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आचार्य गुरुवर विद्यासागर जी मुनि महाराज हमारा कल्याण
करें ।
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यशस्वी तेजस्वी सरसिजसमो रागरहितः यथाभानुर्नित्यं तपति सततं ह्युष्णकिरणः । तथैवायं पूज्यस्तपति भवने शुद्धचरणः स कुर्यात्कल्याणं भवभयहरो मे गुरुवरः ॥ अनुवाद - जो यशस्वी, तेजस्वी और कमल के समान नि:स्पृह हैं। जैसे गर्म किरणोंवाला सूर्य निरन्तर तपता है, उसी प्रकार ये पूज्य आचार्य श्री अपने शुद्ध (आगम-सम्मत) आचरण से सम्पूर्ण संसार में तपस्यारत हैं। संसार-जन्म, वृद्धावस्था और मृत्यु के भय को दूर करनेवाले ऐसे आचार्य गुरुवर विद्यासागर जी मुनि महाराज हमारा कल्याण करें।
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प्रकृत्या सौम्यो यो हिमकरसमः शान्तिचषक: सुधीर्वाग्मी शिष्टः शुभगुणधनः शुद्धकरणः । महापीठासीनो बहुगुणनिधिर्लोभरहितः स कुर्यात्कल्याणं भवभयहरो मे गुरुवरः ॥
अनुवाद- जो जन्मजात सौम्य हैं, चन्द्रमा की किरणों की भाँति शीतल हैं, शान्ति - सुधा - रस के पान करनेवाले हैं, उत्कृष्ट कोटि के विद्वान्, वक्ता, शिष्ट प्रशस्त गुणों के धारक एवं निर्दोष चर्यावाले हैं, दिगम्बर जैन - आचार्य के महनीय आसन पर विराजमान हैं, विविध प्रकार के गुणों की निधियाँ जिनके पास हैं, और किसी भी प्रकार का लोभ जिन्हें स्पर्श भी नहीं कर सका है, संसार जन्म, वृद्धावस्था और मृत्यु के भय को दूर करनेवाले ऐसे आचार्य गुरुवर विद्यासागर जी मुनि महाराज हमारा कल्याण करें ।
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सुविद्यो वागीशो निजगुरुकृतिक्रान्तप्रवणः मुनीशैः संवन्द्यो विदित- महिला मङ्गलकरः । चिरञ्जीव्यादेषां भवभयभृताम् मौलिशिखरः स कुर्यात्कल्याणं भवभयहरो मे गुरुवरः ॥
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अनुवाद- जो आचार्य विद्यासागर जी महाराज प्रशस्त विद्याओं में बृहस्पति हैं, जिन्होंने अपनी उत्कृष्ट साधनाचर्या और कृतित्व से अपने परम पूज्य गुरुवर आचार्य ज्ञानसागर मुनि महाराज के कृतित्व को और अधिक उजागर किया है, जो मुनिराजों के द्वारा निरन्तर वन्दनीय हैं, स्व के साथ-साथ विश्व का कल्याण करनेवाले हैं, जिनकी महिमा का गान सर्वत्र हो रहा है और संसार से भयभीत मानवों में मुकुट, शिखर की भाँति सुशोभित हैं, ऐसे आचार्य प्रवर श्री विद्यासागर जी मुनि महाराज हमारा कल्याण करें।
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(अनुष्टुब् वृत्तम्)
विद्यासागर आचार्य:, प्रथितो भुवनत्रये । ससंघाय नमस्तस्मै, नमस्तस्मै नमो नमः ॥
अनुवाद- आचार्य विद्यासागर जी महाराज महान प्रसिद्ध मुनि हैं। उन्हें उनके सम्पूर्ण संघ के साथ सादर नमन है, त्रि-बार नमोऽस्तु ।
2.
विद्यासिन्ध्वष्टकमिदं भक्त्या भागेन्दुना कृतम् । महापुण्यप्रदं लौकैः प्रपठन् याति सदा सुखम् ॥
अनुवाद - यह 'विद्यासागराष्टक' शीर्षक स्तवन अतिशय भक्तिपूर्वक डॉ० 'भागेन्दु' जैन के द्वारा रचा गया है। यह भव्य स्तवन महान् पुण्यप्रदाता है, इसके पठन-पाठन से धर्म और सुख सुलभ होते हैं।
व्याख्या
1.
शासितुं योग्यः शिष्यः जो अनुशासन के योग्य पात्र हैं, उन्हें 'शिष्य' कहते हैं । उपनयन संस्कार - विद्या प्राप्ति के लिए विद्यार्थी को आचार्य के पास ले जाना, और आचार्य द्वारा विद्या प्रदान करने के लिए उसे स्वीकार किये जाने की प्रक्रिया को 'उपनयन संस्कार' कहते हैं ।
आचार्य श्री विद्यासागर जी का चातुर्मास
सन्तशिरोमणि परमपूज्य आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज का ससंघ चातुर्मास इस वर्ष श्री शान्तिनाथ दिगम्बर जैन मंदिर रामटेक (नागपुर महाराष्ट्र) में भव्य समारोह के साथ सम्पन्न हो रहा है।
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28, सरोजसदन, सरस्वती कॉलोनी दमोह 470661 (म. प्र. )
अगस्त 2008 जिनभाषित 25
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