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________________ 'ही' और 'भी' आचार्य श्री विद्यासागर जी मूकमाटी महाकाव्य की निम्नलिखित काव्यपंक्तियाँ मिट्टी के घड़े पर चित्रित 'ही' और 'भी' अक्षरों के द्वारा दूसरों के धर्म, संस्कृति और विचारों का आदर करने की प्रेरणा देती हैं सम्पादक अब दर्शक को दर्शन होता है 'भी' है भारतीय संस्कृति, भाग्यविधाता। कुम्भ के मुखमण्डल पर रावण था 'ही' का उपासक 'ही' और 'भी' इन दो अक्षरों का। राम के भीतर 'भी' बैठा था। ये दोनों बीजाक्षर हैं, यही कारण कि अपने-अपने दर्शन का प्रतिनिधित्व करते हैं। राम उपास्य हुए हैं, रहेंगे आगे भी। 'ही' एकान्तवाद का समर्थक है 'भी' के आस-पास 'भी' अनेकान्त, स्याद्वाद का प्रतीक। बढ़ती-सी भीड़ लगती अवश्य, हम ही सब कुछ हैं किन्तु भीड़ नहीं, यूँ कहता है 'ही' सदा 'भी' लोकतन्त्र की रीढ़ है। तुम तो तुच्छ, कुछ नहीं हो। लोक में लोकतन्त्र का नीड़ तब तक सुरक्षित रहेगा, 'भी' का कहना है कि जब तक 'भी' श्वास लेता रहेगा। हम भी हैं 'भी' से स्वच्छन्दता-मदान्धता मिटती है तुम भी हो स्वतन्त्रता के स्वप्न साकार होते हैं, सब कुछ! सद्विचार सदाचार के बीज 'ही' देखता है हीन दृष्टि से पर को 'भी' में हैं, 'ही' में नहीं। 'भी' देखता है समीचीन दृष्टि से सब को, प्रभु से प्रार्थना है कि 'ही' वस्तु की शक्ल को ही पकड़ता है 'ही' से हीन हो जगत् यह 'भी' वस्तु के भीतरी भाग को भी छूता है, अभी हो या कभी भी हो 'ही' पश्चिमी सभ्यता है 'भी' से भेंट सभी की हो। और Jain Education International For Private & Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.524330
Book TitleJinabhashita 2008 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2008
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size5 MB
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