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________________ असंख्यात-गुणश्रेणी-निर्जरा सिद्धार्थकुमार जैन, सतना (म.प्र.) आचार्य उमास्वामी महाराज ने तत्त्वार्थसूत्र के नवम । कही गयी है। यह निर्जरा मोक्षमार्ग में अपना विशेष स्थान अध्याय में संवर और निर्जरा तत्त्व का वर्णन किया है। रखती है। पहले सूत्र में संवर का लक्षण कहा तथा दूसरे सूत्र में असंख्यातगुणश्रेणीनिर्जरा क्या है?- जैसा कि शब्द वह संवर कैसे प्राप्त होगा, इसके कारणों को कहा और से परिलक्षित होता है, असंख्यात गुणी निर्जरा जो श्रेणी तीसरे सूत्र में तपसा निर्जरा च कहकर तप को संवर रूप में बढ़ती जाती है और हर अगले समय में पूर्व और निर्जरा में संयुक्त कारण निरूपित किया। आगे के | समय से असंख्यातगुणे कर्मों की निर्जरा होती जाती है। सूत्रों में क्रम से विस्तार करते हुये 10 धर्म, 12 भावना | इसे एक उदाहरण से समझने पर स्पष्ट हो जायेगा। 22 परीषह का वर्णन किया तथा 19वें सूत्र में बाह्य तप | एक फकीर कुंभ के मेले में हरिद्वार गया और को तथा 20वें सूत्र में अंतरंग तप का वर्णन करते हुये उसने घूमते हुये एक सेठ से एक रुपये भिक्षा की याचना भेद-प्रभेदों को बताया। अन्तिम तप में ध्यान के| की। सेठ ने उससे कहा कि एक रुपया कमाने में मेहनत वर्णन में शुक्लध्यान का वर्णन करने के पश्चात् सूत्र | होती है, मुफ्त में नहीं आता। हम एक रुपये को तो क्रमांक 45 में असंख्यातगुणश्रेणी निर्जरा के पात्रों को | 6 माह में अपनी मेहनत से दुगना कर लेते हैं। फकीर दर्शाया। इससे एक दृष्टि प्राप्त होती है कि आखिर यह । सुनकर मुस्कराया और कहने लगा-- सेठ आप बहत कुशल कौन सी निर्जरा है, इसका कार्य क्या है, कौन-कौन- | व्यापारी हैं अतः एक रुपया मेरा भी आप रख लेवें, से जीव इसे कर सकते हैं, किन-किन कारणों से यह | मैं अपना एक रुपया 12 वर्ष बाद अगले कुंभ पर ले होती है इन्हीं सब बातों पर चिन्तन करने का प्रयत्न | लूँगा और अपना एक रुपया देकर चला गया। समय यहाँ किया जा रहा है। बीता 12 वर्ष बाद फकीर पुनः हरिद्वार पहुँचा। सेठ के निर्जरा क्या है?- आत्मा के साथ संश्लेष संबंध | पास गया और पिछले कुंभ की बात याद दिलाई। सेठ को प्राप्त पुद्गलकर्मों का एक देश आत्मा से झर जाना | ने कहा- ठीक है, अपना हिसाब ले लो। सेठ ने उसे निर्जरा है एवं सम्पूर्ण कर्मों का झर जाना मोक्ष है यह | 10-20 रुपये देकर कहा हिसाब हो गया। फकीर तो सामान्य लक्षण कहा है। निर्जरा 2 प्रकार की बतलाई | अड़ गया कहने लगा- सेठ हिसाब में 10-20 कम दे गई है। यथा-1. सविपाकनिर्जरा 2.अविपाकनिर्जरा। देना, लेकिन हिसाब कर लो। सेठ ने हिसाब जोड़ा, - 1.सविपाकनिर्जरा सभी संसारी जीवों के होती है, तो वह एक रुपया हर 6 माह में दुगुने के अनुसार बिना पुरुषार्थ के ही होती है। पूर्व में बँधा हुआ कर्म | 24 किस्तों में 1 करोड़ 67 लाख 37 हजार 216 रुपये उदय में आता है अपना फल देकर निर्जीण हो जाता | हो गया। सेठ घबड़ा गया। हम आप भी इतनी राशि है यह सविपाक निर्जरा है। सुनकर चौंक गये होंगे। लेकिन नीचे लिखे अनुसार हिसाब 2. अविपाकनिर्जरा-पुरुषार्थपूर्वक उदयसमय के | देखेंपूर्व में कर्मों को उदय में लाकर निर्जरित करना अविपाक | 1 रुपये 6 माह में 2, 1 वर्ष में 4, इसी प्रकार निर्जरा है। इसके आगम में कई उदाहरण दिये गये हैं, हर 6 माह में दुगुने क्रम से 8-16-32-64-128-256जिससे ये दोनों निर्जरा समझीं जा सकती हैं। यथा | 512-1024-2048-4096-8192-16384-32768-65536सविपाकनिर्जरा पेड़ में स्वयं पकने के बाद आम गिरता | 1, 31,072-2,62,144-5, 24,288-10, 48,576-20, है तथा दूसरी कच्चे आम को तोड़कर पाल लगाकर | 97,152-41, 84304-83, 68,608 एवं 24 वीं किस्त भिन्न-भिन्न तरीकों से उसे पकाया जाता है। यही दूसरी | में 12 वर्ष बाद 1,67,37,216 = 00 रुपये हो गये। यह अविपाकनिर्जरा ही मुख्यतः मोक्षमार्ग में कारण है बिना उदाहरण तो दुगने-दगने क्रम का है, इसी क्रम को यदि अविपाकनिर्जरा के मोक्षमार्ग बनता ही नहीं है। इस | हम गुणित क्रम में देखें, तो जो राशि पहले समय में अविपाकनिर्जरा में ही एक निर्जरा 'असंख्यातगुणश्रेणीनिर्जरा' | एक है वही दूसरे समय में 4 तीसरे समय में 16 इस अक्टूबर 2008 जिनभाषित 11 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524332
Book TitleJinabhashita 2008 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2008
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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