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________________ णमोकार मन्त्र का शुद्ध उच्चारण एवं जाप्यविधि __पं० आशीष जैन शास्त्री णमोकारमन्त्र के वर्तमान में तीन प्रकार के उच्चारण | षटखण्डागम के अनुसार मूल उच्चारण णमो आइरियाणं देखने में आते हैं। उनमें अन्य पद तो समान हैं, केवल | है। प्रथम पद में अंतर है। इसका एक कारण यह भी है कि णमोकारमंत्र प्रथम पद के तीन उच्चारण में ३० व्यंजन होते हैं। यदि हम 'आयरियाणं' बोलते णमो अरिहंताणं, हैं तो ३१ व्यंजन हो जाते हैं और 'णमो आइरियाणं' णमो अरहंताणं, बोलते हैं तो ३० व्यंजन ही होते हैं, अतः ‘णमो णमो अरुहंताणं। आइरियाणं' ही शुद्ध है। अर्थ की दृष्टि से देखा जाय तो तीनों ही उच्चारण इस प्रकार मूल उच्चारण यह हैउचित हैं। णमो अरिहंताणं का अर्थ है- घातिया कर्म- णमो अरिहंताणं,णमो सिद्धाणं,णमो आइरियाणं। रूपी शत्रओं को नाश करनेवाले को नमस्कार हो। णमो णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्वसाहूणं॥ अरहंताणं का अर्थ होता है- इन्द्रादि द्वारा पूज्य अर्थात् आजकल बहुत से जैनी भाइयों के घर में तथा पाँच महाकल्याणकों से पूजित को नमस्कार हो। णमो | तीर्थक्षेत्र एवं मंदिरों में, णमोकारमंत्र के कैसेट बजते हुये अरुहंताणं का अर्थ होता है- कर्म नष्ट हो जाने से | सुनने में आते हैं। ये श्वेताम्बरों द्वारा बनाये हुये हैं। पुनर्जन्म से रहित को नमस्कार हो। यद्यपि ये तीनों ही | इनमें णमो के स्थान पर नमो तथा आइरियाणं के स्थान हमारे अर्थ की सिद्धि करनेवाले हैं, परन्तु इनमें मूल | पर आयरियाणं सुनने में आ रहा है। यह उचित नहीं पाठ तो णमो अरिहंताणं ही है, क्योंकि इस महामंत्र | है। 'ण' का 'न' रूप से परिवर्तन करने से शब्दों की के रचनाकार आचार्य पुष्पदंत महाराज (ईसापूर्व प्रथम | शक्ति घट जाती है। इससे मंत्रशास्त्र के रूप और मण्डल शताब्दी) हैं। और उन्होंने श्री षट्खण्डागम के मंगलाचरण | में विकृति हो जाती है। फल की पूर्ण प्राप्ति नहीं हो के रूप में इसकी रचना की थी। वहाँ इसका लेखन | पाती। णमो के उच्चारण, मनन तथा चिन्तन में आत्मा णमो अरिहंताणं रूप ही है, अतः णमोकार महामन्त्र के | की अधिक शक्ति लगने से, फल अतिशीघ्र मिलता है प्रथम पद का मूल उच्चारण णमो अरिहंताणं ही मानना | तथा प्राणवायु एवं विद्युत् का अत्यधिक संचार होता है। चाहिए। अपने शरीर, स्वास्थ्य तथा अन्य पदार्थ पर भी 'णमो' इस संबंध में मुझे पू० आ० विद्यासागर जी महाराज शब्द अधिक फलदायी है। अतः शुद्ध मंत्र का भावसहित द्वारा कहा गया यह संस्मरण भी याद आता है- 'मेरे उच्चारण सर्वश्रेष्ठ फल का देनेवाला तथा महापुण्यबंध दीक्षागुरु आचार्य ज्ञानसागर जी महाराज को जब कभी | का कारण है। तीन बार णमोकारमंत्र बोलना होता था, तो वे सर्वप्रथम . जप-विधि 'णमो अरिहंताणं'--- उसके बाद 'णमो अरहंताणं' - श्री धवलाग्रंथ में इस मंत्र के जप की मुख्यतया -- तथा अन्त में णमो अरुहंताणं' बोलते थे।' इसका | तीन विधियाँ बताई गई हैंभी यही तात्पर्य होता है कि समान अर्थ होने से तीनों | 1. पूर्वानुपूर्वीउच्चारण उचित हैं, पर मूल तो ‘णमो अरिहंताणं' ही | णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं णमो आइरियाणं है। णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्वसाहूणं॥ इस मंत्र के तीसरे पद के भी दो उच्चारण दृष्टिगोचर 2. पश्चातानुपूर्वीहोते हैं- णमो आइरियाणं तथा णमो आयरियाणं। इनमें | णमो लोए सव्व साहूणं, णमो उवज्झायाणं। भी यद्यपि अर्थ की अपेक्षा अंतर नहीं है, परन्तु श्री । णमो आइरियाणं, णमोसिद्धाणं णमो अरिहंताणं ।। -मार्च 2009 जिनभाषित 21 www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.524337
Book TitleJinabhashita 2009 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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