SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 30
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ग्रन्थ- समीक्षा वर्णी पत्रसुधा समीक्षक- डॉ० कमलेश कुमार जैन कृति का नाम - वर्णी पत्र सुधा, सम्पादक- नरेन्द्र विद्यार्थी, प्रस्तुति-सुधा- देवेन्द्र जैन, प्रकाशकश्रीमती सुधा - देवेन्द्र जैन, सन्मति ट्रस्ट, बी 21 कहाननगर, एन० सी० केलकर रोड, दादर (प०), बम्बई 400028 फोन : 098693 54221 पूज्य गणेश प्रसाद वर्णी का जन्म वि.सं. 1931 में आश्विन कृष्णा चतुर्थी को हुआ था और स्वर्गवास वि.सं. 2018 में भाद्रपद कृष्णा एकादशी को । यदि प्रारम्भ के बीस-पच्चीस वर्षों को छोड़ दिया जाये, तो लगभग साठ वर्षों तक वे जैनसमाज के भाग्यविधाता के रूप में छाये रहे हैं। उनका सम्पूर्ण जीवन अत्यन्त पवित्र और सादगीपूर्ण था । यद्यपि उनका जन्म असाटी जाति में हुआ था, किन्तु जैनधर्म पर उनकी ऐसी अटूट श्रद्धा थी कि तथाकथित स्वयम्भू नेताओं के द्वारा अनेक बार अपमानित करने पर भी उन्होंने सत्य के मार्ग को नहीं छोड़ा। उन्होंने जैनसमाज पर वह उपकार किया है, जो उन्हें अनेक शताब्दियों तक सश्रद्धा स्मरण करने और कराने के लिये बाध्य करता रहेगा। ऐसे आध्यात्मिक सन्त द्वारा समय-समय पर जन सामान्य से लेकर आबालवृद्धों तक के लिय उद्बोधन देने हेतु अनेक त्यागियों, श्रीमन्तों, धीमानों एवं श्रावकों को जो पत्र लिखे हैं, वे आज भी अपनी गम्भीरता और सहजता के कारण अत्यन्त प्रासङ्गिक हैं और समाज, शिक्षा एवं अध्यात्म के क्षेत्र में मील का पत्थर साबित हो रहे हैं। उन्हीं पूज्य श्री के पत्रों का संकलन है- वर्णी पत्रसुधा । इन पत्रों का संकलन और सम्पादन किया है उनके अनन्यभक्त डॉ. नरेन्द्र विद्यार्थी छतरपुर ने, तथा प्रकाशन एवं प्रस्तुति का श्रेय प्राप्त किया है श्रीमती सुधा - देवेन्द्र जैन बम्बई ने इस दम्पती का जैनसमाज को इसलिये भी आभारी होना चाहिए कि इन्होंने आधुनिकता की चकाचौंध में डूबी हुई औद्योगिक नगरी मुम्बई में सन्मति ट्रस्ट की स्थापना करके उसके द्वारा अनेक ग्रन्थों का प्रकाशन किया है और जैनसमाज को लागत मूल्य में उपलब्ध कराया है। इन पत्रों का प्रकाशन पहले वी. नि. सं. 2484 में वर्णी - जैन- ग्रन्थमाला काशी से 'पत्र पारिजात' के नाम से हुआ था और अब उसी का परिवर्तित नाम है प्रस्तुत । जहाँ अध्यात्म की ऊँचाईयों का स्पर्श करनेवाले हैं, वहीं पूज्य वर्णी जी ने 'मेरी जीवन गाथा' में अपने सम्पूर्ण जीवन का जिस सच्चाई के साथ उल्लेख किया है वह आत्म - शोधन की प्रक्रिया में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है । उसी प्रकार 'वर्णी पत्र सुधा' में संकलित उनके पत्र 28 दिसम्बर 2008 जिनभाषित Jain Education International कृति 'वर्णी पत्रसुधा' । वर्णी जी के पत्रों के संग्रह - रूप इस कृति के नाम में सुधा शब्द जुड़ा है, जो द्वयर्थक है, क्योंकि ट्रस्ट के संस्थापक दम्पती में से पत्नी का नाम सुधा है। अतः ग्रन्थ के नाम के साथ स्वयं का नाम जुड़ना निश्चत ही प्रकाशक के लिये एक आनन्दपरक अनुभूति है । पूज्य वर्णीजी ने सन् 1919 से लेकर 22 वर्षों तक जैनसमाज के विविध लोगों के नाम जो शताधिक पत्र लिखे थे, उन्हें सम्पादित कर डॉ० नरेन्द्र विद्यार्थी ने साधुवर्ग, साध्वीवर्ग, धीमन्तवर्ग, श्रीमन्तवर्ग, साधारणवर्ग और विद्यार्थीवर्ग - इन छह खण्डों में विभाजित किया है। इन पत्रों के संकलन करने, पढ़ने और उन्हें सम्पादित करने में जो श्रम डॉ० विद्यार्थी जी ने किया है, उसका उल्लेख उन्होंने स्वयं 'अपनी बात' शीर्षक में किया है। प्रस्तुत कृति वर्णी पत्र सुधा में केवल साधुवर्ग और साध्वीवर्ग को लिखे गये पत्रों का संकलन है । पूज्य वर्णी जी का दिगम्बर जैनसमाज पर महान् उपकार है। उन्होंने पत्रों के माध्यम से जैनसमाज, किंवा, जैनेतर - समाज का जो मार्गदर्शन किया है, वह अद्वितीय है। इन पत्रों में जहाँ पूज्य वर्णी जी की सरलता का दिग्दर्शन होता है, वहीं यह जैनसमाज की तत्कालीन धड़कनों का एक जीता-जागता इतिहास भी है। उन्होंने इन पत्रों के माध्यम से पूज्यजनों के प्रति अपनी अनन्य श्रद्धा व्यक्त की है। तत्कालीन जैनसमाज के इतिहासलेखन में इन महत्त्वपूर्ण पत्रों का उपयोग किया जा सकता है । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524334
Book TitleJinabhashita 2008 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2008
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy