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________________ वास्तविक स्वतंत्रता की आवश्यकता मुनिपुङ्गव श्री सुधासागर जी प्रतिवर्ष १५ अगस्त को हमारे देश में स्वतंत्रता । जो भी नेता राजगद्दी पर बैठते हैं, उनमें से दिवस मनाया जाता है, लेकिन जब हम अपने देश की अधिकांश अपने हाथ काले करके ही लौटते हैं। यह दशा (दुर्दशा) देखते हैं, तो प्रतीत होता है कि हम मात्र | कोयले की दलाली नहीं है, फिर हाथ काले क्यों? इनमें राजनैतिक दृष्टि से स्वतंत्र हुए हैं, अभी हमें व्यापक | से अनेक के हाथ दूसरे निर्दोषों के खून से लाल हुए अर्थों में राष्ट्रीय स्वतंत्रता हासिल करना है, जो हमें हमारे | होते हैं। अपने से कमजोर को पैरों से रौंदना इनके लिए जीवन की स्वतंत्रता उपलब्ध करायेगी। राजनैतिक | रोजमर्रा की बात है। देश का खजाना खाली होता रहता स्वतंत्रता मात्र भौतिक या भौमिक अस्तित्व को स्वीकार | है, गरीब और गरीब होते जाते हैं और अमीर दिन दूने करने में, बॉर्डर लाइन (विभाजन रेखा) तय करने में | रात चौगुने बढ़ते जाते हैं। यह दुर्दशा देखकर ही एक प्राप्त हो जाती है। तदनुसार कुर्सी की सत्ता भी मिल | व्यक्ति ने कहा है कि आज देश को दुश्मनों से नहीं जाती है, किन्तु इसके साथ ही सत्ता का मद भी आसमान | देश के रहनुमाओं से खतरा है। आज देश के खजाने में उड़ते हुए झण्डे की तरह बढ़ जाता है। सत्तासीन को चोरों से नहीं, पहरेदारों से खतरा है। आज धर्म को व्यक्ति अहंकारी हो जाता है। यहीं प्रतीत होता कि हमारा | नास्तिकों से नहीं, धर्म के माननेवाले तथाकथित ठेकेदारों देश स्वतंत्र नहीं हुआ है, हम स्वतंत्र नहीं हुए हैं, बल्कि | से खतरा है। बड़ी विडम्बना हो गयी है कि हम स्वतंत्र हमारी कुर्सी स्वतंत्र हुई है। राजगद्दी स्वतंत्र हुई है। देश में रहते हुए भी अपने को परतंत्र जैसा अनुभव हमारा तंत्र स्वतंत्र हुआ है, किन्तु हमें स्वतंत्र होना अभी | करते हैं। बाकी है। यदि हमें स्वतंत्रता मिली होती, तो फिर अपने | साहित्यजगत् में दो प्रकार के साँपों की चर्चा होती* ही सत्तासीनों के प्रति आपातकाल में यह नारा क्यों लगाना | है- एक वे जो बामी (बिल) में रहते हैं और दूसरे पड़ता कि- 'कुर्सी खाली करो कि जनता आती है।' | वे जो आस्तीनों में पलते हैं। बामी के साँप से उतना आज संपूर्ण देश और राज्यों में स्वतंत्रता के नाम | खतरा नहीं है, क्योंकि हमें पता होता है कि यह बामी पर स्वच्छंदता का साम्राज्य है, लोग बेखटके स्वतंत्रता | है, तो इसमें जरूर साँप होगा। इसलिए हम उससे सतर्क का गाल घोंट रहे हैं। राजगद्दी के लिए संघर्ष तो सदा रहते हैं, दूर रहते हैं और उससे बचते हैं, किन्तु जब से चलता आया है, अभी चल रहा है और आगे भी | कोई आस्तीन का साँप बन जाये, तो उससे कैसे बचें? चलेगा, किन्तु इंच-इंच जमीन और बूंद-बूंद पानी के | उसका तो पता ही नहीं होता कि वह अपनी ही आस्तीन लिए जो संघर्ष अपनों का अपनों के साथ होता है उसे | | में पल रहा है और जहाँ पल रहा है उसी को काटने देखकर हम क्या, कोई भी नहीं कह सकता कि हम | की तैयारी कर रहा है। ऐसे साँप से बचना बहुत कठिन वास्तविक रूप में स्वतंत्र हैं। है। आज देश में यही हो रहा है। अंग्रेजों के समय का इतिहास उठाकर देखिये और | अंग्रेज बामी के साँप थे, मंगोल बामी के साँप आज का शासन देखिये? भ्रष्टाचार, घोटाले, रिश्वतखोरी, | थे, मुगल बामी के साँप थे, पाश्चात्य विचारधारायें बामी मिलावट की बातें किनके राज्य में अधिक हो रही हैं? | के साँप थी, इसलिए उनसे बचने का प्रयास करते थे हमारा शासन है और हमीं परेशान हैं। जिनके पास राजगद्दी | और उन्हें अपने देश से निकाल कर ही दम लिया, है, वे उन्हें चुननेवाली जनता के साथ गुलामों जैसा व्यवहार | किन्तु हमारे देश के ही तथकथित सत्ताधारी जन, नेता हैं। जिन्हें अपने को सेवक मानना चाहिए था, वे तो हमारी ही आस्तीनों के साँप सिद्ध हो रहे हैं, हम राजा बन बैठे हैं और बड़ी चतुराई से इसे राजतंत्र नहीं | इनसे बचें भी तो कैसे? क्योंकि हम भी अपने को भारतीय बल्कि जनतंत्र कहते हैं। यह स्वतंत्रता की आड़ में | मानते हैं और वे भी अपने को भारतीय बताते हैं। यहाँ स्वच्छंदता नहीं, तो और क्या है? तक कि वे अपने लिए अधिक भारतीय होने की घोषणा करते हैं। हम लोगों ने ही उन्हें अपने क्षेत्र से. अपने 6 अक्टूबर 2008 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524332
Book TitleJinabhashita 2008 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2008
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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