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सम्पादकीय
- ग्वालियर की पुरा सम्पदा और हम गोपाचल पर्वत के विश्व प्रसिद्ध जैन पुरा वैभव के अतिरिक्त ग्वालियर के किले में उपलब्ध जैन पुरातत्त्व की अद्वितीय सामग्री आज भी तत्कालीन दिगम्बर जैन संस्कृति के उत्कर्ष का उद्घोष कर रही है। किले के पहुँच मार्ग पर चढ़ाई के प्रारंभ से ही पहाड़ में उत्कीर्ण जैन तीर्थङ्करों की कलात्मक मूर्तियाँ दिखाई देने लगती हैं। ये पहाड़ में उत्कीर्ण मूर्तियाँ पहाड़ के ऊपर भी दि० जैन पुरातत्त्व के अस्तित्व
की सूचक हैं। दि० जैन समाज का प्रमाद कहें या दुर्भाग्य कि वह अपनी पुरतात्त्विक सम्पत्ति की सँभाल एवं सुरक्षा में तनिक भी जागरूक नहीं रहा। फलस्वरूप पहाड़ के ऊपर के दि० जैनमंदिर या तो ध्वंस हो गए या अतिक्रमण के शिकार हो गए। दि० जैन समाज गहरी नींद में सोया रहा और अपने पूर्वजों द्वारा निर्मित महान् धार्मिक आयतनों की सुरक्षा करने में पूर्णतः असफल रहा।
ग्वालियर के महाराजा सिंधिया ने पर्वत पर एक स्कूल व छात्रावास चला रखा है, जिसके लिए बहुत लम्बी चौड़ी भूमि अधिगृहीत कर रखी है। पर्वत पर पूर्वकाल में रहे दि० जैन मंदिरों की भूमि को भी उन्होंने अपने कब्जे में ले लिया और वहाँ मंदिरों का मात्र नाम शेष रह गया। अभी कुछ समय पूर्व तक अस्तित्व में रहे तीन मंजिले श्रीवर्द्धमानमंदिर को भी महाराजा सिंधिया ने अपने अतिक्रमण का शिकार बना लिया। मंदिर में से जैन प्रतिमाएँ हटाकर कुछ स्कूल के प्रिंसिपल के बगीचे में रखवा दीं, कुछ गायब करवा दीं। ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार मंदिर में भगवान् महावीर के उत्सेध की ठोस स्वर्ण से निर्मित प्रतिमा स्थापित थी. उसको गायब कर दिया गया। मंदिर की प्रतिमाएँ तो हटायीं. किंत वे मंदिर के सामने के द्वारों पर ऊपर उत्कीर्ण जैन प्रतिमाओं को हटा नहीं सके, जो उस भवन के जैनमंदिर होने के सत्य को प्रमाणित कर रही हैं। इसके अतिरिक्त ग्वालियर स्टेट के गजैटीयर में, जो सन् १९०८ में प्रकाशित हुआ था, इस वर्द्धमानजैनमंदिर के अस्तित्व का उल्लेख है। अन्य प्रमाण भी इस जैनमंदिर के अस्तित्व को सिद्ध करते हैं। इस मंदिर के बाहर अंग्रेजों के द्वारा 'JAIN TEMPLE' की पाषाण पट्टिका लगाई गई थी, जिसका फोटो उपलब्ध है, किंतु उस पट्टिका को गायब कर दिया गया है।
श्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने इस मंदिर के चारों ओर दीवार व फैंसिंग लगा कर गार्ड बैठा दिए हैं और जैनियों को मंदिर में जाने से पूरी तरह रोक दिया है। मंदिर के पीछे स्कूल का भोजनालय चल रहा है, जिसमें नित्य अनेक प्राणियों की हत्या कर मांस पकाया जाता है। जैनमंदिर के अस्तित्व को सिद्ध करनेवाले सभी सशक्त प्रमाणों की अनदेखी कर जनता को भ्रमित करने के लिए उस जैनमंदिर के पवित्र भवन को कुतिया-महल के नाम से प्रचारित किया जा रहा है।
जिनके पूर्वज प्रजा का पालन एवं उसकी धार्मिक आस्थाओं का आदर करते हुए धार्मिक स्थानों का संरक्षण करते थे, उन्हीं महाराजा सिंधिया की संतान आज जैन समाज के मंदिर उस पर अतिक्रमण कर बल प्रयोग द्वारा जैनों को अपने मंदिर में आने से और दर्शन-पूजन करने से रोक रही है और इस तरह उनकी धार्मिक भावनाओं को निष्ठुरतापूर्वक पैरों तले रौंद रही है। सभी धर्मों के अनुयायिओं को अपनी धार्मिक क्रियाओं का संपादन करने की स्वतंत्रता देने एवं धार्मिक आयतनों की सुरक्षा का भरोसा देनेवाली प्रजातांत्रिक सरकार मूकदर्शक बन कर यह अन्याय देखते हुए भी सो रही
प.पू. मुनिराज आर्जवसागर जी महाराज ने जब इन पूजनीय प्रतिमाओं और जैन संस्कृति की इस
2 मार्च 2009 जिनभाषित
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