SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 35
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ग्रन्थ-समीक्षा बृहद्र्व्यसंग्रह की हिन्दी-अंग्रेजी टीका वष्य-संग्रह DRAVYA HAMINAHA ... mhantaciditial-. सम्पादक : श्री एस. एल. जैन, भोपाल। प्रकाशक मैत्री-समूह। पृष्ठ xxiv+१९७ मूल्य रु. ६०/ द्रव्यसंग्रह प्राकृतभाषा में रचित प्राचीनतम जैनदर्शन का प्रसिद्ध ग्रन्थ है, जिसमें छह द्रव्यों- जीव, अजीव, धर्म, अधर्म, आकाश और काल के स्वरूप और लक्षण के वर्णन के साथ निश्चय और व्यवहार मोक्षमार्ग, मोक्षप्राप्ति के उपायरूप ध्यान की उपादेयता, ध्यान करने योग्य मंत्र, पञ्चपरमेष्ठी के स्वरूप आदि का कुल अट्ठावन गाथाओं में वर्णन है। इस ग्रंथ की विस्तृत संस्कृत टीका श्री ब्रह्मदेवसूरी द्वारा लिखी गई है और उसके कई संस्करण प्रकाशित हैं। अन्य अनेक विद्वानों ने मराठी, हिन्दी एवं अन्य भारतीय भाषाओं में इस ग्रंथ की टीकायें रची हैं। इस रचना की एक मात्र अंग्रेजी टीका सन् १९१७ में प्रो. शरच्चन्द्र घोषाल के द्वारा की गई है जिसके संस्करण आरा, दिल्ली और मुम्बई से प्रकाशित हुए हैं। द्रव्यसंग्रह ग्रंथ कई परीक्षालयों के पाठ्यक्रम में सम्मिलित है। इस ग्रंथ की संस्कृतटीका में निश्चय और व्यवहार नयों के परिप्रेक्ष्य में विवेचन किया गया है। जैन और जैनेतर विद्यार्थियों को यह विवेचन समझ पाना कठिन होता है। अहिन्दी-भाषी विद्यार्थी द्रव्यसंग्रह का अध्ययन संस्कृत या अंग्रेजी भाषा के माध्यम से ही करते हैं। इसलिये यह आवश्यक है कि । ग्रंथ के मुख्य विषय का प्रस्तुतीकरण सरल अंग्रेजी भाषा में किया जाय। प्रस्तुत पुस्तक में मूल प्राकृत गाथा, प्रत्येक गाथा की संस्कृत छाया, गाथा का अंग्रेजी रूपान्तर, प्राकृत गाथा के प्रत्येक शब्द का अंग्रेजी भाषा में अर्थ, गाथा का हिन्दी और अंग्रेजी में अर्थ और हिन्दी और अंग्रेजी में सरलतम व्याख्या दी गई है। जहाँ जैनधर्म के पारभाषिक शब्दों का उपयोग आवश्यक हुआ है, बहाँ उनको स्पष्ट करने के लिये कोष्ठक मैं अँग्रेजी अर्थ छैने का प्रयत्न किया है। शास्त्रीय और दुरूह प्रस्तुति सै बच्चतै हुए द्रब्यों की सुबोध भाषा में प्रस्तुति अत्यधिक सराहनीय और अनुकरणीय है। जैनधर्म और दर्शन का अध्ययन करने के लिए इच्छुक सम्पूर्ण विश्व के अध्येताओं और छात्रों के लिये यह पुस्तक अत्यन्त उपयोगी सिद्ध होगी, ऐसी आशा है। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि इस पुस्तक की पच्चीसवीं गाथा की टीका करते हुए लेखक ने बताया है कि जैनदर्शन के अनुसार पुद्गलद्रव्य का अंतिम अविभागी भाग परमाणु कहलाता है। जैनदर्शन के इस परमाणु से आधुनिक परमाणु भिन्न है, क्योंकि जैनदर्शन के अनुसार परमाणु शुद्ध दशा में होने से इन्द्रियातीत है और आधुनिक प्रचलित परमाणु स्कंध है। वैज्ञानिकों द्वारा ब्रह्माण्ड की संरचना पर निरन्तर अनुसंधान किये जा रहे हैं। वे हाल ही में इस निष्कर्ष पर तो पहुँच गये हैं कि आधुनिक परमाणु अविभागी नहीं है और उसके बहुत खण्ड किये जा सकते हैं। यह निष्कर्ष इस ओर इंगित करता है कि आधुनिक वैज्ञानिक अनुसंधान परमाणु की संरचना को जैनदर्शन की मान्यतानुसार सिद्ध कर रहे हैं। यहाँ यह ध्यान रखना होगा कि जैनदर्शन के अनुसार एक पुद्गल परमाणु, शुद्ध दशा में जीब द्रव्य, धर्म, अधर्म, आकाश और काल इन्द्रियातीत हैं। इसलिये वैज्ञानिक अनुसंधान अबिभागी पुद्गल द्रव्य की खोज नहीं कर सकेंगे। लेकिन फिर भी हमैं इन निष्कर्षों पर सतत ध्यान रखना आवश्यक है, क्योंकि बै जैनदर्शन की मान्यताओं के करीब तो पहुँच ही सकते हैं। सुन्दर छपाई, आकार एवं चित्रों ने इस पुस्तक को आधुनिकता, मनोज्ञता एवं शैक्षणिक जगत् मैं स्वीकार्यता प्रदान की है। इस कृत्य के लिये लेखक और प्रकाशक बधाई के पात्र हैं। मुरेश जैन, आई.ए.एस. (सेवानिवृत्त) २०, निशात कॉलोनी, भोपालन, व्र, EDIENTISHINDE Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524332
Book TitleJinabhashita 2008 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2008
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy