SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 50
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ख्यातिप्राप्त शोध- संस्थान के रूप में पहचान स्थापित | इतिहास', साध्वी श्री प्रियवन्दना श्री जी द्वारा लिखित हो गई है, जहाँ जैनों के सभी सम्प्रदायों के साधु साध्वी | 'जैन धर्म में समत्व-योग की अवधारणा' साध्वी श्री एवं मुमुक्षु विद्यापीठ एवं डॉ. सा. के मार्गदर्शन का लाभ | प्रियलताश्रीजी द्वारा लिखित 'त्रिविध आत्मा की अवधारणा' . लेने के लिए लालायित रहते हैं। तथा साध्वी सम्यग्दर्शनश्री जी म. सा. द्वारा 'उपदेश __ प्रकाशन के क्षेत्र में भी विद्यापीठ का ग्राफ बढ़ता | पुष्पमाला' का हिन्दी अनुवाद (सभी, डॉ. सागरमलजी जा रहा है। साध्वी श्री मोक्षरत्नाश्रीजी म.सा. द्वारा लिखित | द्वारा सम्पादित) शीर्षक से ७ पुस्तिकाओं का वर्ष २००६'आचार दिनकर' ४ भागों में तथा जैन-संस्कार एवं विधि- | ०७ में प्रकाशन हुआ है। इस प्रकार, विद्यापीठ से विभिन्न विधान (एक तुलनात्मक अध्ययन), साध्वी श्री सौम्यगुणाश्री | वर्षों में अब तक कुल १४ पुस्तकों का प्रकाशन हो जी म. सा. द्वारा लिखित 'जैन विधि-विधान का वृहत् चुका है। प्रवक्ता-प्राच्य विद्यापीठ, शाजापुर परमहंस श्री वर्द्धमान महावीर महात्मा, श्री शिवव्रतलाल जी वर्मन, एम.ए. हिन्दुओ! जैनी हम से जुदा नहीं हैं, हमारे ही । था। ये तीर्थंकर है, परमहंस हैं, इनमें बनावट नहीं गोस्त-पोस्त हैं। उन नादानों की बातों को न सुनो | थी, कमजोरियों और ऐबों को छुपाने के लिए इनको जो गलती से नावाकफियत से. या तास्सब से कहते किसी पोशाक की जरूरत नहीं हई। इन्होंने तप. जप हैं 'हाथी के पाँव तले दब जाओ, मगर जैनमंदिर | और योग का साधन करके अपने आपको मुकम्मल के अन्दर अपनी हिफाजत न करो' इस तास्सुब और | | बना लिया था। तुम कहते हो ये नंगे रहते थे, इसमें तंगदिली का कोई ठिकाना है? हिन्दूधर्म तास्सुब का | ऐब क्या? परमअन्तर्निष्ठ, परमज्ञानी और कुदरत के हामी नहीं है, तो फिर इनसे ईर्ष्याभाव क्यों? अगर | सच्चे पुत्र को पोशाक की जरूरत कब थी? सरमद अनेक किसी ख्याल से तुम्हें माफकत नहीं है, तो | नाम का एक मुसलमान फकीर देहली की गलियों सही, कौन सब बातों में किसी से मिलता है? तुम | में घूम रहा था, औरंगजेब बादशाह ने देखा तो उसको उनके गुणों को देखो, किसी के कहे सुने पर न जाओ। | पहनने के लिए कपड़े भेजे। फ़कीर वली था, कहकहा जैनधर्म तो एक अपार समुद्र है, जिसमें इन्सानी हमदर्दी | मारकर हँसा और बादशाह की भेजी हुई पोशाक को की लहरें जोर-शोर से उठती हैं। वेदों की श्रुति 'अहिंसा | वापिस कर दिया और कहला भेजापरमो धर्मः' यहाँ ही असली सूरत अख्तयार करती आँकस कि तुरा कुल्लाह सुल्तानी दाद। हुई नजर आती है। भारा हम ओ अरबाब परेशानी दाद।। श्री महावीर स्वामी दुनिया के जबरदस्त रिफार्मर पोशनीद लबास हरकरा देवे दीद। और ऊँचे दर्जे के प्रचारक हुए हैं। यह हमारी कौमी ऐबा रा लववास अयानी दाद॥ तारीख के कीमती रत्न हैं। तुम कहाँ? और किन अर्थ- यह लाख रूपये का कलाम है. फकीरों में धर्मात्मा प्राणियों की तलाश करते हो? इनको देखो | की नग्नता को देखकर तुम क्यों नाक भौं सकोडते इनसे बेहतर साहिबे कमाल तमको कहाँ मिलेगा? इनमें | हो? इनके भाव को नहीं देखते। इसमें ऐब की क्या त्याग था, वैराग था, धर्म का कमाल था। यह इंसानी बात है? तुम्हारे लिए ऐब हो, इनके लिए तो तारीफ कमजोरियों से बहुत ऊँचे थे। इनका स्थान 'जिन' | की बात हैं। है, जिन्होंने मोह, माया, मन और काया को जीत लिया । ('जैन धर्म का महत्त्व', सूरत भाग 1 पृ.1-14) 'जन-जन के महावीर' (पृ.४५) से साभार - 48 जून-जुलाई 2008 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524329
Book TitleJinabhashita 2008 06 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2008
Total Pages52
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy