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________________ जिनेन्द्र-दर्शन एवं पूजन की विशेषता पं० सदासुखदास जी काशलीवाल 'जिनभाषित' के अक्टूबर 2008 के अंक में प्रेस की गलती से इस लेख का शेषांश मुद्रित नहीं हो पाया था। उसे इस अंक में मुद्रित किया जा रहा है। सम्पादक ऐसा आनन्द उत्पन्न हो जाता है कि वह निकटभव्य जीव । अपने आत्मीक परमात्मरस में लीन हैं, उन्हें इस दर्शन-पूजन भक्ति से भगवान् के आगे-सामने के स्थान पर अर्ध्यसामग्री | आदि में प्रधानता नहीं रहती है। वे अपने परमात्मस्वरूप : रख देता है। उस भक्त को अन्य कुछ भी वांछा नहीं होती। को जानकर, पर सम्बन्धी आराध्य-आराधकरूप भेदबुद्धि है। ऐसा यह भक्ति करने का मार्ग अनादिकाल से चला | छोड़कर निज परमात्मस्वरूप आत्मानुभव में लीन रहते हैं। आ रहा है, नवीन नहीं हुआ है। इस प्रकार स्थापना निक्षेप का प्रकरण पाकर यह कथन किया जो समस्त ही आरम्भ-परिग्रह आदि के त्यागी होकर | है। 'अर्थप्रकाशिका' से साभार मुनि श्री समतासागर जी का रजत दीक्षा दिन । के कारंजा लाड़ की पाठशाला को, द्वितीय पुरस्कार ३००० ___महोत्सव रु. वाशिम की पाठशाला को एवं तृतीय पुरस्कार २१००रु. वाशिम- आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के परवारपुरा, इतवारी नागपुर की पाठशाला को प्रदान किये गये। विजेता को शील्ड भी प्रदान की गई है। बैतूल परमशिष्य कवि हृदय ओजस्वी वक्ता मुनिश्री समतासागर जी महाराज का १८ सितम्बर को दीक्षा लेने के २५ की श्रीमती सुधा जैन द्वारा सभी शामिल पाठशालाओं को स्वर्ण शील्ड, उ.प्र. ललितपुर के लकी बुक डिपो के वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में दीक्षादिन रजत महोत्सव संचालक सोमचंद जैन द्वारा सभी को कॉपी, पेन, वाशिम बड़ी धूमधाम से एवं भक्तिपूर्ण वातावरण में मनाया गया, वाशिम नगरी के इतिहास में नयी कड़ी जोड़नेवाले दीक्षादिन के जितेंद्र गोधा के परिवार द्वारा हर पाठशाला को एक एक सूटकेस, मानिकचंद्र रामेशचंद बज परिवार वाशिम समारोह में समूचे देश के भक्तों का जनसैलाव वाशिम द्वारा हर पाठशाला को ५०० रुपये नगद पुरस्कार और नगरी में उमड़ पड़ा। रजत दीक्षादिन महोत्सव के उपलक्ष्य में १७ से | हर पाठशाला के अध्यापक को सम्मानपत्र एवं अध्यापन २१ सितम्बर, तक राष्ट्रीय जैन-पाठशाला बाल-संस्कार हेतु ऐलक निश्चयसागर महाराज द्वारा लिखित बालबोध सम्मेलन आयोजित किया गया। जिसमें विभिन्न प्रांतों के भाग १, २, ३, ४ किताब प्रदान की गयीं। निर्णायक २ हजार बालक बालिकायें शामिल हुये। बाल संस्कार मण्डल के रूप में पंडित सुदर्शनजी पिंडरई, प्राचार्य आर.के. सम्मेलन में बालक-बालिकाओं को देश के विद्वानों का जैन (विदिशा), प्राचार्य सुदर्शन टोपरे अंजनगांव सुर्जी ने मार्गदर्शन, समाजसेवियों का प्रोत्साहन, मुनिसंघ की शुभाशीष | कामकाज देखा। सम्मेलन में विद्वान् नेमिचंद जैन शमशाबाद, पडित रमेशचंद भारिल्ल गंजबासोदा तथा परिक्षकों का प्रेरणा प्राप्त हुई। पाठशाला में विभिन्न स्पर्धाओं का आयोजन भावपूर्ण सत्कार किया गया। किया गया, बच्चों ने जैन कथायें, गीत, भजन तथा सामाजिक रवि बज स्थितियों पर आधारित नैतिक, राष्ट्रीय कार्यक्रम प्रस्तुत किये। बाहर से पधारे पाठशालाओं के सभी बच्चों ने श्रीवर्णीजयंती-समारोह-२००८ सम्पन्न जिनवाणी की प्रभावना के लिए नगर में गाजे-बाजे के शिक्षा जगत के ज्योर्तिविद एवं जैनत्व की प्रतिमूर्ति, साथ पथसंचलन किया। आगमप्रेरक संत गणेश प्रसाद जी वर्णी महाराज की १३५ सम्मेलन में २७ पाठशालाओं ने भाग लिया जिनमें वीं जन्म जयंति जबलपुर के हृदय स्थल कमानिया गेट पर पूज्य आचार्यश्री १०८ विशुद्धसागर जी महाराज के से १७ पाठशालाओं के नन्हेंमुन्ने कलाकारों ने प्रस्तुतियाँ संसघ सान्निध्य में बड़े ही जन समुदाय के बीच भव्यतापूर्वक दी, तथा १० पाठशालाओं के प्रतिनिधियों ने उपस्थित मनाई गई। रहकर पाठशाला सामग्री प्राप्त की। ५ दिवसीय बाल ब्रजेश चंदेरिया संस्कार सम्मेलन में मध्यप्रदेश के अशोक नगर निवासी श्री वर्णी दिगम्बर जैन गुरुकुल चौधरी रमेशचंद्रजी द्वारा प्रथम पुरस्कार ५०००रु. जिले । जबलपुर 22 दिसम्बर 2008 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524334
Book TitleJinabhashita 2008 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2008
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size5 MB
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