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द्रष्टव्य है
मृदुता तन-मन-वचन में धारो बन नवनीत तब जप तप सार्थक बने प्रथम बनो भव-भीत
समापन-८ ॥
पापी से मत पाप से घृणा करो अयि आर्य । नर वह ही बस पतित हो पावन कर शुभ कार्य ॥ ७ ॥
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जैनधर्म की एक प्रसिद्ध उक्ति है 'जे कम्मे शूरा' 'ते धम्मे शूरा' अर्थात् जो कर्म में वीर होता है, वही धर्म में वीर होता है। हमारा धर्म और हमारी नीति कहती है कि, तुम जिस अवस्था में जागे हो, उससे आगे बढ़ो। अपने जीवन के लिए कोई बड़ा लक्ष्य निर्धारित करो और उसकी पूर्ति में संलग्न हो जाओ। इससे भले ही तुम्हें वह लक्ष्य प्राप्त न भी हो पाये, किन्तु तुम अपने विचार एवं व्यवहार से भटकोगे नहीं । बया पक्षी पूरे मनोयोग से अपना घोंसला जिस तरह बनाता है, उसे कोई बड़े से बड़ा इंजीनियर भी नहीं बना सकता। इसकी विशेषता यह होती है कि इसे चारों ओर से बन्द किया जा सकता है, फिर भी हवा का प्रवेश अविरुद्ध नहीं होता, किन्तु उस पर बरसात का पानी गिरे तो वह अन्दर नहीं आ पाता। यह कर्मकुशलता बया पक्षी ने किससे सीखी? अपने आप से अपनी रक्षा के लिए, फिर तुम तो मनुष्य हो, अतः कर्म को ही अपना धर्म बनाओ।
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12 मार्च 2009 जिनभाषित
हमारे कर्म तभी अच्छे हो सकते हैं, जब उनका लक्ष्य अच्छा हो । कर्मशीलता हमारे अन्दर सकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश कराती है, क्योंकि हमारी अन्त: चेतना जिस ओर जागृत होगी, चिन्तन भी तदनुसार होगा । जैसा चिन्तन होगा, शरीर भी वैसा कार्य करेगा। जिस तरह आप सुबह उठते ही सर्वप्रथम जिसे ध्यान में लाते हैं, उसका चित्र अपनी आँखों में सहज ही दिखाई देने लगता है । हमने प्रकाश का साक्षात्कार जड़ता के लिए नहीं किया है बल्कि क्रियाशीलता के लिए किया है। यदि आप के साथ क्रियाशीलता है, तो व्यसन, बुरी आदतें बुरे विचार साथ- साथ नहीं चल सकते। जो आगे बढ़ना चाहता है उसे काम, क्रोध, मोह, लोभ, अहंकार का त्याग करना ही होगा।
जब मनुष्य मोह तिमिर को काट देता है, तब
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कर्मवीरता
निजामृतपान विषयक उक्त विवेचन से स्पष्ट है कि यह सर्वांगीण रूप से श्रेष्ठ एवं अत्यन्त उपयोगी कृति है। हम तो सन्तों के भक्त हैं, उनकी कृपा के अभिलाषी हैं। उनका जो भी आशीर्वादात्मक शब्दप्रयोग है, हम सभी के लिए मोक्षमार्ग का संकेतक है।
श्याम भवन, बजाजा मैनपुरी- २०५००१ (उ.प्र.)
डॉ० सुरेन्द्र कुमार जैन 'भारती'
उसे निजता के दर्शन होते हैं और जब वह निजता को पा लेता है, तब उसे समस्त सृष्टि भली प्रतीत होने लगती है तो हमारी प्रकृति, हमारा पर्यावरण, हमारी सृष्टि सुरक्षित रहती है और हमारे मनोवांछित कार्य पूरे होते हैं ।
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हमारे जीवन का प्रस्थान बिन्दु है हमारी चेतना का जागरण, चेतना का विकास। इससे अच्छा लक्ष्य और कोई हो नहीं सकता। जिसे करनी में रस या आनन्द आने लगता है, वह सब ओर से सुरक्षित हो जाता है। निष्क्रियता का नाम ही असुरक्षा है, जिससे बचाव का एक मात्र मार्ग कर्मशीलता है।
हम जो भी कार्य करें वह हमारी रुचि का होना चाहिए जो रुचिपूर्वक लक्ष्य बनाकर कार्य करते हैं, उनके कार्य सर्जनात्मक, सकारात्मक एवं सार्थक होते हैं। सकारात्मक सक्रियता मानवजीवन के लिए ऐसा वरदान है, जिससे मन को तो शान्ति मिलती ही है, शरीर भी नीरोग एवं सक्रिय बना रहता है। हमें ऐसा जीवन जीना चाहिए, जिसमें करने के लिए कुछ हो, जिसमें पाने के लिए कुछ हो, जिसमें खोने के लिए प्रतिशत कम और पाने के लिए प्रतिशत अधिक हो । वास्तव में कर्म ही पूजा है, प्रार्थना है, आस्था है, भक्ति है। इसी से जागरण का स्वर मुखरित होता है। जिस व्यक्ति ने सूर्योदय के बाद भी अपने मुँह के ऊपर से मोटी चादर नहीं हटायी है, आँख खोलकर प्रकृति का लालिमायुक्त नजारा नहीं देखा है, वह अपने जीवन में ना सुप्रभात की कल्पना कर सकता है, ना ही उसके जीवन का कभी कायाकल्प हो सकता है। हमारी परम्परा हमें कर्मरत होने का संदेश देती है और हम से अपेक्षा करती है कि बनना ही है, तो कर्मवीर बनो ।
एल - ६५, न्यू इंदिरा नगर, बुरहानुपर, म.प्र.
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