SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 26
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ एक का। एक व्यक्ति की दृष्टि तो एक समय में एक | को दिखलानेवाला सर्वज्ञ पुरुष है। इसी के आधार पर कोण तक ही जा सकती है, एक साथ सभी कोंणों तक | तीर्थंकर के अनुयायियों को एक शब्द दिया गया है नहीं, इसलिये एक व्यक्ति की दृष्टि एकांगी होगी, सम्पूर्ण | 'श्रावक।' यह साधारण शब्द नहीं है। यों इसका सामान्य सत्य तो सभी कोंणों को मिलाकर ही दिखायी देगा। अर्थ सुननेवाला है। पर श्रोता और श्रावक में बहत फर्क इसलिये आप जो कह रहे हैं, वही सही नहीं है, वरन् | है। श्रोता एक कान से सुनता है और संभव है दूसरे दूसरा जो कहता है, वह भी सत्य है। सत्य एकांगी से निकाल भी दे, पर श्रावक का अर्थ सम्यक सुनने नहीं विराट होता है, समग्र होता है। संक्षेप में यही महावीर | से है, जो प्राणों से सुनता है। यह क्रिया दो तरह से की अनेकान्त दृष्टि है। 'ही' एकांगी है, अतः सब कुछ | होती है, एक तो प्रतिक्रमण, जो आक्रमण के विपरीत नहीं, 'भी' को सम्मान दीजिये। क्योंकि अन्य का देखा | होती है। जहाँ-जहाँ मन की एकाग्रता पर आक्रमण हुआ भी सत्य है। दूसरों की भी सुनिये और उसे महत्त्व है अर्थात् मन भटका है, पहले प्रतिक्रमण से वहाँ से दीजिये। अनेकान्त का अर्थ है- जीवन में सभी देखे, | समेटना केन्द्रीभूत करना अर्थात् चित्त को स्थिर करना। अनदेखे पहलुओं की एक साथ स्वीकृति। दूसरे चरण में प्रतिक्रमण से लौटे चित्त को तुरन्त आत्मस्थ आइंस्टीन के पहले, परमाणु को कण यानी बिन्दु | करना। चित्त खाली नहीं रह सकता। तुरंत काम दो। माना जाता था पर आइंस्टीन ने कहा कि यह बिन्दु भी | जब वक्ता और श्रोता की एक फ्रिक्वेंसी, आवृत्ति की है और तरंग भी। इसके लिये महावीर ने एक शब्द एक मानसिकता हो जाती है, तभी दिव्यध्वनि सुनी जा दिया 'स्यात्'। इसका अर्थ शायद नहीं है। 'स्यात्' शब्द | सकती है। भाषा इसमें वाधक नहीं होती। ऐसे समझ किसी शंका का द्योतक नहीं हैं। यह किसी की संतुष्टि लीजिये कि इन दिनों जैसे संसद में ऐसा श्रवण उपकरण के लिये अपने को दबाना भी नहीं है। वरन जो मैं | सांसदों के कानों में लगाया जाता है कि किसी भी भाषा नहीं देख सका, उसे यदि किसी अन्य ने देखा है, तो में संसद में दिया गया वक्तव्य प्रत्येक सांसद अपनी सत्य के लिये, वह भी स्वीकार कर लेना। विज्ञान में | भाषा में समझ लेता है, क्योंकि वह कानों में लगा उपकरण एक शब्द इसके लिये दिया गया है 'क्वाण्टा।' | | अनुवाद कर उसकी ही भाषा में संप्रेषण कर देता है। महावीर के काल तक इस व्याख्या की त्रिभंगी | इसलिये समवशरण में तीर्थकर की दिव्यध्वनि प्रत्येक दृष्टि थी, अर्थात् कोई वस्तु है, नहीं है या है भी और | प्राणी यदि अपनी भाषा में उन दिनों समझ सकता था, नहीं भी, पर महावीर के अनेकान्तदर्शन के बाद यह | तो विश्वास नहीं करने का कोई कारण नहीं रह जाता। दृष्टि सप्तभंगी हो गई। यह मौलिक परिवर्तन था। | पर प्रतिक्रमण से लौटे ध्यान को तत्काल आत्मरत करना श्रावक- तीर्थंकर का सामान्य अर्थ भवसागर तरने | अनिवार्य है। का यानी जन्म मृत्यु के बंधनों से मुक्ति दिलाने के मार्ग | ७५, चित्रगुप्तनगर, कोटरा, भोपाल-३ धार्मिक शिक्षण शिविरों हेतु आमंत्रण शीघ्र भेजें श्री दिगम्बर जैन श्रमण संस्कृति संस्थान, सांगानेर से विगत १२ वर्षों से जैनधर्म का शिक्षण कार्य ग्रीष्मकालीन शिविरों के माध्यम से संपूर्ण भारत में अनवरत चल रहा है। ग्रीष्मकालीन अवकाश के अवसर पर अप्रैल, मई एवं जून माह में 'सर्वोदय आध्यात्मिक शिक्षण शिविर' का आयोजन कर समाज में धार्मिक चेतना का जागरण संभव है। इन शिविरों में संस्थान के योग्य विद्वानों द्वारा जैन धर्म शिक्षा भाग १, २, छहढाला, भक्तामर स्तोत्र, इष्टोपदेश, भावनाद्वात्रिंशतिका, द्रव्यसंग्रह, तत्त्वार्थसूत्र, करणानुयोग दीपक भाग १, २, ३ आदि ग्रन्थों का स्वाध्याय कराया जाएगा। इच्छुक महानुभाव संस्थान कार्यालय में पत्र व्यवहार करें जिससे शिविर आयोजन हेतु समुचित व्यवस्था की जा सके। सम्पर्क सूत्र अधिष्ठाता- श्री दिगम्बर जैन श्रमण संस्कृति संस्थान - वीरोदय नगर, जैन नसियां रोड सांगानेर जयपुर (राज.) ३०२०२९ ०१४१-२७३०५५२, ३२४१२२२, ०९४१२२६४४५, ०९४१४७८३७०७ __ 24 मार्च 2009 जिनभाषित - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524337
Book TitleJinabhashita 2009 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy