहीं आया । यह जोड़ा सदैव भगवान् की प्रतिमा जी के ईर्द-गिर्द रहता है। ऐसी मान्यता है कि इस अतिशय क्षेत्र पर देवगण वाद्ययंत्रों से भगवान् पार्श्वनाथ की स्तुति एवं भक्ति करते हैं। उन यंत्रों की ध्वनि मन्दिर के आस-पास रहनेवाले भी सुनते हैं। प्रतिवर्ष इस अतिशय क्षेत्र पर पौष बदी दशमी को जागरण व ग्यारस को वार्षिक मेले का आयोजन होता है । प्रशस्ति मूलनायक भगवान् पार्श्वनाथ नौफणी चमत्कारी पद्मासन सफेद संगमरमरी पाषाण चतुर्थकालीन ९८.५ सेमी. (३९ इंच) मनोज्ञ एवं संकल्पपूरक प्रतिमा पर प्रशस्ति नहीं है मणीदार बालों की तीन बालियाँ, सामान्य जूड़ा, कान कलात्मक कन्धे तक, भौहें लहरियादार, नासिका चौड़ी, टोड़ी चपटी, गले में त्रिवली कलात्मक अष्ट पहलूदार श्री वस्त्र का बड़ा चिन्ह उभरा हुआ दो बड़ा वलयाकार स्तन चिन्ह, रोमाग्रित दिगम्बर लिंग, हाथ पैरों में पद्म का चिन्ह, हाथ की अँगुलियों में लम्बे नाखून पोरो को रेखाएँ, पेरों पर उँगलियों में पोरों की रेखाएँ पीठासन पर सुन्दर फूल एवं बैल बूटे फणावली काफी ऊँची उठी हुई एकदम छत्राकार झुकी हुई सर्वांग सुन्दर सर्व प्रमाणित । अन्य प्रतिमाएँ श्री आदिनाथ सफेद संगमरमरी पाषाण, श्री नेमिनाथ सफेद संगमरमरी पाषाण, आदिनाथ देशी कृष्ण पाषाण, पार्श्वनाथ नोफणी पीतल विराजमान है एवं जिन मुद्रा शिलापट्ट सलेटी पाषाण का है, जिस पर ६८ पद्मासन प्रतिमाएँ बनी हुई हैं, जो कि सभी खण्डित है जो लगभग १०वीं ११वीं शताब्दी का लगता है । सुविधाएँ क्षेत्र पर मेहन्दवास व टोंक से जाने के लिए यातायात के साधन उपलब्ध है। ट्यूबवेल लगा है वसुविधायुक्त धर्मशाला है पूर्व सूचना देने पर पूजन विधान व भोजन की सुविधा भी उपलब्ध कराई जाती है। क्षेत्र की प्रबन्ध समिति द्वारा प्रकाशित मई 2009 जिनभाषित 29 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524339
Book TitleJinabhashita 2009 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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