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ऐसा है, जैसा स्वामी दयानन्दजी को मुसलमान कहना।"। . विज्ञान सृष्टि को ईश्वर द्वारा निर्मित नहीं मानता,
इस विषय में पाश्चात्य तर्कविद्या के पिता अरस्तु यह सर्वविदित है। पाश्चात्य दार्शनिक विद्वान् जिन्होंने जैसे शान्त, विचारवान् और चिन्तक के विचार देखिये- जैनधर्म का गंभीर अध्ययन किया है, वे जैनधर्म के
"ईश्वर किसी भी दृष्टि से विश्व का निर्माता | सिद्धान्तों की मुक्तकंठ से प्रशंसा करके इसे आत्मा की नहीं है। सब अविनाशी पदार्थ पारमार्थिक हैं। ऐसा कभी | स्वतंत्रता का मार्गदर्शक आस्तिक धर्म मानते हैं। नहीं होगा कि उनकी गति अवरुद्ध हो जाय। यदि हम | पूर्व और पश्चिम के दर्शनों के विश्वख्यातिप्राप्त उन्हें परमात्मा के द्वारा प्राप्त पुरस्कार मानें, तो या तो | प्रकाण्ड विद्वान् पूर्व राष्ट्रपति डॉ० राधाकृष्णन, सुप्रसिद्ध हम उसे अयोग्य न्यायाधीश या अन्यायी न्याय-कर्ता बना | साहित्यकार आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी, श्री वासुदेवडालेंगे। यह बात परमात्मा के स्वभाव के विरुद्ध है, शरण अग्रवाल, श्री रामधारी सिंह दिनकर, गाँधीवादी वह इतना महान् है कि हम भी उसका कभी आस्वाद प्रसिद्ध नेता आचार्य विनोबा भावे आदि सभी भारतीय कर सकते हैं। वह आनन्द आश्चर्यप्रद है।" चिन्त जैनधर्म को भारतीय संस्कृति का भूषण आस्तिक
वैज्ञानिक जलियन हक्सले कहते हैं- "इस विश्व | धर्म मानते हैं। राष्ट्रपिता गाँधी जी के साथी विद्वान् काका पर शासन करनेवाला कौन या क्या है? जहाँ तक हमारी | कालेलकर ने क्या 'जैनदर्शन नास्तिक दर्शन है?' नामक दृष्टि जाती है, वहाँ तक हम यही देखते हैं कि विश्व | अपने लेख में विविध दृष्टियों से विचार करते हुये अन्त का नियंत्रण स्वयं ही अपनी शक्ति से हो रहा है। यथार्थ | में लिखा है "कोई मुझे आस्तिकता का नमूना बताने में देश और उसके शासक की उपमा इस विश्व के | को कहे तो मैं प्रथम जैनधर्म का और उसके बाद में विषय में लगाना मिथ्या है।"
| वेदों का नाम लूँगा।"
वात्सल्यरत्नाकर (द्वितीय खण्ड) से सभार
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भूल-सुधार 'जिनभाषित' सितम्बर 2005 में 'द्रव्यसंग्रह की एक अनुपलब्ध गाथा' शीर्षक से एक लेख दिया गया था, जिसमें कहा गया था कि द्रव्यसंग्रह में बजाय 58 के, 59 गाथा होनी चाहिए। क्योंकि कुछ प्राचीन पाण्डुलिपियों एवं प्रकाशित पुस्तकों में 'पयडिट्ठिदि--- गदिं जन्ति' नाम की पन्द्रहवीं गाथा उपलब्ध होती है।
उपर्युक्त विषय पर मन्थन करने पर ज्ञात हुआ कि 'पयडिट्ठिदि -----' गाथा तो वास्तव में पंचास्तिकाय ग्रन्थ की 73 वीं गाथा है। अतएव द्रव्यसंग्रह की गाथा तो 58 ही मानना चाहिए। उपर्युक्त गाथा को उक्तं च पंचास्तिकाये, कहकर दिया जा सकता है।
नियुक्ति श्री वीरेन्द्र जैन एम० ए० (संस्कृत), कोटा निवासी को सर्वोदय जैन विद्यापीठ में सह व्यवस्थापक (प्रचार विभाग) नियुक्त किया गया है। यदि वे आपके नगर या ग्राम में आवें, तो कृपया नवीन सदस्य बनने का कष्ट करें। उनका मोबाइल नं. 9829423909
पं० रतनलाल बैनाड़ा
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-दिसम्बर 2008 जिनभाषित 7
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