SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 28
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कोशिश करने पर लंदन में भगवान् का मंदिर मिल ही गया। निर्मलकुमार पाटोदी हम पति-पत्नी (श्रीमती इन्द्रा पाटोदी) सोमवार । भगवान् महावीर स्वामी की पद्मासन सफेद पाषाण की २ जून से मंगलवार २४ जून २००८ तक यूरोप के ९ | एकदम बेदाग लगभग ४ फुट ऊँची चित्ताकर्षक प्रतिमा देश व दुबई पर्यटन यात्रा पर गये थे। यात्रा पर जाने | पर सीधा ध्यान गया, देखते ही मन को शांति मिली से पूर्व ज्ञात हो गया था कि लन्दन के हैरो ऑन द | और भगवान् के दर्शन किये। महावीर भगवान् की इस हिल इलाके में जैनमंदिर है। स्वभाविक ही विदेश में | प्रतिमाजी के आगे की ओर छोटी-छोटी चॉकलेटी रंग पहली बार भगवान् के दर्शन करने की भावना प्रबल | की पाषाण की चार पद्मासन तथा दायीं तथा बायीं ओर थी। लंदन के इयस्टन क्षेत्र की होटल में ठहरना हुआ स्थित स्तंभ में दो और पाषाण की प्रतिमाएं विराजमान था। लंदन के भू-गर्भ में तीव्रगति से दौड़नेवाली ट्यूब | थीं। दीवार में बने पाँच आलों में एक-एक जिनवाणी रेल से हैरो ऑन द हिल स्टेशन पर उतर गये। यहाँ । विराजमान थी। वेदीजी के अग्रभाग में आचार्य भगवंत से मंदिर तक कैसे पहुँचे, यह समस्या सामने आ गई | कुंदकुंद स्वामीजी का चित्र लगा हुआ था। प्रतिमाजी के तीन-चार भारतीय लोगों को रोककर पूछा, सभी जैनमंदिर | सामने के खुले भाग में ५० फुट लम्बा और ३० फुट के नाम-पते से अनभिज्ञ थे। तब किसी भारतीय ने सुझाया | चौड़ा स्वाध्याय सभागृह था। जिसमें बायीं ओर की दीवार टिकिट खिड़की के बाबू गुजराती हैं, शायद वे बता पावेंगे। पर सुप्रसिद्ध धर्मात्मा राजचन्द्रजी का फोटो टँगा हुआ पहले तो वे भी कुछ बता नहीं सके, फिर कुछ सोचकर | था। प्रतिमाजी चित्र, स्वाध्याय सभागृह तथा शिखर आदि बोले-पड़ोस में टिकट चेकर हैं- उनसे मिल लीजिये। के चित्र उतार लिये। टिकट चेकर अपने कक्ष के सामने स्थित कार्यालय में | दर्शन के बाद देखा सभागृह में सभी आयु समूह गये। कम्प्यूटर पर मंदिर संबंधी जानकारी तलाशी। उन्हें की महिलाएँ एक ओर तथा पुरुष दूसरी ओर सुन्दर भी निराशा ही हाथ लगी। इसके बाद उन्होंने टेलिफोन | बिछात, कारपेट, कुर्सियों पर सुविधानुसार बैठे हैं। उनके डॉयरेक्टरी में खोजबीन की। इतने प्रयास के बाद सुफल | हाथ में समयसार (गुजराती) था। वे टेप पर चल रहे निकला। हैरो ऑन द हिल इलाके में जैनमंदिर है, तत्संबंधी कहानजी स्वामी के प्रवचन का श्रवण कर रहे थे। एकदम इतना पता चल गया। एक पर्ची पर मंदिर क्षेत्र का पता | शांत वातावरण था। पूरे एक घण्टा प्रातः ९.३० से १०.३० लिख कर दे दिया। बताया कि रेल्वे स्टेशन से लगे बजे तक कहानजी स्वामी का टेप पर प्रवचन चलता बायें भाग में सिटी बस स्टैन्ड पर बस नं. १४० या रहा। इस अवधि में मैं भी हिन्दी समयसार का वाचन १८२ से उस इलाके में उतर जाएँ। पूछताछ करके जैन- | करता रहा। इसके बाद १०.३० से ११.३० बजे तक मंदिर तक पहुँच जाओगे। बताये गये वस स्टॉप पर उतर समाज के एक विद्वजन का स्वाध्याय प्रारंभ हुआ। इसी गये और पछते-तलाशते प्रातः १० बजे के लगभग दिगम्बर के साथ में प्रश्नोत्तर भी चलता रहता है। मंदिर के प्रथम जैनमंदिर तक पहुँचने में सफल हो गये। तल पर एक और बड़ा सभागृह है। मंदिर में भगवान बाहर सड़क से ही मंदिर के पाँच शिखर और का प्रक्षाल करने के लिये शुद्ध धुले वस्त्र बदलने का मान-स्तंभ को देखकर मन प्रफुल्लित हो गया। बाहर | स्थान अलग से है। अन्य सभी आवश्यक सुविधाएँ भी का प्रवेश द्वार बन्द था। मंदिर में प्रवेश करने की नयी | हैं। मंदिर प्रातः ११.३० बजे तक दर्शन के लिये खुला समस्या उपस्थित हो गयी। इलेक्टोनिक ताला लगा था। रहता है। जिन साधमी श्रद्धालु से प्रथम परिचय हुआ खी. तो उसका बटन दबाया।| था वे गजराती हैं। ३० साल तक नैराबी में रहे हैं और वद्ध सज्जन ने दरवाजा खोला। जय जिनेन्द्र | १५-१७ साल से पुत्र के साथ लंदन में हैं। उन्होंने बताया के साथ भावनाएँ व्यक्त की। उन्हें बताया इण्डिया से | कि यहाँ जितने भी जैनपरिवार हैं, वे सभी गुजराती हैं। आये हैं, दर्शन करना चाहते हैं। तत्काल वे हमें बायें | पहले हम श्वेताम्बर थे। कहानजी स्वामी के साथ दिगम्बर द्वार से मंदिर में ले गये। गर्भगृह में प्रवेश करते ही | धर्मावलम्बी हो गये। ईसाई राज्य होने से मंदिर बनाने 26 जनवरी 2009 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524335
Book TitleJinabhashita 2009 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy