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________________ ने कहा है | कहाँ देनी चाहिएकीजे शक्ति प्रमाण, शक्ति बिना सरधा धरे। | कुलं च शीलं वयुर्वयश्च विद्या च वित्तं च सनातनं च। धर्म में श्रद्धा बनाये रखिये। यदि श्रद्धा से डिग वर अच्छे कुल का हो, शीलवान् हो, वय भी गए तो कठिन हो जाएगा। यदि श्रद्धा से भ्रष्ट हो गये | मेल खाती हुई हो (सुमेल हो), विद्यावान् हों, आजीविका तो फिर क्या बचेगा? सहित हो, नीरोगी हो और धार्मिक प्रवृत्तिवाला हो। ये आचार्य सोमदेवसूरि से कुछ लोगों ने पूछा अभी | सात गुण जिसमें हो, वह उपयुक्त वर है, उसके साथ तो शासक अच्छे हैं। उनके संरक्षण से आपका धर्म चल | कन्या अपने जीवन को सुखी बना लेगी और निर्बाधरूप रहा है। जब कलियुग आयेगा, शासक भी धर्मपरायण | से श्रावकधर्म का पालन कर सकेगी। नहीं होंगे, तब आपका धर्म कैसे चलेगा? _ आज समाज में बहुत सी रूढ़ियाँ व दोष. फैल सर्व एव हि जैनानाम्, प्रमाणं लौकिकोविधिः।। रहे हैं, उन पर भी ध्यान देना चाहिए। सिद्धान्तों पर यत्र सम्यक्त्वहानिर्नो, यत्र नो व्रतदूषणम्॥ दृढ़ रहें। नाम, स्थापना, द्रव्य व भाव के अनुसार जितना श्रद्धा से मत डिगिये, भक्ष्य-अभक्ष्य का विचार | बने उतना निभाइये। दुनिया में कितने ही परिवर्तन हों, रखिये, मद्य-मांस आदि का सेवन मत कीजिये। यदि | यदि हम वीतराग प्रभु में श्रद्धा व भक्ष्याभक्ष्य के विचार ये दो नियम भी आप पालेंगे, तो कैसा भी काल हो, | पर दृढ़ रहेंगे, तो समाज को बाधा नहीं आयेगी और कैसा भी शासक हो, आप निराबाधरूप से अडिग रह | वह उन्नतशील होगा। सकते हो, पर ये दो बातें दृढ़ होनी चाहिये। 'सन्तसाधना' (मई-जून २००८) हमारा संविधान बहुत विशाल है विस्तृत है। जीवन से साभार के सारे अंग हैं उसमें। यह भी उल्लेख है कि कन्या ग्रन्थ-समीक्षा तीर्थक्षेत्र-पर्वादि-वंदनाष्टक शतक कृति- 'तीर्थक्षेत्र पर्वादि वंदनाष्टक शतक' (पूर्वार्द्ध), कृतिकार- प्रतिष्ठाचार्य पं० पवन कुमार जैन शास्त्री, 'दीवान' प्रकाशक-अ.भा.दि. जैन शास्त्रि परिषद्, संस्करण- प्रथम। सहयोग राशि 50 रुपया (आगामी प्रकाशनार्थ) प्राप्ति स्थान- श्रीमती मनोरमा 'दीवान', श्री महावीर भवन महिमा लेडीज एवं स्टेशनरी सेन्टर, पीपलवाली माता, स्वामी स्कूल के पास, दत्तपुरा मोरेना (म.प्र.) फोन 07532-228397 मो. 9425364534, 9981648844 । प्रस्तुति कृति में श्री दीवान जी द्वारा रचित 100 । होने पर उनका वंदनाष्टक उत्तरार्द्ध कृति में प्रस्तुत किया अष्टक काव्य हैं। जिसमें भारतवर्ष के समग्र प्रान्तों के | जायेगा। कृति क्षेत्रवंदना व पर्व माहात्म्य विषयक होने 80, (सिद्धक्षेत्र, अतिशय क्षेत्र, कला क्षेत्रादि का) क्षेत्र | से सर्वोपयोगी है, संग्रहणीय, पठनीय है। प्रादुर्भाव, महत्त्व, सरंचना / आगामी कार्ययोजना-परक विशेष- जो भी पुस्तकालय, वाचनालय सरस्वती काव्य वर्णन किया गया है। 20 अष्टकों में जैनसंस्कृति भण्डार के व्यवस्थापकगण या अन्य श्रद्धालु पाठकगण के शाश्वत एवं समसामयिक पर्यों एवं श्रमण स्वरूप कृति प्राप्ति के इच्छुक हों, वे कृपया पूरा, पता फोन व सराकादि का उल्लेख है। इनमें वही क्षेत्र सम्मिलित | नं., मोबाईल नं. लिखकर 30 रूपया पोस्टेज भेज कर हैं जिनके विवरण / परिचयादि पूर्व में प्राप्त हुये थे। जो | कृति मँगा लेवें। क्षेत्र अवशिष्ट रह गये हैं, उनके सांगोपांग विवरण प्राप्त । स० सिं० अरिहंत जैन, मुरैना 18 जनवरी 2009 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524335
Book TitleJinabhashita 2009 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size5 MB
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