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________________ ए.सी. का प्रयोग करते हुए अहिंसा महाव्रत का पालन | या सामने नहीं बैठना चाहिये। या तो वह स्थान छोड़ कर सकते हैं? देना चाहिये या गृहस्थ को कहकर पंखा आदि बंद करवा समाधान- इस जिज्ञासा के समाधान में सर्वप्रथम | देना चाहिये। अन्यथा अनुमोदना का दोष लगने पर अहिंसा अहिंसा महाव्रत की परिभाषा जान लेना चाहिये। अहिंसा महाव्रत नहीं रह पायेगा। आजकल कुछ क्षेत्रों या मंदिरों महाव्रत की परिभाषा मलाचार में इस प्रकार कही है- | में ऐसे ध्यान कक्ष बना दिये गये हैं जो वातानकलित एइंदियादिपाणा पंचविहावज्जभीरुणा सम्म। हैं। यदि उनमें बैठकर सामायिक आदि किया जाता है, ते खल ण हिंसिदव्वा मणवचिकायेण सव्वत्थ। 289॥ तो भी अनुमोदना का दोष लगने से अहिंसा महाव्रत __. अर्थ- एकेन्द्रिय आदि जीव पाँच प्रकार के हैं। तथा स्पर्शन इंद्रियजय मूलगुण कैसे रह सकेंगें? उपर्युक्त पापभीरु को सम्यक् प्रकार से मन-वचन-कायपूर्वक उन | मूलाचार की परिभाषा में तो कृत-कारित-अनुमोदना तथा जीवों की निश्चितरूप से हिंसा नहीं करना चाहिये। आचार | मन-वचन-काय से छहकाय के जीवों की रक्षा का विधान वृत्ति-एक इंद्रिय है जिनकी, वे एकेन्द्रिय हैं। यहाँ प्राण है। क्या ऐसी सुविधायें लेना, इस परिभाषा में आ पायेगा? शब्द से जीवों को लिया है। वे कितने हैं? पाँच प्रकार | वर्तमान में कुछ साधु-आर्यिकाओं ने, तो अपने के हैं। पापभीरु मुनि को स्पष्टतया, सम्यक् विधान से, | रहने के कमरे वातानुकूलित ही बनवा रखे हैं। वे जहाँ उनकी हिंसा नहीं करना चाहिये। मन-वचन-काय से सर्वत्र चातुर्मास करते हैं वहाँ इन साधनों की व्यवस्था कहकर अर्थात् सर्वकाल में सर्वदेश में अथवा सभी भावों में पहले ही करवा लेते हैं। क्या यह महान् शिथिलाचार इन जीवों को पीड़ित नहीं करना चाहिये, न कराना चाहिये | नहीं है? में अभी एक स्थान पर गया था। वहाँ के श्रावकों और न करते हुये की अनुमोदना ही करना चाहिये। यह ने बताया कि यहाँ एक मुनि आये थे। उन्होंने पंखा अहिंसा महाव्रत है। प्रयोग किया। हमने मना किया तो उन्होंने कहा कि गर्मी उपर्युक्त संदर्भानुसार यदि कोई महाव्रती (मुनि या | लगती है। तब हमने कहा कि आप मुनि हैं। आपको आर्यिका) पंखे का प्रयोग करते हैं, तो निश्चित रूप | यह प्रयोग उचित नहीं। अन्यथा हम व्यवस्था नहीं कर से बादर वायुकायिक जीव तथा छोटे-छोटे त्रस जीवों | सकेंगे। वे मुनि वहाँ से विहार कर गये। हम श्रावकों की हिंसा होती ही है। कूलर चलाने में बादर वायुकायिक | को चाहिये कि मुनि के २८ मूलगुणों को अच्छी प्रकार जीव, जलकायिक जीव तथा त्रसजीवों का वध होता ही समझें और उनका पालन करनेवाले साधुओं की ही व्यवस्था है। ए.सी. चलाने में, वायुकायिक बादरजीव, अग्निकायिक करें। पू. चा.च.आ. शांतिसागर जी महाराज की आज्ञानुसार, जीव तथा त्रसजीवों का वध होता ही है। इन सव जीवों | शिथिलाचारी साधुओं की उपेक्षा करें। अन्यथा इस बढ़ते की हिंसा हमको प्रत्यक्ष दिखाई देती है। अत: इन सुविधाओं | हुये शिथिलाचार पर अंकुश लगाना कैसे संभव हो सकेगा? का प्रयोग करनेवाले साधु या आर्यिका का अहिंसा महाव्रत आशा है सभी साधर्मी भाई तथा सभी समाज के कार्यपालन होना कदापि संभव नहीं है। कर्तागण, उपर्युक्त आगमानुसार भावना बनाते हुये आगम __इसके अतिरिक्त शरीर की सुविधा या गर्मी दूर | की मर्यादा के अनुसार ही साधुसेवा करने का संकल्प करने के लिये इन सुविधाओं का प्रयोग करने पर 'स्पर्शन | लेंगे, मर्यादा का उल्लंघन करते हुये शिथिलाचार के पोषण इन्द्रियजय' नामक मूलगुण कैसे सुरक्षित रह सकता है? ] में सहभागी नहीं बनेंगे। कदापि नहीं रह सकता। महाव्रती को इलेक्ट्रिक प्रयोग नोट- इसी प्रकार शीत ऋतु में हीटर, अंगीठी भी वर्जित है। अतः यह भी दोष लगता ही है। या हैलोजन बल्व की गर्मी लेना भी बिलकुल आगम वर्तमान में देखा जाता है कि कुछ साधु या आर्यिकायें | सम्मत नहीं है। स्वयं तो इन साधनों का प्रयोग नहीं करते अर्थात् स्वयं पंखा-कूलर आदि नहीं चलाते हैं, पर अन्य गृहस्थों के द्वारा चलाये जाने पर उसके नीचे या सामने जाकर बैठ १/२०५, प्रोफेसर्स कॉलोनी, जाते हैं, यह भी उचित नहीं है। उनको उनके नीचे । आगरा (उ.प्र.) सितम्बर 2008 जिनभाषित 27 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.524331
Book TitleJinabhashita 2008 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2008
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size5 MB
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