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________________ ग्रन्थ-समीक्षा धवल कीर्तिमान् प्राचार्य नरेन्द्रप्रकाश जैन, पुस्तक का नाम- 'धवल कीर्तिमान्' (धर्मरक्षण एवं संघर्ष की कहानी) श्री भारतवर्षीय दि. जैनसंघ मथुरा का इतिहास, लेखक सम्पादक - डॉ. कूपरचंद जैन, डॉ. ज्योति जैन (खतौली), प्रकाशक- श्री ताराचंद प्रेमी, महामंत्री श्री भा.दि. जैन संघ, चौरासी मथुरा, (उ.प्र.) फोन: 0565-- 2420711, पृष्ठ- 200+32 पृष्ठ फोटोग्राफ, संस्करण- प्रथम 2008, मूल्य-100 रूपया "धवल कीर्तिमान्" पुस्तक में भारतवर्षीय दिगम्बर । उन्होंने जैनधर्म स्वीकार कर लिया और पूज्य गणेश प्रसाद जैनसंघ के स्वर्णिम इतिहास को दर्शाया गया है। यह जैन | जी 'वर्णी' से क्षुल्लक दीक्षा ले ली और क्षुल्लक निजानन्द इतिहास का जीवन्त दस्तावेज है। जैनधर्म और संस्कृति के | सागर के नाम से विख्यात हुए। संरक्षण में भा. दि. जैनसंघ के कार्य मील के पत्थर सिद्ध शास्त्रार्थों का दौर समाप्त हुआ, तो संघ के नाम आगम-साहित्य के प्रकाशन का वीणा उठाकर | से शास्त्रार्थ शब्द हटा दिया गया। मथुरा में, उसका भव्य संघ ने, जो कार्य किया वह अपनी उपमा आप है। यहाँ | भवन बना जहाँ विशाल परिसर के साथ एक समृद्ध पुस्तकालय यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि आज जो जैनधर्म | है। 1939 ई. से संघ का मुख पत्र 'जैन सन्देश' प्रारम्भ का गौरव है, वह ऐसी संस्थाओं द्वारा ही सुरक्षित रखा हुआ। यह आरम्भ में आगरा से छपा। पं. कपूरचंद जी गया है। इसे प्रकाशित करते थे। जैन सन्देश ने शोधांकों का प्रकाशन बीसवीं शताब्दी के प्रथम चरण में, विशेषतः उत्तर | कर शोध और खोज के क्षेत्र में जो भूमिका निभाई वह भारत में आर्यसमाज का बोलबाला था। आर्यसमाजी अन्य | अद्वितीय है। आज भी उसके लेख अपना महत्त्व रखते हैं। धर्मों के साथ जैनधर्म पर भी अनर्गल, असंगत और संघ का तीसरा महत्त्वपूर्ण कार्य जैन-आगम-ग्रन्थों अवास्तविक वाक्-प्रहार करते थे। यदि कोई कुछ बोलता, | का प्रकाशन है। 'कसायपाहुड' के 16 भाग प्रकाशित कर तो शास्त्रार्थ की चुनौती दे डालते थे। जैन-जनता इससे भय- | संघ ने जिनागम की सुरक्षा का भगीरथ कार्य किया है। भीत रहती थी। जैन भाई किसी भी शहर / देहात में अपना अन्य भी 20 पुस्तकों का प्रकाशन संघ ने किया है। कोई धार्मिक आयोजन करने में डरते थे। अनेक बन्धु जैनधर्म | 'धवल कीर्तिमान्' पुस्तक को तीन अध्यायों में बाँटा छोड़कर आर्यसमाजी होने की सोच रहे थे। ऐसे समय | गया है, जिन्हें धवल कीर्तिमान् नाम दिया गया है। धवल में संघर्ष हेतु एक सशक्त संगठन की आवश्यकता थी। कीर्तिमान- एक में संघ की स्थापना, उसके द्वारा किये परिणामस्वरूप 1930 ई. में अम्बाला में संगठित होकर | गये शास्त्रार्थ, मुनि धर्मोपसर्ग निवारण, कुडची तथा खेकड़ा शास्त्रार्थ करने हेतु श्री भारतवर्षीय दि. जैन शास्त्रार्थ संघ काण्ड में संघ की भूमिका, जैनइतिहास पर हुए कटाक्षों की स्थापना हुई। संघ ने लगभग 250 स्थानों पर आर्य | का जवाब आदि विषयों को दर्शाया गया है। धवल कीर्तिमानसमाज के साथ शास्त्रार्थ किया। लाला शिब्बामल जी, पं. | दो में जैनसंन्देश और उसके शोधकों का विवरण तथा धवल राजेन्द्र कुमार जी, पं. तुलसीराम जी, पं. अजित कुमार | कीर्तिमान्- तीन में संघद्वारा प्रकाशित 35 पुस्तकों का परिचय जी, मुल्तान, पं. मंगलसेन जी, पानीपत आदि ने अपने | दिया गया है। तलस्पर्शी ज्ञान और सटीक तर्कणा से, जिस तरह आर्यसमाजी पुस्तक का लेखन अछूते विषयों पर लिखनेवाले तथा विद्वानों की बोलती बन्द की, वह जैन इतिहास का रोमांच- | 'स्वतंत्रता संग्राम में जैन' ग्रन्थ के लेखक- इतिहासकार डॉ. कारी अध्याय है। इसी शास्त्रार्थ के इतिहास को प्रस्तुत पुस्तक | कपूरचंद्र जैन और डॉ. ज्योति जैन (खतौली) ने किया में दर्शाया गया है। है। पुस्तक की छपाई और कागज नयनाभिराम हैं। उस समय आर्यसमाज की ओर से स्वामी कर्मानन्द यह कृति नयी पीढ़ी को नयी सोच, नया जोश और जी शास्त्रार्थ करते थे। वे इस समाज के सबसे बड़े विद्वान् नया उत्साह प्रदान करेगी। इसे पढ़कर नौजवान धर्मरक्षा थे, किंतु शास्त्रार्थों में वे जैनधर्म से इतने प्रभावित हुए कि | के लिए कटिबद्ध होंगे। इसमें सन्देह नहीं। फिरोजाबाद, (उ.प्र.) 28 सितम्बर 2008 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524331
Book TitleJinabhashita 2008 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2008
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size5 MB
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