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________________ 1 - । नावज्ञा क्रियते तस्य तन्मूला धर्मवर्तना ॥ ९॥ ताऊजी ने कहा सभी चुप रहे, वहाँ कोई नहीं जाना श्रावक में यदि कुछ कमी है, आचरणगत कोई चाहता था। ताऊजी समझ गये। वे स्वयं चुपचाप चल दोष हो, तो उसका तिरस्कार मत कीजिये उसे समझाइये, पड़े वहाँ जाकर उस बेटे को पुकारा। उसने देखा। वात्सल्यभाव से उसका हृदयपरिवर्तन कीजिए। जैसे बेटा ताऊजी स्वयं आये हैं मेरे पास बहुत आश्चर्य हुआ ! कोई गलत काम कर देता है, तो पिता उसे प्यार से उसे नीचे उतर कर आया। ताऊजी ने कहा- चलो, घर समझाता है- बेटे! ऐसा मत करो। वह वात्सल्य से उसका में आज विवाह है। वह ताऊजी को इन्कार नहीं कर हृदयपरिवर्तन करता है। इसी प्रकार का व्यवहार पथ सका और साथ चल दिया। घर पहुँचकर ताऊजी उसे से विचलित श्रावक के साथ करना चाहिये चारित्र मोहनीय अपने साथ मंदिर ले गये, तिलक लगाया। खाना खाने । - कर्म के उदय से कुछ दोष उसमें आ गये हैं, इसलिए बैठे तो उसे अपने पास बैठाया। सब खाने लगे पर उसका तिरस्कार मत कीजिए । पापी को धर्म समझाइये | वह रो रहा था । मन में सोच रहा था- मैं इतना पापी, पापी को ही तो सुधारना है। पुण्यात्मा, जो धर्म से विमुख मैंने घर की मान मर्यादा खो दी और ताऊजी मुझे अपने नहीं है, उसे क्या सुधारेंगे? मैले कपड़े को ही तो साफ पास बैठा कर भोजन करा रहे हैं! मन पश्चात्ताप से करना है। जो साफ है उसे क्या साफ करेंगे? इसीलिए भरा था। विवाह सम्पन्न हो गया। ताऊजी ने कहा जाओ, कभी किसी अशुभ कर्म के तीव्र उदय से कोई श्रावक अब तुम जा सकते हो वह रोने लगा, ताऊजी के कुछ भटक जाता है, तो उसका तिरस्कार मत कीजिये। पैर पकड़ लिये। ताऊजी ! अब मैं कहीं नहीं जाऊँगा, आपको एक घटना बताता हूँयहीं रहूँगा। मैंने आप सभी को बहुत दुःखी किया है, मुझे माफ कीजिये, प्रायश्चित्त दीजिए। उसने धीरे-धीरे व्रत धारण कर लिये और फिर साधु हो गया। समाधिमरण द्वारा देहत्याग किया। बहेरा गाँव में आज भी उसकी समाधि बनी हुई है, जहाँ बड़े-बड़े आचार्य, मुनि वगैरह जाते हैं। फलटण में एक परिवार था। उसके सभी सदस्य धार्मिक प्रवृत्ति के थे । दुर्योग से उस परिवार का एक लड़का व्यसनों में फँस गया। कुछ समय बाद वह घर छोड़कर चला गया और एक वेश्या के घर रहने लगा। दस-बारह वर्ष व्यतीत हो गये। एक बार उसके घर में विवाह का अवसर आया। घर के प्रमुख बहुत धार्मिक थे, प्रतिमाधारी और बहुत समझदार, उन्होंने घर के अन्य सदस्यों से कहा- अरे! शादी में तो उसे बुलाओ। निमंत्रण पत्र देकर आओ। लड़कों ने कहा- हम उसे वहाँ जाकर निमन्त्रण-पत्र दें ? हम नहीं जाते। उन्होंने कहा- अच्छा! घर के बाहर से आवाज लगाकर कह देना कि हमारे घर में शादी है, तुम्हें ताऊजी ने बुलाया है। आखिर उससे खून का सम्बन्ध है। घर का एक सदस्य गया और बाहर रास्ते से कह कर आ गया- तुम्हें ताऊजी ने बुलाया है, घर में शादी है। वह लड़का सोचता रहा ताऊजी ने मुझ जैसे पापी को क्या याद किया होगा ? वे स्वयं कितने धर्मात्मा हैं। उन्होंने याद नहीं किया होगा, यह मुझे बहका गया है। यह सोचकर वह विवाह में नहीं गया। विवाह के दिन ताऊजी ने देखा वह नहीं आया। उन्होंने उस लड़के से पूछा, जो उसे बुलाने गया था- तुमने उसे सूचना दी थी या नहीं? उसने बतायाताऊजी, कह तो आया था । जाओ अभी बुलाकर लाओ। चाहता हूँ । शास्त्रीजी ने उसे बुलाकर बात की । तस्कर लालबहादुर शास्त्री के प्रधानमंत्रित्व काल की बात है। एक तस्कर था, उन दिनों उस पर केस चल रहा था । उसी काल में भारत-पाक युद्ध हुआ। उस तस्कर ने शास्त्री जी को कहलवाया मैं आप से बात करना चाहता हूँ। मैं आपको युद्ध-सम्बन्धी कोई गुप्त बात बताना 16 जनवरी 2009 जिनभाषित Jain Education International इसलिए इन्द्रनन्दि आचार्य ने कहा- कोई निर्गुणी है, तो भी उसका तिरस्कार मत कीजिए। वात्सल्य से उसे परिवर्तित कीजिये जो नामधारी जैन हैं, वह भी समाज के काम आता है। अच्छे प्रशासक की भी यही नीति होती है। छोटा अपराधी है उसे कुछ समय के लिए सजा देकर छोड़ देते हैं, ताकि वह सुधर जाय । उसे फाँसी तो नहीं दे देते। हमारे संविधान में भी यही कहा- सगुण तो आदरणीय हैं ही, पर निर्गुण भी निरादरणीय नहीं है। वह तिरस्कार करने योग्य नहीं है। आप समतावान् हैं, धर्मात्मा हैं, तो उससे द्वेष मत करो। अरे प्रेम नहीं कर सकते हो, तो द्वेष भी मत करो । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524335
Book TitleJinabhashita 2009 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size5 MB
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